कलेक्ट्रेट को जाने वाली नीमताल से जिला अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, स्टेडियम और कलेक्ट्रेट जाने वाली मुख्य सडक़ हो या फिर अहमदपुर रोड से पीतलमिल और पीतलमिल से सागर पुलिया तक की मुख्य सडक़। हर सडक़-चौराहे पर वाहनों के निकलते ही ऐसे धूल के गुबार और धूल के कण उड़ते हैं कि पैदल चलने और दुपहिया वाहनों से आने-जाने वालों का हाल बुरा हो जाता है। यही हाल अहमदपुर रोड और टीलाखेड़ी रोड का है। रामलीला मैदान से बेतवा पुल तक भी भारी धूल उड़ती है। इन सभी प्रमुख मार्गों पर भारी और चार पहिया वाहनों की हमेशा आवाजाही रहती है, इस कारण हमेशा ही ये धूल के गुबार बने रहते हैं। लेकिन बुरा हाल होता है यहां से पैदल गुजरने वाले राहगीरों और दुपहिया वाहन चालकों का, जिनकी नाक, आंखों और मुंह में ये धूल के गुबार भरते चले जाते हैं। कभी कभी गिट्टी की बारीक चूरा आंखों में भरने से लोग परेशान हो उठते हैं और उनकी आंखें घायल हो जाती हैं।
इन सडक़ों के किनारे अपना व्यापार करने वाले व्यापारियों की भी खासी फजीहत हो रही है। ये दिन में दस बार अपने शो केस और दुकान का सामान साफ करते हैं, लेकिन फिर भी इनमें धूल जमा रहती है। इसलिए कई दुकानदारों ने अपनी दुकान के सामने ट्रांसपरेंट पॉलीथिन लगाकर धूल से बचाव का अस्थाई प्रयास किया है। लेकिन इस संकट से निपटने के लिए नगरपालिका और प्रशासन कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
कुछ ही समय पहले लाखों की लागत से खरीदी गई धूल साफ करने की मशीन का इस धूल से सराबोर शहर में कोई उपयोग नहीं हो पाया है। शुरूआती कुछ दिनों में यह मशीन विवेकानंद चौराहे से नीमताल और कभी ओवरब्रिज और सिविल लाइन में कछुआ गति से चलती दिखी थी, लेकिन चंद रोज की इस प्रदर्शनी के बाद से वह लाखों की मशीन कहां है यह भी लोगों को पता नहीं। बताया गया है कि काम न आने की वजह से वह कबाड़ में तब्दील होती जा रही है।