विदिशा

रथ यात्रा के दिन भगवान जगन्नाथ क्यों आते हैं मानौरा, 200 साल से चली आ रही है यह परंपरा

jagannath rath yatra 2022- रथ यात्रा के दिन भगवान क्यों आते हैं मानौरा…। लाखों लोग आते हैं दर्शन करने…। पेश है विशेष रिपोर्ट…।

विदिशाJul 01, 2022 / 09:14 am

Manish Gite

jagannath rath yatra 2022

विदिशा। उड़ीसा का जगन्नाथपुरी चार धाम में से एक है। यहां आषाढ़ सुदी दूज को रथ यात्रा निकालने की परंपरा है। इस रथ में भगवान जगदीश, बलभद्र और देवी सुभद्रा के दर्शन मिलते हैं। मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के मानौरा गांव का संबंध जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा से है। जिस समय जगन्नाथ का रथ रुक जाता है, तो विदिशा के मानौरा में उत्सव शुरू हो जाता है। क्योंकि जगन्नाथ से कुछ देर के लिए भगवान मानौरा आते हैं। यह नजारा देखने के लिए यहां लाखों श्रद्धालु पहुंच जाते हैं।


विदिशा के मानौरा में यह परंपरा 200 सालों से चली आ रही है। यहां पर भगवान जगदीश स्वामी का प्राचीन मंदिर है, जिसमें जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के श्रीविग्रह विराजमान हैं।

 

इसलिए यहां आते हैं भगवान

मंदिर ट्रस्ट के ट्रस्टी रामनाथ सिंह भगवान के यहां आने के पीछे की कहानी बताते हैं। वे कहते हैं कि यह मंदिर भगवान के भक्त और मानौरा के तरफदार मानिकचंद और देवी पद्मावती की आस्था का प्रतीक है। दंपती भगवान के दर्शन की आकांक्षा में दंडवत करते हुए जगन्नाथपुरी चल पड़े थे। दुर्गम रास्तों के कारण दोनों के शरीर लहुलुहान हो गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस पर भगवान स्वयं प्रकट हुए और उनको मानोरा में ही हर वर्ष दर्शन देने आने का वचन दिया। अपने भक्त को दिए इसी वचन को निभाने हर वर्ष भगवान आषाढ़ी दूज को रथयात्रा के दिन मानोरा पधारते हैं और रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं।

 

 

भगवान मानोरा पधार गए

मंदिर के मुख्य पुजारी भगवती दास बताते हैं कि रथयात्रा की पूर्व संध्या को आरती, भोग लगाने के बाद जब रात्रि को भगवान को शयन कराते हैं तो उनके पट पूरी तरह से बंद किए जाते हैं, लेकिन सुबह अपने आप थोड़ा-सा पट खुला मिलता है। जब रथ पर भगवान को सवार कराया जाता है तो अपने आप उसमें कंपन होता है अथवा वह खुद ही लुढ़कने लगता है। यही प्रतीक है कि भगवान मानोरा आ गए हैं। मुख्य पुजारी के मुताबिक उड़ीसा की पुरी में भी पंडा रथयात्रा के दौरान जब वहां भगवान का रथ ठिठककर रुकता है तो घोषणा करते हैं कि भगवान मानोरा पधार गए हैं।

 

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भगवान को मीठे भात पसंद है

रथयात्रा के दिन भगवान जगदीश को पूरी पवित्रता के साथ बनाए गए मीठे भात का भोग अर्पित किया जाता है। कई श्रद्धालु अपनी मन्नत पूरी होने पर भी भगवान को ये भोग अर्पित कराते हैं। इस भोग को अटका कहा जाता है। यह मिट्टी की हंडियों में मुख्य पुजारी द्वारा ही तैयार किया जाता है। जिसे भगवान को अर्पित करने के बाद भक्तों में बांटा जाता है। इसी लिए कहा जाता है कि जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ।


तन की सुधि नहीं, मन जगदीश के हवाले

भगवान के दर्शन करने बड़ी संख्या में लोग मीलों दूर से दण्डवत करते हुए मानोरा पहुंचते हैं। रास्ता चाहे जितना दुर्गम, पथरीला, कीचड़ भरा या सड़कें गड्ढे और गिट्टियों वाली हों, भक्तों की आस्था कम नहीं होती। एक दिन पहले से दंडवत करते लोग यहां पहुंचते हैं और रास्ते भर जय जगदीश हरे की टेर लगाते जाते हैं। सच उन्हें ऐसे में अपने तन की भी सुध नहीं रहती कि कहीं शरीर छिल रहा है, कहीं चोट लग रही है,कहीं वे कीचड़ में लथपथ हैं, बस एक ही धुन रहती है जगदीश स्वामी के दर्शन की।

 

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