विदिशा के धनोरा हवेली से आगे मुरेल खुर्द की पहाड़ी है। चट्टानी इलाका है। इसी पहाड़ी पर बौद्ध स्तूपों की श्रंखला है। यहां स्तूपों की संख्या सांची के स्तूपों से भी अधिक दिखती है। गिनती करें तो छोटे-बड़े करीब 40 स्तूप यहां तीन हिस्सों में बंटे हुए हैं। अधिकांश लोगों को यहां इतने सारे स्मारकों की जानकारी ही नहीं, जो पहुंच भी जाते हैं उनमें से ज्यादातर केवल पहाड़ी के पहले हिस्से में मौजूद 10-12 स्तूपों को देखकर वापस आ जाते हैं। जबकि इस पहले हिस्से से और ऊपर की ओर बड़े स्तूपों और बौद्ध विहार की मौजूदगी है।
Budhhist circuit-ये सांची नहीं, मुरेल खुर्द है जहां मौजूद हैं 40 स्तूप और बौद्ध विहार
सांची के समकालीन है ये साइट
पुरातत्वविदों के मुताबिक मुरेल खुर्द के स्तूप सांची और सतधारा के स्तूपों के समकालीन हैं। सांची के स्तूपों की खोज 1818 में हुई थी, वहीं मुरेलखुर्द के स्तूप 1853 में सामने आए। ये स्तूप भी ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के हैं। इनका निर्माण बाद में दसवीं शताब्दी तक चला है। यहां बहुत व्यवस्थित बौद्ध विहार था। अब भी यहां 40 स्तूप हैं।
सांची पहुंची बुद्ध प्रतिमा
पुरातत्ववेत्ता डॉ नारायण व्यास की मानें तो मुरेल खुर्द की पहाड़ी पर जो बौद्ध विहार है, उस पर भगवान बुद्ध की प्रतिमा भी मौजूद थी, जो अब सांची के पुरातत्व संग्रहालय में गैलरी में रखी है। पहाड़ी पर स्थित बौद्ध विहार काफी व्यवस्थित और बड़ा था, जिस पर बुद्ध मंदिर हुआ करता था। मुरेल खुर्द के स्तूप पहले ज्यादा व्यवस्थित थे, उनमें रैलिंग लगी थी, बाद में एएसआइ ने भी यहां काम कराया।