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विदिशा

हमारी उदासीनता से ही पर्यटन नक्शे पर नहीं आ पा रहा विदिशा

पुरातत्व और ऐतिहासिक महत्व के स्थलों को विकसित करने में नहीं मिली शासन की तवज्जो

विदिशाJan 08, 2022 / 09:32 pm

govind saxena

हमारी उदासीनता से ही पर्यटन नक्शे पर नहीं आ पा रहा विदिशा

हमारी उदासीनता से ही पर्यटन नक्शे पर नहीं आ पा रहा विदिशा

विदिशा. अकूत पुरा संपदा और ऐतिहासिक धरोहरों से पटे पड़े विदिशा में पर्यटकों का टोटा है। विदिशा के पास इतनी विरासत है कि उसे शासन-प्रशासन और हम भी सहेज तक नहीं पा रहे। प्रदेश और देश के चंद स्मारकों को देखने दिखाने के लाख प्रयास सफल हो रहे हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता के दौर में अब तक विदिशा में इस तरह के प्रयास ही नहीं हो पाए। राजा उदयादित्य की बसाई नगरी उदयपुर अब भी बेहाल है। सिरोंज की रावजी की हवेली का खूबसूरत हिस्सा बदहाल हो चुका है और इसे बंद कर दिया गया है। ग्यारसपुर के सबसे खूबसूरत मालादेवी मंदिर में चमगादड़ों का डेरा होने से कभी कोई अंदर नहीं जा सकता। सुनारी में 10-15 बेजोड़ प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं उन्हें प्रशासन सहेज तक नहीं पा रहा। विजय मंदिर के उत्खनन की योजना फिर दबा दी गई। उदयगिरी की गुफाओं में बिजली का कोई इंतजाम नहीं, अंदर क्या है, यह भी देखना संभव नहीं। हां, इन सभी स्मारकों के पास चौतरफा गंदगी, कूड़े करकट, मलबे के ढेर जरूर हैं। पानी, टॉयलेट, सडक़ों की अधिकांश जगह या तो है ही नहीं, या है तो बहुत बुरे हाल में। जिले में शिवजी की सबसे विशाल प्रतिमा रावनटोल तक जाने का रास्ता तक नहीं। उदयपुर के प्राचीन सात गेट धराशायी हो रहे हैं। विदिशा का रायसेन गेट भी जर्जर है। ऐसे हाल में कोई गलती से पर्यटक आ भी जाएं तो क्या संदेश देंगे देश और दुनियां को। वो क्यों आएं विदिशा…?
केस-01 प्रशासन की उदासीनता से फिर हो सकता है महल पर अवैध कब्जा
परमारकालीन नगरी उदयपुर में बने विशाल महल पर कुछ लोगों ने अवैध कब्जा कर अपना बोर्ड लगा दिया था, अंदर पुराने निर्माण तोड़ नए निर्माण कर लिए थे। जनवरी-फरवरी 2021 में पत्रिका ने इसके खिलाफ मुहिम चलार्ई। लंबी मुहिम के बाद प्रशासन पर दबाव पड़ा तो प्रशासन ने महल से अतिक्रमणकारी को बेदखल कर अपना ताला जड़ दिया। उसी समय तय हो गया था कि इसे पुरातत्व विभाग के अधीन कर व्यवस्थित किया जाएगा ताकि नीलकंठेश्वर मंदिर आने वाले पर्यटक यहां भी आ सकें। लेकिन दुर्भाग्य एक साल बीतने के बाद भी राजा उदयादित्य का यह महल अब तक अनाथ की तरह पड़ा है। मलबों के ढेर के बीच यह कब फिर से अवैध कब्जे का शिकार हो जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता। प्रशासन की अनदेखी के कारण इसे एक साल में भी पुरातत्व के अधीन नहीं किया जा सका।
केस-02 सिरोंज में रावजी की हवेली बंद, आधे में स्कूल
सिरोंज में राज्य पुरातत्व के अधीन तीन मंजिला इमारत रावजी की हवेली के नाम से दर्ज है। माना जाता है कि होल्कर शासन में यह मल्हारराव, खांडेराव और तुकोजी राव के समय की है। यहां से सेनापति अपने काम का संचालन करते थे। लेकिन अब इस इमारत के एक सबसे महत्वपूर्ण और मुख्य हिस्से को खंडहर मानकर हमेशा के लिए बंद कर दिया है। दूसरे हिस्से की मरम्मत कराकर वहां 1500 से ज्यादा छात्राओं का सरकारी स्कूल लग रहा है। पर्यटक क्या देखने आएंंगे, स्कूल या बंद किया हुआ खंडहर।
केस-03 अतीत के खजाने पर किसी की नजर नहीं
उदयपुर जाते समय बरेठ स्टेशन से मात्र 3 किमी दूर सुनारी एक छोटा लेकिन अतीत और शिल्प के बहुमूल्य खजाने से भरपूर गांव है। यहां गांव के ही एक बाड़े में गणेश की विशाल और अत्यंत भव्य प्रतिमा के साथ ही विशाल शिवलिंग तथा अन्य प्रतिमाएं हैं। एक पुरानी मढिय़ा के द्वार पर अद्वितीय यज्ञ वराह की भव्य प्रतिमा है। गांव में ग्रामीणों ने नदी से निकली भगवान विष्णु की 5-6 फीट ऊंची 10-15 प्रतिमाओं को अपनी दहलानों और कमरों में रखकर तस्करों से बचा रखा है। प्रशासन कोशिश करता तो सुनारी गांव में ही ग्रामीणों के सहयोग से एक खुला संग्रहालय बन जाता अथवा एक व्यवस्थित संग्रहालय बनाकर उसमें ये प्रतिमाएं डिसप्ले की जाती, जिससे ग्रामीणों का भी मान रह जाता कि उनके गांव से निकली प्रतिमाएं उनके गांव में ही स्थापित हुई, जिन्हें देखने दूर दूर के लोग आ रहे हैं। लेकिन पिछले 20 वर्ष में भी इस बारे में प्रशासन की कोई पहल नहीं हुई।
केस-04 फाइलों में दबा विजय मंदिर का उत्खनन
जिले के सबसे बड़े पुरास्मारक में विजय मंदिर शुमार है, जिसे बीजा मंडल कहा जाने लगा है। उत्खनन से ही इसके अस्तित्व और भव्यता का आभास हो सका था। तत्कालीन पर्यटन मंत्री प्रहलाद पटेल ने इसके कुछ टीलों का उत्खनन कर और इसके अवशेषेां को जोडकऱ एक मॉडल तैयार करने के निर्देश एएसआई को दिए थे। लेकिन पटेल के विभाग बदलने के बाद से इसका काम थम गया। उत्खनन से इसके अस्तित्व को खतरा बताते हुए दूसरे विकल्पों की बात की गई थी, लेकिन उसमें भी कोई काम नहीं हुआ, जिससे इतिहास के कई पन्ने दबे ही रह गए।

केस-5 सबसे विशाल प्रतिमा तक जाने का रास्ता भी नहीं
जिले में शिवजी की सबसे बड़ी पाषाण प्रतिमा उदयपुर से मात्र 2 किमी दूर मुरादपुर के रास्ते में एक पहाड़ी की तलहटी में है। यह लेटी हुई 27 फीट लंबी विराट प्रतिमा क्षेत्र मेें रावनटोल के नाम से जानी जाती है, लेकिन जिले के ही अधिकांश लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। कारण इस प्रतिमा को देखने जाने के लिए कोई रास्ता तक नहीं है। जिसे पता होता है वह झाडिय़ों, पत्थरों के बीच होते हुए यहां पहुंच पाता है, प्रतिमा भी चारों ओर से झाडिय़ों और मलबे से घिरी है।

केस-6 प्रसिद्ध मालादेवी मंदिर में चमगादड़ों का डेरा
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन ग्यारसपुर का सबसे प्रसिद्ध स्मारक पहाड़ के कोने पर बनाया गया मालादेवी मंदिर है। शिल्प, पुरातत्व और प्रकृति का अनुपम नजारा यहां देखने को मिलता है। यह एक बेहतर पर्यटन स्थल भी हो सकता है, लेकिन प्रशासन और पुरातत्व की लापरवाही के कारण यह मंदिर पर्यटकों के लिए भी नहीं खुलता। बाहर से देखो और वापस आ जाओ। एएसआइ की अनदेखी से अंदर चमगादड़ों और मधुमक्खियों का डेरा है। हां, कोई वीआइपी आता है तो जरूर इसके ताले खोल दिए जाते हैं।
वर्जन…
विदिशा पुरातत्व और पर्यटन की संभावनाओं से भरपूर है। इस पर काम शुरू किया गया है। अभी 24 स्मारकों को चिन्हित किया गया है। यहां पर्यटकों को लाने और उनको मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का प्रयास कर रहे हैं। उदयपुर महल पर शासन से निर्णय होगा। उम्मीद है जल्दी ही बेहतर परिणाम सामने आएंगे।
-उमाशंकर भार्गव, कलेक्टर विदिशा

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