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आपको बता दें कि, खिलाड़ी मेडल को काटकर उसमें मौजूद सोने के असली या नकली होने की तस्दीक करते हैं. यह एक परंपरा के रूप में शुरू हुई जो आज भी कायम है। 1912 ओलंपिक्स से पूर्व इन प्रतिष्ठित मेडल्स में उपयोग हुआ स्वर्ण 100% खरा होता था। असली स्वर्ण की पहचान करने का एक पारंपरिक ढंग उस पर दांत लगाने से उस पर पड़े चिन्ह से हो जाता है इसी बात के चलते खिलाड़ी अपने सोने के पदक को दांतों तले दबाते हैं। इसी प्रथा के चलते ये एक ट्रेंड सा बन गया। आज भी जब कोई एथलीट गोल्ड मेडल जीतता है, वो उसे दांत से जरूर काटता है। आज के समय आप इसे जीत जाहिर करने का एक स्टाइल भी कह सकते हैं। मेडल को दांत से काटना दरअसल खिलाडि़यों के पोज देने का तरीका है। इसके ज़रिए वे अपनी जीत को दिखाते हैं।