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छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटे गांव बरतोरी की मजदूर महिलाओं के पास जब काम नहीं होता था तो वो अपनी आजीविका चलाने के लिए आम पेड़ की टहनियां तोड़कर वहां के गोल बाजार की हवन सामग्रियों की दुकानों पर 1 रुपए प्रति किलो की दर पर बेच आया करती थीं। यह देख चमेली ध्रुव ने सभी को नवग्रह लकड़ियों के बारे में जानकारी दी। जानकारी के लिए बता दें कि, मदार, पलाश, खैर, अपामार्ग, पीपल, गूलर, शमी का पेड़, डूब, कुश ये सब नवग्रह की लकड़ियों के रूप में जानी जाती हैं। इनके बारे में जानने के बाद इस गांव की 12 महिलाओं का समूह बना और नवज्योति स्वसहायता समूह की नींव रखी गई।
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एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने नवग्रह की लकड़ियों की कीमत तय की। फिर हर 250 ग्राम लकड़ियों पर 20 रुपए तय किए गए। फिर धीरे-धीरे ये इस समूह से 1 लाख 79 हजार 80 महिलाओं में करीब 20 हजार मजदूर महिलाएं नवग्रह की लकड़ी के व्यवसाय में जुड़ गईं हैं। बता दें कि, नवग्रह की लकड़ियों की मांग ओडिशा और आंध्र प्रदेश तक है। आज जिले की हजारों महिलाओं ने नवग्रह की लकड़ियों की बदौलत जिंदगी को आसान बना लिया है। ये महिलाएं आज के समय में अपने पैरों पर खड़ी होकर यह साबित कर रही हैं कि, बस इरादे मज़बूत होने चाहिए मंज़िल खुद ही मिल जाती है।