‘नकली चांद’ का व्यास लगभग 2 फीट का होगा. इसकी सतह को चांद की चट्टानों और धूल जैसा तैयार किया गया है। इसका वजन भी चांद पर मौजूद धूल- पत्थर के जितना रखा गया है। चांद पर गुरुत्वाकर्षण धरती के छठे हिस्से के बराबर है। नई डिजाइन के अंदर आर्टफिशल ग्रैविटी के असर से प्रोत्थापन (Levitation) दिखाने के लिए शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र का इस्तेमाल किया गया है। टीम को इसकी प्रेरणा रूस के फ्रिजिसिस्ट आंद्रे जीम से मिली जिन्होंने चुंबकीय क्षेत्र की मदद से एक मेंढक को हवा में ‘तैराया’ था। जीम को इसके लिए नोबेल पुरस्कार भी मिला था।
चाइना यूनिवर्सिटी के इंजीनियर ने कहा:
चाइना यूनिवर्सिटी ऑफ माइनिंग एंड टेक्नोलॉजी के जियोटेक्नीकल इंजीनियर ली रुईलिन ने कहा कि इस वैक्यूम चैंबर को पत्थरों और धूल से भर दिया जाएगा, जैसे चांद की सतह पर होती है। चांद की ऐसी सतह पहली बार धरती पर बनाई जाएगी। इसका छोटा प्रयोग हम कर चुके हैं, जो सफल रहा है। लेकिन अगले प्रयोग में कम गुरुत्वाकर्षण शक्ति लंबे समय तब बनाए रखने के लिए इस प्रयोग को ज्यादा दिन तक चलाने का प्लान है। ली रुईलिन ने कहा कि हम यह प्रयोग पूरी तरह से सफल करने के बाद इस एक्सपेरिमेंट को चांद पर भेजेंगे। जहां पर धरती की ग्रैविटी का सिर्फ 6ठां हिस्सा ही गुरुत्वाकर्षण है।
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चांद पर एस्ट्रोनॉट भेजने का मिशन:दरअसल, चीन का इरादा साल 2030 तक चांद पर ऐस्ट्रोनॉट भेजने का है। वह रूस के साथ मिलकर चांद पर बेस बनाना चाहता है। ऐसे में नया सिम्यूलेटर चांद के पर्यावरण को समझने और उसके हिसाब से उपकरण तैयार करने में मदद करेगा। कम गुरुत्वाकर्षण के कारण धूल और चट्टानें भी धरती की तुलना में अलग होती हैं। चांद पर वायुमंडल नहीं है और वहां तापमान भी तेजी से बदलता है।
चांद पर रिसर्च सेंटर बनाने की तैयारी में चीन:
चीन ने कहा है कि अगर वैक्यूम चैंबर का प्रयोग सफल रहा, तो इसे लूनर रोवर चांगई के अगले मून मिशन पर भेजा जायेगा। वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में क्रमश, चीन चांगई-4 और चांगई-5 को चांद पर भेज चुका है। चांगई-5 तो चांद की सतह से सैंपल लेकर लौटा था। बता दें कि वर्ष 2029 तक चीन चांद के दक्षिण ध्रुव पर एक इंसानी रिसर्च सेंटर बनाने की योजना पर काम कर रहा है।