नई दिल्ली। भारत-चीन सीमा पर सिक्किम क्षेत्र में पिछले 23 दिनों से गतिरोध जारी है। जिसके पीछे चीनी जनरल झाओ जोंग का दिमाग है। पिछले साल 8 से 10 दिसंबर तक भारत आए चीन के जनरल झाओ जोंग ने भारतीय सेना प्रमुख जनरल बिपीन रावत और रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से मुलाकात की थी। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की वेबसाइट के अनुसार तब झाओ जोंग ने जनरल रावत से लंच के दौरान भारत-चीन के रिश्तों में स्थिरता लाने और सकारात्म योदगान के लिए काम करने की सहमति दी थी। इस मुलाकात के उम्मीद जगी थी कि दोनों देश के बीच समय समय पर होने वाला विवाद कम होगा।
झाओ के पास दो दशकों का अनुभव
जनरल झाओ ने तिब्बत बार्डर पर दो दशकों तक काम किया है। जिसकी शुरुआत 1990 में माउंटेन ब्रिगेड के रुप में की थी। तिब्बत में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की 6 बॉर्डर डिफेंस रेजिमेंट जिसमें 77694 यूनिट शामिल है। जनरल झाओ को पहाड़ों पर युद्दा का संचाचन करने में महारथ हासिल है। इसके साथ ही अरबी और तिब्बती भाषा पर उनकी जबरदस्त पकड़ है। जिसकी वजह से उन्हें राष्ट्रपति शी जिगपिंग के चेहते अधिकारियों में गिना जाता है। जनरल झाओ जोंग मे 1979 चीन-वियतनाम युद्द में शामिल हुए थे।
झाओ के कदम युद्द के करीब जा रहे हैं
चीनी मामलों के जानकार जयदेव रनाडे के मुताबिक जनरल झाओ कम्युनिस्ट पार्टी के एक वरिष्ठ सदस्य हैं, लेकिन केंद्रीय सैन्य आयोग (सीएमसी) ने उनके कार्यों को मंजूरी नहीं दी है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जनरल झाओ को अमेरिका सेंट्रल कमांडर की तरह काम करने की छूट दी थी। रनाडे का मानना है कि चीनी जनरल के अनुभव और उनके काम करने का तरीका चीन को एकबार फिर युद्द के करीब ले जा रहा है। पीएलए प्रमुख होने की वजह से वह दुनिया की हर वह चीज अपने पास चाहता है जिसकी उसको जरुरत है।
क्या है ताजा विवाद
बता दें कि भूटान के डोकलाम पठारी को लेकर चीन हमेशा आक्रामक रहा है। 1984 से अबतक इसे लेकर करीब 24 बार बैठके हो चुकी हैं। 16 जून को भी इसी मसले पर चीन की सेना भारी वाहनों के साथ भूटान के इलाके में घुस गई थी। जो इससे पहले कभी देखने को नहीं मिली थी। जिसके बाद भारतीय सेना और चीनी सैनिकों में झड़प भी हुई थी। 1962 के युद्द के बाद भारत-चीन के बीच ये अबतक का सबसे बड़ा संघर्ष है।
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