कभी जर्मनी इतना शक्तिशाली था कि ‘एक जर्मन यूरोप’ अथवा ‘एक यूरोपीय जर्मनी’ के बीच चुनने को लेकर यूरोप की हमेशा निंदा होती रही है। इसके बाद जर्मनी, फ्रांस और शेष यूरोपीय देशों को साधने में ब्रिटेन की बड़ी भूमिका रही, जिसके पास पर्याप्त आर्थिक, जनसांख्यिकी और सैन्य बल था। लेकिन जर्मनी की बजाय ब्रिटेन की शक्ति बढऩे से ज्यादातर यूरोपीय देश नाराज थे। वे चाहते थे कि जर्मनी फिर से लीड करे, क्योंकि वे यूरोपीय संघ की नाराजगी नहीं चाहते।
इंग्लैंड के नागरिकों को इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए था कि जर्मनी ने कभी भी ब्रेग्जिट वार्ता में मजबूती से पक्ष नहीं रखा। इसकी वजह भी साफ है। जर्मनी यूरोपीय संघ के साथ सामंजस्य और फ्रांस के साथ संबंधों को तरजीह देता है। कई जर्मनवासियों को ब्रेग्जिट का पछतावा है। कुछ जर्मन-ब्रिटिश मैत्री संधि के लिए जोर दे रहे हैं। बहरहाल ब्रेग्जिट के बाद ठगा सा महसूस कर रहे जर्मनी के लिए ब्रिटेन और यूरोपीय संघ सदस्य देशों से संबंधों को पुनर्जीवित करना बड़ी चुनौती है।