आंतरिक मामला इस बार मालदीव की सरकार ने खुद देश में इमरजेंसी लगाई है। हालांकि ये बात भी साफ है कि राष्ट्रपति अब्दुला यामीन ने देश में इमरजेंसी पूर्व राष्ट्रपति नशीद को अदालत द्वारा बरी किए जाने के कारण लगाई है। भारत ने 1988 में मालदीव की सरकार को तख्ता पलटने से बचाया था। उस वक्त
भारतीय सेना की स्पेशल फोर्स, पैरा-एसएफ कमांडोज ने नौसेना की मदद से एक बड़ा ऑपरेशन किया था। तख्ता पलटने की कोशिश कर रहे लड़ाकों को मार गिराया था। सेना के आपरेशन को कैक्टस नाम दिया गया था। 1988 में मालदीव की सरकार को हथियारों के बल पर गिराने की कोशिश की गई थी। विद्रोह में श्रीलंका के भी कुछ भाड़े के लड़ाके मदद कर रहे थे। साथ ही उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति गयूम ने तख्ता पलटने के खिलाफ मदद मांगी थी, जिसके बाद ही सरकार ने इतना बड़ा मिलिट्री ऑपरेशन किया था। लेकिन इस बार पूर्व राष्ट्रपति गयूम को भी यामीन ने जेल भेज दिया है।
कोर्ट का फैसला मानने से इनकार
आपको बता दूं कि मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति नशीद को देश के सुप्रीम कोर्ट ने एक पुराने मामले में बरी कर दिया है। इससे अब उनका अपने देश लौटने और चुनाव लड़ने का रास्ता खुल गया है। लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति यामीन इस फैसले को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है। फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को गिरफ्तार कर देश में इमरजेंसी लगा दी है।
मालदीव संकट: पूर्व राष्ट्रपति की चीन को फटकार, कब्जा नहीं मुक्तिदाता है भारत चीन भी अलर्ट मालदीव के वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन का झुकाव कभी भी भारत की तरफ नहीं रहा है। उनका झुकाव चीन की तरफ ज्यादा है। चीन ने हाल ही में बड़े पैमाने पर वहां निवेश किया है। नशीद ने आरोप लगाया है कि यामीन मालदीव को चीन के हाथों बेचने जा रहे हैं। ऐसे में नशीद की भारत से मदद की गुहार को लेकर चीन भी अलर्ट हो गया है और बिना भारत का नाम लिए कहा है कि किसी भी देश को मालदीव के आंतरिक मामले में सैन्य दखल अंदाजी नहीं करनी चाहिए।