पिछले साल सितंबर के बाद दोनों राजनेताओं की तीसरी बार आमने-सामने बात हुई थी। उस समय दोनों देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों में तनाव की स्थिति थी। अप्रेल में हुई बैठक के बाद दोनों देशों ने इस बात को स्वीकारा भी था। इसके बाद रक्षा विभाग के अधिकारियों ने एक हॉटलाइन बनाने का फैसला किया जिससे तनाव की स्थिति को कम किया जा सके। दोनों देशों के बीच इस फैसले का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वागत किया गया।
अमरीका के साथ चीन की तल्खी का ही नतीजा है कि वे द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा दे रहा है। बीजिंग का लक्ष्य है कि वो अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ अच्छे रिश्ते स्थापति करे जिसमें भारत और जापान प्रमुख रूप से शामिल हैं। इससे वो कूटनीतिक स्तर पर खुद को मजबूत करना चाहता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं जो अगले साल के मध्य तक संभव है। वे शायद चाहते हैं कि चीन भारत में निवेश का दायरा बढ़ाए जिससे भारत के आधारभूत ढांचे को बेहतर किया जा सके। इसमें प्रमुख रूप से बिजली, सडक़ और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना है।
चीन के वित्तीय संस्थान एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट बैंक (एआइआइबी) की जून में मुंबई में हुई बैठक ने दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग को एक नई दिशा दी है। मोदी ने अपनी नीतियों पर जोर देते हुए कहा कि एआइआइबी का उपयोग देश के मूलभूत ढांचे को बेहतर करने के लिए किया जाएगा। मालूम हो कि करीब ढाई साल पहले जब एआइआइबी का उद्धाटन हुआ तब से करीब 460 करोड़ रुपए (करीब 4.6 बिलियन डॉलर) की राशि निवेश और वित्तपोषण के मद में दे चुका है। इसमें से 140 करोड़ रुपए (करीब 1.4 बिलियन डॉलर) की धनराशि भारत को दी है जो सभी सदस्य देशों को दी गई धनराशि में सबसे अधिक है। अब इससे दो तरह के कयास लगाए जा सकते हैं। पहला भारत और चीन एक दूसरे के करीब आ रहे हैं। पर ये भी हो सकता है कि दोनों देशों के लिए ये कठिन हो कि वे आर्थिक रणनीति के तहत सीमा पर स्थिरिता की स्थिति बना सकें।
दोनों देशों के बीच आपसी विवाद ‘वन बेल्ट वन रोड’ इनीशिएटिव है जिसे चीन आर्थिक क्षेत्र के तौर पर विकसित करना चाहता है। भारत चीन से सावधान है कि उसका प्रभाव हिंद महासागर तक फैल रहा है। चीन भारत के पड़ोसी मुल्क श्रीलंका और पाकिस्तान में अपना बंदरगाह बना रहा है। दक्षिण चीन से हिंद महासागर तक समुद्री व्यवस्था को बनाए रखने के मकसद से जापान और अमरीका फ्री एंड ओपेन इंडो पैसेफिक रणनीति का समर्थन करते हैं। चीन की आंतरिक गतिविधियों को लेकर उसे चेतावनी भी देते रहते हैं।
हालांकि दोनों देशों के लिए महत्त्वपूर्ण है कि वे भारत का सहयोग करें जिससे नियम और लोकतंत्र की महत्त्वता बनी रहे। अमरीकी मेरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स और नेवल फोर्स के साथ भारत को संयुक्त सैन्य अभ्यास बढ़ाना होगा। जापान और भारत के बीच आर्थिक सहयोग को भी बढ़ावा मिलना चाहिए जिससे हाई स्पीड रेल परियोजना के काम को पूरा किया जा सके जो जरूरी है। हालांकि जापान, अमरीका, ऑस्टे्रलिया और भारत में भय की भी स्थिति है।
ये चारों देश इंडो पैसिफिक स्टै्रटची की कड़ी हैं। सभी की चीन को लेकर अलग-अलग सोच है। जबकि भारत चीन के चारों ओर घूमने वाली रणनीति को लेकर चिंतित है। सबका चिंतित होना लाजिमी भी है क्योंकि चीन से हाल के दिनों में हुए उतार चढ़ाव के बारे में सभी भली भांति जानते है। अमरीकी राष्ट्रपति रणनीति के तहत कड़ा सुरक्षा घेरा तैयार करना चाहते हैं जो सभी देशों की इच्छा है। इसका मकसद है सभी देश बराबरी की स्थिति पर रहें। बीजिंग का लक्ष्य अपने पड़ोसी मुल्कों के साथ अच्छे रिश्ते स्थापति करना है। इसमें भारत और जापान प्रमुख हैं। मोदी अगले लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं। शायद वे चाहते हैं कि चीन भारत में अपना निवेश बढ़ाए जिससे आधारभूत ढांचे, बिजली, सडक़ और अर्थव्यवस्था जैसी बुनियादी सुविधा को बेहतर किया जा सके।
(वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)