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US Presidential Elections 2024: अमेरिका में अब तक क्यों नहीं चुनी गई महिला राष्ट्रपति? 

US Presidential Elections 2024: 2020 के चुनाव में भी महिला नेताओं ने धमाकेदार और जोरदार शुरुआत की थी। ये वो साल था जब अमेरिका को महिला राष्ट्रपति मिलने का सबसे सुनहरा मौका था। इनमें से एक हिलेरी क्लिंटन थीं इन्हें तो दो बार राष्ट्रपति चुनाव में दावेदारी पेश करने का मौका मिला था।

नई दिल्लीMay 26, 2024 / 04:57 pm

Jyoti Sharma

Why has America not yet become a woman president?

Why has America not yet become a woman president?

US Presidential Elections 2024: अगर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बात करते हैं तो दो देशों का नाम ही सामने आता है, भारत और अमेरिका। अमेरिका तो विश्व का सबसे पुराना लोकतंत्र माना जाता है और भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। भारत मे इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) ने प्रधानमंत्री पद पर पहुंच कर भारत के इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया था। उन्हें भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री और सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री होने का गौरव मिला हुआ है। वहीं प्रतिभा पाटिल और द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) ने भारत की राष्ट्रपति बनकर महिलाओं की ताकत से तो देश को रूबरू कराया ही साथ ही देश का गौरव भी पूरी दुनिया में फैलाया। लेकिन खुद को आधुनिकता, मानवीय मूल्यों और समान अधिकारों का झंडाबरदार बताने वाले अमेरिका (United States of America) में आज तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं बनी। वहां कोई भी महिला आज तक सत्ता के सबसे ऊंचे पद पर नहीं पहुंच पाई। 5 नवंबर को अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हैं और इस इलेक्शन में भी वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन (Joe Biden) और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच ही मुकाबला देखने को मिल रहा है। महिला उम्मीदवार कमला हैरिस और नैंसी पेलोसी जैसी मजबूत नेता भी इनसे फिर पिछड़ती नजर आ रही हैं।

क्यों नहीं बनीं महिला राष्ट्रपति 

अमेरिका जो खुद को सबसे ताकतवर देश बताता है उसकी सियासत दिन-ब-दिन नीचे जाती जा रही है। ऐसा नहीं है कि वो देश कमजोर हो रहा है बल्कि दूसरे देश उससे ज्यादा मजबूत हो रहे हैं। आज दुनिया की महिला नेताओं की परिषद के 60 सदस्य हैं, जिनमें से सभी वर्तमान या पूर्व स्वतंत्र रूप से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या चांसलर के तौर पर स्टेट हेड बने हैं। पिछले 50 सालों में ऐसे नेता पाने वाले देशों की सूची में, अमेरिका (USA) सबसे आखिरी नंबर पर गिर गया है। 
2020 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (US Presidential Elections 2020) में भी महिला नेताओं ने धमाकेदार और जोरदार शुरुआत की थी। ये वो साल था जब अमेरिका को महिला राष्ट्रपति मिलने का सबसे सुनहरा मौका था। इनमें से एक हिलेरी क्लिंटन (Hillary Clinton) थीं। इन्हें तो दो बार राष्ट्रपति चुनाव में दावेदारी पेश करने का मौका मिला था। हिलेरी के अलावा इस चुनाव में कर्स्टन गिलिब्रांड, कमला हैरिस, एमी क्लोबुचर भी शामिल थीं। 
वहीं साल 2016 के अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव (US Presidential Elections 2016)में एक परिदृश्य ये दिखा दिया था कि अब शायद अमेरिका को महिला राष्ट्रपति मिल सकती है। उस साल भी डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) को पूर्व विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने जोरदार टक्कर दी थी और फाइनल मुकाबला भी इन्हीं दोनों के बीच हुआ था। लेकिन हिलेरी क्लिंटन की बहस राजनीतिक और आर्थिक मुद्दों से हटकर महिला केंद्रित हो गई थी जो अमेरिका के लोगों को पसंद नहीं आया। 
अपनी पुस्तक लीन इन में, Google की पूर्व CEO शेरिल सैंडबर्ग कहती हैं कि अमेरिका के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी होनी चाहिए और और चुना भी जाना चाहिए। लेकिन सर्वे में पता चला कि हिलेरी क्लिंटन को राष्ट्रपति पद के लिए अमेरिका के लोगों ने ही पसंद नहीं किया। 

क्यों पसंद नहीं कर रहे अमेरिका के लोग

टाइम्स मैग्जीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की महिला उम्मीदवारों (US Presidential Elections) के लिए सबसे मुश्किल बात ये है कि वो हमेशा दोहरे मानदंडों पर चर्चा करती हैं। वे चुनाव को राजनीति या आर्थिक चुनौती का सामना को लेकर नहीं बल्कि उसे महिला और पुरुष या लिंगवाद से जोड़ देती है जिसे अमेरिका के लोग एक सिरे से नकार देते हैं क्योंकि वो अमेरिका के विकास पर फोकस ना कि लिंगवाद पर….। हालांकि इस मुद्दे पर भी अमेरिका के आधे लोगों में अलग-अलग राय है। 

राजनीतिक पेचीदगियां 

संयुक्त राज्य अमेरिका और इसकी विनर-टेक-ऑल प्रणाली नए विकास के लिए एक टेढ़ी खीर मानी जाती है। अमेरिका के इलेक्टोरल कॉलेज लोकप्रिय तो हैं ही साथ ही वो ये निश्चित करते हैं कि राष्ट्रपति के पद के किसे चुना जाना है। अमेरिका के मिशिगन या ओहियो जैसे सेंट्रल राज्यों में बाहरी लोगों को ज्यादा अहमियत दी जाती है। इस, प्रक्रिया में तीसरे पक्ष के उम्मीदवार इसे बिगाड़ने का काम करते हैं। जिससे प्रमुख पार्टी के उम्मीदवारों को अमेरिका के कुछ राज्यों में जीतने से रोका जा सके। 

संसदीय प्रणाली भी काफी जिम्मेदार

एक बात और करने वाली है कि संसदीय प्रणाली वाले देशों में महिलाओं के लिए मुश्किलें कम होती हैं। क्योंकि यहां कई दल गठबंधन में एक-दूसरे के नेताओं का समर्थन करने के लिए सहमत हो सकते हैं। जर्मनी, ब्रिटेन या फ़िनलैंड जैसी संसदीय प्रणाली में महिलाओं के लिए कार्यकारी भूमिकाएं हासिल करना आसान हो सकता है। संसदीय प्रणालियां महिलाओं के लिए ज्य़ादा अनुकूल हो सकती हैं संसदीय चुनाव भी ज्यादा पार्टियों को मैदान में उतारते हैं। जितनी ज्यादा पार्टियाँ चुनाव में होती हैं उतने ज्यादा विपक्षी दलों की संख्या भी बढ़ जाती है। क्योंकि महिलाएं अक्सर प्रधानमंत्री बनने से पहले विपक्षी नेता बन जाती हैं, इसलिए महिलाओं के लिए शीर्ष पद संभालने के ज्य़ादा मौके होते हैं।
वहीं कुछ देशों में संसद में महिलाओं के आरक्षण की सुविधा होती है, जिससे महिलाओं को संसद में प्रतिनिधित्व करने का अधिकार के साथ मौका मिलता है लेकिन ऐसा कुछ भी अमेरिका में नहीं है। वहां इस तरह का कोई कोटा या आरक्षण नहीं है जो महिलाओं को संसद में पहुंचने में आसानी दिलाए। अमेरिकी सदन और सीनेट में महिलाओं की सीटों का प्रतिशत लगभग 20% पर ही रुका हुआ है। जबकि ज्यादा भागीदारी के लिए इसे कम से कम 35% तक पहुंचना होगा। 

जेंडर गैप 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम यानी विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023 के मुताबिक जब राजनीतिक सशक्तिकरण की बात आती है, तो संयुक्त राज्य अमेरिका 143 देशों में से 43 वें स्थान पर आता है। 
इन कारकों के अलावा अमेरिकी राजनीतिक प्रक्रिया के ऐसे पहलू भी हैं जो यहां की महिलाओं के लिए काफी मुश्किल हैं। 24 घंटे के समाचार चैनलों में 18 महीने के राष्ट्रपति चुनाव के अभियान चलते हैं। जिसमें कई नेताओ को बड़ी जांच से भी गुजरना पड़ता है। ऐसे में कई महिला नेता इससे बचती हैं। अमेरिकी राजनीति सेलिब्रिटी की संस्कृति से प्रभावित हो गई है, जिसका मतलब है कि वोटर अक्सर अपने उम्मीदवारों को उनकी पर्सनैलिटी के आधार पर चुनते हैं जिससे ये चुनाव आमतौर पर महिलाओं के खिलाफ हो जाता है। वहीं दूसरे देशों में जहां अभियान छोटे होते हैं और मीडिया जांच कम तेजी होती है, वहां चुनाव अक्सर पर्सनैलिटी के बजाय नीतिगत भेदों पर तय किए जाते हैं।

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