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भूख का अहसास, मजदूरी तक की 1947 में भारत विभाजन के बाद पूरन डावर का परिवार आगरा आया। मलपुरा कैम्प में शरण ली। शरणार्थी थे। यहां अपना कुछ भी नहीं था। फिर शुरुआत हुई लम्बे संघर्ष और जद्दोजहद की। उस समय बहुत छोटे थे, लेकिन अपने परिजनों को संघर्ष करता देख रहे थे। भूख से तो रोज ही संघर्ष हो रहा था। पूरन डावर को याद है कि वर्षों तक रोजाना भरपेट भोजन नहीं मिलता था। तब उन्होंने समझा कि भूख का दर्द क्या होता है? परिवार के सदस्यों के साथ कपड़े सिलने का काम शुरू किया। दूध बेचा। मजदूरी की। कोयला बेचना का काम किया। उस समय भूख मिटाने के लिए कोई काम छोटा नहीं था।
भूख का अहसास, मजदूरी तक की 1947 में भारत विभाजन के बाद पूरन डावर का परिवार आगरा आया। मलपुरा कैम्प में शरण ली। शरणार्थी थे। यहां अपना कुछ भी नहीं था। फिर शुरुआत हुई लम्बे संघर्ष और जद्दोजहद की। उस समय बहुत छोटे थे, लेकिन अपने परिजनों को संघर्ष करता देख रहे थे। भूख से तो रोज ही संघर्ष हो रहा था। पूरन डावर को याद है कि वर्षों तक रोजाना भरपेट भोजन नहीं मिलता था। तब उन्होंने समझा कि भूख का दर्द क्या होता है? परिवार के सदस्यों के साथ कपड़े सिलने का काम शुरू किया। दूध बेचा। मजदूरी की। कोयला बेचना का काम किया। उस समय भूख मिटाने के लिए कोई काम छोटा नहीं था।
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जूतों का कारखाना स्थापित किया नौकरी और छोटे-मोटे कारोबार के बीच पूरन डावर ने अध्ययन जारी रखा। अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर और कानून की डिग्री हासिल की। जूतों की खुदरा दुकानदारी की। फिर जूता बनाने का कारखाने डालने का निश्चय किया। तमाम झंझावातों के बीच कारखाना स्थापित किया। इसमें अत्यधिक विलम्ब हुआ क्योंकि नौकरशाही को एक पैसे की भी रिश्वत न देने का संकल्प लिया हुआ था। जूतों का निर्यात शुरू किया और किस्मत बदल गई।
जूतों का कारखाना स्थापित किया नौकरी और छोटे-मोटे कारोबार के बीच पूरन डावर ने अध्ययन जारी रखा। अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर और कानून की डिग्री हासिल की। जूतों की खुदरा दुकानदारी की। फिर जूता बनाने का कारखाने डालने का निश्चय किया। तमाम झंझावातों के बीच कारखाना स्थापित किया। इसमें अत्यधिक विलम्ब हुआ क्योंकि नौकरशाही को एक पैसे की भी रिश्वत न देने का संकल्प लिया हुआ था। जूतों का निर्यात शुरू किया और किस्मत बदल गई।
यह भी पढ़ें वीडियो: विश्व के क्षितिज पर लिया जाएगा इस जिले के छोटे से गांव का नाम, पढ़िए क्या है पूरा मामला भूख का अहसास आज भी जूता निर्यात क्षेत्र में पहचान बनाने के बाद पूरन डावर को याद आया अपना 1947 के बाद का संघर्ष और रोटी के लिए अकुलाहट। इसके साथ ही समाज के निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण, स्वास्थ्य और खूलकूद पर ध्यान दिया। सक्षम डावर मेमोरियल ट्र्स्ट के जरिए ये काम किए जा रहे हैं। डावर शूज फैक्ट्री के जरूरतमंद कर्मचारियों के बच्चों की स्कूल फीस ट्रस्ट भरता है। इस समय वे एमएसएमई के नेशनल बोर्ड के सदस्य हैं। पूरन डावर के लिए आ जीवन आरामदायक और मस्ती भरा है, लेकिन भूख का अहसास आज भी है।
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क्या है योजनाएं मिशन भोजन सबके लिए के तहत 10 रुपये की थाली सबके लिए है। साथ ही 100 रुपये की थाली भी शुरू की जानी है। इस थाली से जो बचत होगी, उससे पांच लोगों का पेट भरेगा। बस अड्डों, रेलवे स्टेशन, कॉलेज, सराकरी दफ्तर और पर्यटक स्थलों पर 50 रुपये की थाली उपलब्ध कराई जाएगी। इससे जो बचत होगी, उससे मुफ्त भोजन वितरण की योजना है। 100 रुपये और 50 रुपये की थाली से ‘मिशन भोजन सबके लिए’ अपने पैरों पर खड़ा होगा और सदैव चलता रहेगा।
क्या है योजनाएं मिशन भोजन सबके लिए के तहत 10 रुपये की थाली सबके लिए है। साथ ही 100 रुपये की थाली भी शुरू की जानी है। इस थाली से जो बचत होगी, उससे पांच लोगों का पेट भरेगा। बस अड्डों, रेलवे स्टेशन, कॉलेज, सराकरी दफ्तर और पर्यटक स्थलों पर 50 रुपये की थाली उपलब्ध कराई जाएगी। इससे जो बचत होगी, उससे मुफ्त भोजन वितरण की योजना है। 100 रुपये और 50 रुपये की थाली से ‘मिशन भोजन सबके लिए’ अपने पैरों पर खड़ा होगा और सदैव चलता रहेगा।
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कैसे बना ट्रस्ट पूरन डावर ने सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना 1998 में अपने पुत्र सक्षम की स्मृति में की थी। सक्षम की मृत्यु नौ साल की उम्र में एक दुर्घटना मे हो गई थी। यह ट्रस्ट अब एक लाइट हाउस की तरह है, जो सबको राह दिखा रहा है। इसी के तहत भोजन सबके लिए परियोजना शुरू की गई है, जो आगरा, उत्तर प्रदेश के बाद पूरे देश में चलेगी। उद्घाटन 17 अक्टूबर, 2018 को होगा।
कैसे बना ट्रस्ट पूरन डावर ने सक्षम डावर मेमोरियल ट्रस्ट की स्थापना 1998 में अपने पुत्र सक्षम की स्मृति में की थी। सक्षम की मृत्यु नौ साल की उम्र में एक दुर्घटना मे हो गई थी। यह ट्रस्ट अब एक लाइट हाउस की तरह है, जो सबको राह दिखा रहा है। इसी के तहत भोजन सबके लिए परियोजना शुरू की गई है, जो आगरा, उत्तर प्रदेश के बाद पूरे देश में चलेगी। उद्घाटन 17 अक्टूबर, 2018 को होगा।
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समाज का सहयोग पूरन डावर कहते हैं- जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई। जिसने गरीबी देखी है, वही गरीबों के दर्द का इलाज कर सकता है। भूखे व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धर्म रोटी है। किसी भी सरकार के सहारे भूख को नहीं मिटाया जा सकता है। यह कार्य समाज को ही करना है। इसी कारण सेवा भारती के साथ ट्रस्ट ने इस कार्य को करने का संकल्फ लिया है। हर कोई इस मिशन से जुड़ने के लिए आतुर है। स्वामी विवेकानंद, पं. दीनदयाल उपाध्याय और महात्मा गांधी ने गरीबों की सेवा का आह्वान किया था, जिसका हम अनुसरण कर र रहे हैं।
समाज का सहयोग पूरन डावर कहते हैं- जाके पैर न फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई। जिसने गरीबी देखी है, वही गरीबों के दर्द का इलाज कर सकता है। भूखे व्यक्ति के लिए सबसे बड़ा धर्म रोटी है। किसी भी सरकार के सहारे भूख को नहीं मिटाया जा सकता है। यह कार्य समाज को ही करना है। इसी कारण सेवा भारती के साथ ट्रस्ट ने इस कार्य को करने का संकल्फ लिया है। हर कोई इस मिशन से जुड़ने के लिए आतुर है। स्वामी विवेकानंद, पं. दीनदयाल उपाध्याय और महात्मा गांधी ने गरीबों की सेवा का आह्वान किया था, जिसका हम अनुसरण कर र रहे हैं।