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आगरा

राष्ट्रसंत तरुण सागर महाराजः जैन धर्म के शेर

मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त है कि तरुण सागर महाराज की बहुचर्चित पुस्तक ‘कड़वे प्रवचन’ भाग-8 की भूमिका लिखने का अवसर मिला।

आगराSep 01, 2018 / 10:42 am

Bhanu Pratap

tarun sagar maharaj

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डॉ. भानु प्रताप सिंह

जैन धर्म का चेहरा तरुण सागर महाराज ने दिल्ली में नश्वर शरीर का त्याग कर दिया है। वे सभाओं में शेर की तरह दहाड़ते थे तो सबकी बोलती बंद हो जाती थी। उन्होंने पूरे देश और दुनिया में जैन धर्म को नई पहचान दी। उन्होंने हमेशा लीक से हटकर काम किया। वे दिगम्बर थे, लेकिन सूचना प्रौद्योगिकी की आधुनिक हथियारों जैसे सोशल मीडिया का भरपूर उपयोग करते थे। टीवी और अखबारों में बयान देकर हमेशा चर्चा में रहते थे। युवाओं को शाकाहारी बनाने के अभियान में लगे हुए थे। उनसे जुड़ी कुछ बातें जेहन में ताजा हो उठी हैं।
भीषण सर्दी में

वर्ष 2014 का दिसम्बर माह। भीषण सर्दी। तभी खबर आई कि तरुण सागर महाराज आगरा आ रहे हैं। वे दिगम्बर संत हैं। अर्थात वस्त्रहीन रहते हैं। मन में उत्सुकता जगी। आगरा से कोई 20 किलोमीटर दूर एक स्कूल में वे ठहरे हुए थे। मैं अपनी टीम के साथ उनसे मिलने पहुंचा। हम सब कपड़ों से कसे हुए थे कि कहीं सर्दी न लग जाए। मैंने देखा कि तरुण सागर महाराज एक कक्ष में चटाई पर लेटे हुए थे।
हल्का सवाल

हमें देखकर तरुण सागर महाराज उठकर बैठ गए। मैंने सोचा कि महाराज को सवालों के जाल में फंसाता हूं। फिर सवालों के साथ जवाबों का दौर शुरू हुआ। देश, समाज, परिवार, राजनीति, रिश्तों के बारे में उनका विशद ज्ञान देखकर अवाक रह गया। फिर मैंने हल्का सवाल किया- महाराज आप विवाह कर लेते तो अच्छा रहता, समाज को विचारशील संतति मिलती। उन्होंने तपाक से जवाब दिया- विवाह कर लेता तो आप मेरा इंटरव्यू करने क्यों आते?
दिल्ली में विराट हिन्दू सम्मेलन

एक मार्च, 2015 को मैं कभी नहीं भूल सकता। विश्व हिन्दू परिषद के स्थापना दिवस पर नेहरू स्टेडियम दिल्ली में विराट हिन्दू सम्मेलन हुआ। वहां भारी शोर हो रहा था। मंच से बोलने वालों को कोई सुन नहीं रहा था। जब तरुण सागर महाराज ने बोलना शुरू किया तो पिन ड्रॉप साइलेंस हो गई। यह उनकी वाणी का जादू था।
tarun sagar maharaj
कड़वे प्रवचन

तरुण सागर महाराज कड़वे प्रवचन के लिए विख्यात थे। उनकी कड़वे प्रवचन पुस्तक की 7 लाख से अधिक प्रतियां बिकीं। गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बना। कड़वे प्रवचन वास्तव में हर किसी को आइना दिखाते हैं। फिर चाहे वह नेताजी हों, संत हों, भाई हो, बहन, हो, पत्नी हो, सास हो, बहू हो या कुछ और। तरुण सागर महाराज सबसे बड़े हँसोड़ थे। वे हँसी-हँसी में गम्भीर बातें कह जाते थे। वे कहते थे- हँसी नाभि से निकलनी चाहिए। भगवान ने केवल मनुष्य को हँसने का गुण दिया है।
आनंद यात्रा

आगरा प्रवास के दौरान तरुण सार महाराज एमडी जैन इंटर कॉलेज में रोजाना ‘आनंद यात्रा’ कराते थे। आनंद यात्रा के दौरान वे सिर्फ लोगों को हँसाते थे। मजाक में ही सवाल पूछकर लोगों को फंसाते थे। फिर आनंद यात्रा हो या कड़वे प्रवचन, हजारों लोग खिंचे चले आते थे। इतनी भीड़ तो नेताओं की सभा में भी नहीं हो पाती है, जबिक वे लोगों को आने-जाने के साधन उपलब्ध कराते हैं। खाने के साथ पैसे भी भी देते हैं। यही कारण था कि कड़वे प्रवचन की सभाओं में नेता मंच पर आने के लिए लालायित रहते थे।
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कड़वे प्रवचन भाग-8 की भूमिका लिखने का अवसर

मुझे इस बात का सौभाग्य प्राप्त है कि कड़वे प्रवचन भाग-8 की भूमिका लिखने का अवसर मुझे मिला। इसमें से कुछ चुनिंदा कड़वे प्रवचन देखिए-
बहनों से

हमारी बहनें समझती हैं कि लिपस्टि लगाने से होंठ सुंदर नजर आते हैं, पाउडर लगाने से चेहरा सुंदर नजर आता है। पर सच्चाई यह है कि होठों की शोभा लिपस्टिक नहीं, मीठा जुबान है और चेहरे की शोभा पाउडर नहीं, मधुर मुस्कान है। बहनो, मेरी बात याद रखनाः चेहरा कितना भी चमका लो, दूसरे दिन फिर पहले जैसा हो जाएगा। अपना मन चमका लो तो पूरी जिन्दगी चमक जाएगी।
बच्चों से

तुम्हारा जन्मदिन आए तो पिता से गिफ्ट में सेलफोन नहीं मांगना। नई ड्रेस, ब्रेसलेट नहीं मांगना। जब तुम्हारे पिता कहें कि बेटा बोल तुझे जन्मदिन में क्या चाहिए तो मौके का फायदा उठाकर अपने डैडी से कहना कि पिताजी, बस आज से सिगरेट पीना छोड़ दो, यही मेरी गिफ्ट होगी। यह गिफ्ट तुम्हें और तुम्हारे पिताजी के लिए यादगार बन जाएगी। आई लव यू एंड आई मिस यू पापा।
बुजुर्गों से

फल पक जाता है तो वह मीठा हो जाता है। ऐसे ही बूढे आदमी को मीठा हो जाना चाहिए, लेकिन इससे होता उलट है। और हां, जरा कम बोलिए, काम का बोलिए। मुख से केवल प्रशंसात्मक शब्द ही निकालिए।
धर्म

धर्म कोई वॉशिंग पाउडर नहीं जिसे पहले इस्तेमाल करो, फिर विश्वास करो। धर्म तो जीवन बीमा की तरह है। जिन्दगी के साथ भी, जिन्दगी के बाद भी। धर्म तर्क का नहीं, श्रद्धा का विषय है। मानो तो मूर्ति भगवान है, न मानो मूर्ति सहज पाषाण है। तरुण सागर का यह वक्तव्य हमेश याद रखना- भगवान याद करे, इससे पहले ही भगवान को याद कर लेना। सच में जिन्दगी बल्ले-बल्ले हो जाएगी।
मां और पत्नी में अंतर

मां जीवन है। पत्नी जीवन साथी है। दोनों में फर्क एक है। मां हमेशा पेट देखती है कि बेटे ने कुछ खाया या नहीं। पत्नी हमेशा जेब देखती है। जेब भरी है या खाली है। एक बात और- पत्नी कितनी भी अच्छा खाना खिलाए, पर मां के हाथ के खाने में आनंद ही कुछ और है क्योंकि मां भोजन के साथ दुलार भी देती है। पत्नी भोजन में प्रेम दे सकती है, दुलार नहीं। प्रेम में राग होता है, दुलार में अनुराग होता है।
क्रोध

औरत अगर अपनी कमर में पल्लू खोंस ले तो इसके दो ही मतलब हैं- या तो अपन घर के काम को निपटाएगी या फिर आपको निपटायेगी। ठीक इसी तरह जो व्यक्ति बात-बात में क्रोध करता है तो इसके दो ही मतलब हैं- या तो वह नरक से आया है या फिर नरक में जाने वाला है। क्रोध से बचिए। क्रोध ही नरक है। प्रेम में बसिए, प्रेम ही स्वर्ग है।

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