1. बंदगी में भी वो आज़ाद-ओ-खुदबी हैं कि हम।
उल्टे फिर आयें दरे-काबा अगर वा न हुआ॥
2. न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता।
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता।।
3. हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे।
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़े-बयां और॥
4. क़र्ज की पीते थे मैं और समझते थे कि हाँ।
रंग लायेगी हमारी फ़ाक़ामस्ती एक दिन॥
5. ख़ामोशी में निहाँ खूँगश्त- लाखों आरजुएँ हैं,
चिराग़े-मुर्दऱ् हूँ मैं बेज़बाँ गोरे गरीबाँ का ।
6. “हैं और भी दुनिया में सुख़न्वर बहुत अच्छे
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़-ए बयां और”
7. रं ज से ख़ूगर हुआ इन्सां तो मिट जाता है रंज।
मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसां हो गईं॥
8. वैज़, तेरी दुआओं में असर है तो मस्ज़िद को हिलाकर दिखा
नहीं तो दो घूट पी और मस्जिद को हिलता देख।
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता !! 10. मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का !
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले!!
तुम्ही कहो कि ये अंदाज-ए-गुफ्तगु क्या है?
रगों में दौड़ते-फिरने के हम नहीं कायल,
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?”