scriptGround Report : कभी रसगुल्ले ने बदल दी थी सरकार, आज भी बंगाल में चुनावों में हावी ‘रसगुल्ला’ | West Bengal: Rasgulla once changed the government, even today Rasgulla dominates elections in Bengal | Patrika News
राष्ट्रीय

Ground Report : कभी रसगुल्ले ने बदल दी थी सरकार, आज भी बंगाल में चुनावों में हावी ‘रसगुल्ला’

Lok Sabha Elections 2024 : पश्चिम बंगाल में वर्ष 1967 का वह दौर था, जब मशहूर मिठाई रसगुल्ले ने सरकार ही बदल दी थी। तब कारण कुछ और था लेकिन बदले सियासी माहौल में रसगुल्लों की माया भी बदल रही है। पढ़िए कानाराम मुण्डियार की विशेष रिपोर्ट …

नई दिल्लीMay 11, 2024 / 07:35 am

Shaitan Prajapat

Lok Sabha Elections 2024 : पश्चिम बंगाल में वर्ष 1967 का वह दौर था, जब मशहूर मिठाई रसगुल्ले ने सरकार ही बदल दी थी। तब कारण कुछ और था लेकिन बदले सियासी माहौल में रसगुल्लों की माया भी बदल रही है। पश्चिम बंगाल में अब रसगुल्ले को अलग-अलग उपमा दी जा सकती है। एक रसगुल्ला सत्तारूढ़ दल टीएमसी के नेताओं से जुड़ा है जिसे खाते-खाते लोग ऊबनेकी बात भी करते नजर आ जाएंगे। तो दूसरा रसगुल्ला प्रमुख प्रतिपक्षी दल भाजपा के नेताओं से जुड़ा है जिसके स्वाद को लोग परखने की बात कर रहे हैं। तीसरा रसगुल्ला बंगाल में भ्रष्टाचार का पर्याय बन गया है जिसे खिलाए बिना सरकारी दफ्तरों में कामकाज इतना आसान नहीं होता।

पश्चिम बंगाल की सियासत से रसगुल्लों का पुराना नाता

पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव अभी आखिरी चरण तक होने हैं। बंगाल की बात हो और रसगुल्ला (स्थानीय बोली में रसोगोल्ला) की चर्चा न हो ऐसा संंभव नहीं। प. बंगाल में रसगुल्ला ही ऐसा मिष्ठान है, जिसका यहां की सियासत से पुराना नाता रहा है और ऐसा कोई चुनाव नहीं, जहां रसगुल्ला मौजूद न हो। लोग तो रसगुल्लों को बेहद लोकतांत्रिक होने की उपमा भी देते हैं। तर्क है कि रसगुल्ला मुंह में आसानी से घुल जाता है।

ऐसे लगी पाबंदी, फिर बदल गई सरकार

लोकसभा चुनाव के बीच लोग यहां उस घटनाक्रम को चटखारे लेकर याद करना भी नहीं भूलते जिसमें रसगुल्ले ने बंगाल में एक बार सरकार ही बदल थी। वर्ष 1962 में पश्चिम बंगाल में कांग्रेस से प्रफुल्लचन्द्र सेन मुख्यमंत्री बने थे। तीन साल बाद 1965 में देशव्यापी सूखे के साथ राज्य में खाद्यान संकट गहरा गया। इस संकट में प्रति व्यक्ति दूध की आपूर्ति भी प्रभावित हुई। प्रफुल्ल सरकार ने संकट से उबरने के लिए जनहित में कई कड़े फैसले किए। दूध संकट में मिठाइयां बनने का कारण सामने आया तो उन्होंने दूध व छेने से बनने वाली मिठाइयोंं पर पाबंदी लगा दी। इन मिठाइयों में रसगुल्ला भी बनना बंद हो गया और दो साल तक रसगुल्ला नहीं मिला तो लोग खफा हो गए। सरकार के खिलाफ आंदोलन खड़ा हो गया और वर्ष 1967 में राज्य में फिर चुनाव की बारी आई तो प्रफुल्ल सेन सरकार को पराजय का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री सेन खुद अपनी सीट भी नहीं बचा पाए। उनकी हार के अन्य कारणों में रसगुल्ले पर पाबंदी भी अहम बिन्दु रहा।

चुनाव के पोस्टर-बैनर्स पर छाया था रसगुल्ला

नई सरकार में बांग्ला कांग्रेस के नेता अजॉय कुमार मुखर्जी मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने रसगुल्ला बनाने की पाबंदी हटा दी। उसके बाद रसगुल्ला फिर से बनने लगा। इन चुनावों के बाद रसगुल्ला इतना चर्चा में आया कि कई सालों तक चुनाव प्रचार के पोस्टर-बैनर पर नेताओं के साथ रसगुल्ले की तस्वीर भी नजर आती रही। हालांकि पिछले कुछ चुनावों से पोस्टर-बैनर्स पर अब रसगुल्ला नहीं दिख रहा, लेकिन रसगुल्लों के बिना किसी भी दल के चुनाव अभियान की एक्सप्रेस दौड़ती ही नहीं। इसलिए बंगाल में रसगुल्लों की खपत भी बड़ी तादाद में हो रही है।

नए रसगुल्लों का स्वाद परख रहे लोग

पश्चिम बंगाल राज्य में चुनावी यात्रा के दौरान आसनसोल, बर्धमान-दुर्गापुर, हावड़ा, कोलकाता शहर, कृष्णनगर, रानाघाट, बहरमपुर, मुर्शिदाबाद सहित अन्य क्षेत्रों में न केवल चुनावी तस्वीर को देखा, बल्कि रसगुल्ले से इर्द-गिर्द घूम रही सियासत को भी समझा। सभी जगहों पर देखा कि सरकारी रसगुल्लों की ‘मिठास’ लोगों की मजबूरी है। डर ऐसा कि लोग सत्ता के विरोध वाले रसगुल्ले खाने के लिए मुंह ही नहीं खोल पाते। फिर भी कई लोगों का कहना है कि नए स्वाद के रसगुल्लों की गुणवत्ता परख रहे हैं। चुनावी यात्रा के दौरान मैं जहां पर भी गया, लोग मुखरता से नहीं बोले। कुछ इतना ही कहा कि इतना ही सुन लीजिए, सभी लोग अच्छे है। लेकिन लोगों ने यह इशारा जरूर कर दिया कि अब पुराने रसगुल्लों की जगह नए रसगुल्लों का स्वाद चख रहे हैं।

Hindi News/ National News / Ground Report : कभी रसगुल्ले ने बदल दी थी सरकार, आज भी बंगाल में चुनावों में हावी ‘रसगुल्ला’

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो