कैसे की शुरुआत आपने सड़क किनारे एक गाड़ी में परिवार लेकर रहने वाले लोग देखे होंगे। इन्हें गाड़िया लुहार कहा जाता है। ये महाराणा प्रताप की सेना के लिए हथियार बनाया करते थे। जब महाराणा प्रताप जंगल में आ गए तो इन्होंने भी आजीवन घुमंतू जीवन जीने की सौगंध ली, जिसे आज भी निभा रहे हैं। एक दिन डॉ. हृदेश चौधरी की नजर इनके बच्चों पर पड़ी तो उनका हृदय द्रवित हो गया। फिर विचार आया कि इनके जीवन में शिक्षा का उजियारा कैसे लाया जा सकता है। परिवार में गईं। ना-नुकुर हुई। खूब समझाया। गाड़ी के नीचे बैठकर पढ़ाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे बात बनती गई। फिर उन्होंने अपने घर में ही बच्चों को शिक्षित करना शुरू किया। अब तो पूरी क्लास सकती है। बच्चों को स्कूल में दाखिला कराया जाता है। सारा व्ययभार डॉ. हृदेश चौधरी उठा रही हैं।
अपने घर में चला रहीं पाठशाला घुमन्तु पाठशाला की संस्थापक डॉ हृदेश चौधरी का संकल्प है कि वे समाज के सर्वाधिक उपेक्षित इस घुमंतू समाज के बच्चों को विधिवत शिक्षा प्रदान करके उनको समाज की मुख्यधारा में शामिल करेंगी। आराधना संस्था की स्कूल वैन सुबह 8 बजे तक शहर के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर इनकी झोपड़ – झुग्गियों से बच्चों को लेकर आती है और दोपहर 2 बजे तक आराधना भवन (सिकंदरा-बोदला रोड, निकट कारगिल पेट्रोल पम्प) में संचालित घुमन्तु पाठशाला में इनको शिक्षा प्रदान की जाती है।
पहचान पत्र बनवाए ताजनगरी में सड़क के किनारे करीब 500 गाड़िया लुहार जाति के परिवार निवास करते हैं और वो सभी सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। इन परिवारों के आधार कार्ड और वोटर कार्ड बनवाने में भी आराधना संस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। डॉ. हृदेश चौधरी के नेतृत्व में इन परिवारों को सरकारी लाभ दिलाने की पहल भी की गई किन्तु सरकारी अमले की उदासीनता के चलते यह संभव नहीं हुआ। फिर उन्होंने अपने स्तर से ही कुछ लोगों का सहयोग लेकर इन परिवारों को जरूरत का सामान मुहैया कराया। उनके इस पुनीत कार्य को सराहते हुए अनेक बड़ी संस्थाओं, समाचार पत्रों और जिला प्रशासन ने उनको सम्मानित भी किया है।
इंटर्नशिप करने आ रहे घुमंतू पाठशाला में पूरे देश के छात्र प्रशुक्षिता (इंटर्नशिप), शोध और अध्ययन करने आ रहे हैं। इस समय एनएमआईएमएस कॉलेज मुंबई के रोहित पाठक और प्रियंका करीरा आए हुए हैं। सिम्बोसिस लॉ कॉलेज नागपुर से यश पांडे और रुद्र शर्मा ने नवम्बर माह में, दून कॉलेज से कृतिका सिंघल ने दिसम्बर में इंटर्नशिप की थी। इग्नू, दिल्ली से एमएसडब्ल्यू की दो छात्राएं आई हैं। घूमंतू पाठशाला की धूम विदेश में भी है। हाल ही में अमेरिका से शालीन अपनी पत्नी हरिका के साथ आए। पाठशाला के बच्चों के साथ अपना समय गुजारा। संस्था की अन्य गतिविधियों की जानकारी ली। आराधना संस्था प्रतिवर्ष नए साल में गरीब और जरूरतमंद लोगों के लिए एक कपड़ा मेला का आयोजन करती है, जिसमें संस्था के सदस्यों के घरों से एकत्रित पुराने साफ सुथरे और ऊनी कपड़े एकत्रित करके वितरित किये जाते हैं। साथ ही साहित्यिक और विभिन्न त्योहारों पर कार्यक्रम होते रहते हैं।
पत्रिकाः सवाल ये है कि आपको मिला क्या?