विवाह तय होने के बाद घर से बाहर नहीं निकलता है दूल्हा इस दौरान दूल्हा घर पर ही रहा। सामान्यता विवाह तय होने के बाद दूल्हा घर से बाहर नहीं निकलता है। दुल्हन के साथ बारात दूल्हे के गांव में पहुंचने के बाद गांव की सीमा पर दूल्हे ने फिर से दुल्हन के साथ विधिवत तरीके से विवाह किया और दुल्हन को घर ले आया, इसके बाद विवाह की रस्म पूरी हुई।
शहनाई व ढोल रखना और पूरे मन से नृत्य करना जरूरी आदिवासी समाज में विवाह के अवसर पर ज्यादा धूमधाम या दिखावा नहीं होता। वर-वधू को छोडक़र अन्य लोगों के वस्त्र सादे होते हैं। महिलाएं चांदी के प्राचीन आभूषण पहनती हैं। वधू व वर पक्ष के हर व्यक्ति की कद-काठी ‘जीरो फैट’ होती है, यह प्रकृति का वरदान है। गांव के अनसिंह राठवा के अनुसार भले ही अब डीजे का बहुत उपयोग किया जाता है, लेकिन शहनाई व ढोल रखना और पूरे मन से नृत्य करना जरूरी होता है। सादे भोजन में एक मिठाई जरूर होती है। आदिवासी बोली में रातभर विवाह के गीत गाए जाते हैं। कन्या पक्ष की ओर से गाया जाने वाला एक गाना पूरा होने पर विदाई के अवसर की भांति रोते हैं।
प्रकृति की गोद में बसे हैं तीनों गांव विशेष तौर पर दिवासा, देवदिवाली पर आदिवासी समुदाय की ओर से भरमादेव का परंपरागत तौर पर अनुष्ठान किया जाता है। उस समय गांवों में उत्सव का माहौल रहता है। तीनों गांव प्रकृति की गोद में बसे हुए हैं। गांव की भीतरी सडक़ें आरसीसी की बनी हैं। घरों में बिजली के कनेक्शन हैं, खेती के लिए घरों में कुएं और पीने के पानी के लिए नल हैं। गांव के अधिकांश घर पक्के हैं। छोटा उदेपुर-फेरकुवा राजमार्ग से इन गांवों में पहुंचा जा सकता है।