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अहमदाबाद

पहले दूल्हे की बहन लेती है दुल्हन के साथ फेरे, फिर होता है विधिवत विवाह

अनोखी परम्परा : छोटा उदेपुर के अंबाला, सुरखेडा व सनेडा गांवों में सदियों पुरानी परंपरा बरकरार
 

अहमदाबादApr 26, 2022 / 10:14 pm

Rajesh Bhatnagar

पहले दूल्हे की बहन लेती है दुल्हन के साथ फेरे, फिर होता है विधिवत विवाह

पहले दूल्हे की बहन लेती है दुल्हन के साथ फेरे, फिर होता है विधिवत विवाह

जफर सैयद
वड़ोदरा. छोटा उदेपुर जिले में मध्य प्रदेश की सीमा के समीप फेरकुवा के आस-पास रहने वाले कुछ गांवों के आदिवासी लोगों ने 21वीं सदी में आधुनिक युग के साथ बदलाव लाने के साथ ही देव प्रकोप की अपनी प्राचीन परंपरा को बनाए रखा है। फेरकुवा के आस-पास के अंबाला, सुरखेडा व सनेडा गांवों से जाने वाली बारात में दूल्हा नहीं जाता और ना ही इन गांवों में आने वाली बारात में दूल्हा आता है, बल्कि दूल्हे के बजाए बारात के साथ पहुंचकर उसकी बहन फेरे लेती है।
मध्य प्रदेश से सटे तीनों गांवों में रहने वाले आदिवासी समुदाय का यह रिवाज दिलचस्प है। अंबाला गांव के समीप दाहिनी ओर एक छोटी पहाड़ी पर देवता भरमादेव हैं। भरमादेव इन गांवों के आदिवासी समुदाय के आराध्य देवता हैं। पहाड़ी की तलहटी में एक अन्य देवता खूनपावा का निवास है। तीनों गावों के ग्राम देवता भरमादेव हैं। भरमादेव और खूनपावा देव की उत्पत्ति के बारे में कोई कहानी ज्ञात नहीं है लेकिन भरमादेव कुंवारे हैं।
भरमादेव स्वयं कुंवारे होने के कारण अंबाला, सुरखेडा और सनाडा गांव में कोई युवक अपनी बारात लेकर नहीं आता और इन गांवों से कोई युवक अपनी बारात में नहीं जाता। भरमादेव के प्रकोप से बचने के लिए दूल्हे की बहन फेरे के लिए गांव में आती है और दूल्हे की बहन ही गांव से बारात लेकर जाती है, यह परंपरा सदियों से चल रही है।
अंबाला गांव के निवासी वेसण के अनुसार कुछ साल पहले गांव के तीन युवकों ने सदियों पुरानी परंपरा को बदलने की कोशिश की थी लेकिन विवाह के कुछ समय बाद संयोगवश किसी कारण से तीनों युवकों की मृत्यु हो गई। इसलिए ग्राम देवता भरमादेव पर आदिवासी समुदाय की आस्था दृढ़ हो गई। इन तीनों गांवों के लोग देव प्रकोप से बचने के लिए परंपरा को नजरअंदाज नहीं करते हैं।
इसी परंपरा के तहत हाल ही एक विवाह समारोह हुआ। अंबाला गांव के हरसिंह रायसिंह राठवा के पुत्र नरेश का विवाह फेरकुवा गांव के तडेवला फलिया निवासी वजलिया हिम्मत राठवा की पुत्री लीला से हुआ। इस परंपरा को अन्य गांवों के आदिवासी समुदाय की ओर से भी पूरा सम्मान दिया जाता है। यानी अंबाला से दूल्हे नरेश की बारात लेकर नरेश के बजाए उसकी बहन असलीबेन तडेवला फलिया पहुंची। आदिवासी समुदाय की इस परंपरा से धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है। असलीबेन अपने भाई नरेश की बारात लाने के बाद बधाई, दुल्हन को चुंदड़ी ओढाने आदि की विधि की गई। गांव के पटेल या पुजारी ने यह विधि कराई। बाद में दूल्हे की बहन अग्नि की साक्षी में दुल्हन के साथ फेेरे लिए। दोनों ही बांस से बने पात्र लेकर आए, उनमें चावल और विवाह का अन्य सामान था।
विवाह तय होने के बाद घर से बाहर नहीं निकलता है दूल्हा

इस दौरान दूल्हा घर पर ही रहा। सामान्यता विवाह तय होने के बाद दूल्हा घर से बाहर नहीं निकलता है। दुल्हन के साथ बारात दूल्हे के गांव में पहुंचने के बाद गांव की सीमा पर दूल्हे ने फिर से दुल्हन के साथ विधिवत तरीके से विवाह किया और दुल्हन को घर ले आया, इसके बाद विवाह की रस्म पूरी हुई।
शहनाई व ढोल रखना और पूरे मन से नृत्य करना जरूरी

आदिवासी समाज में विवाह के अवसर पर ज्यादा धूमधाम या दिखावा नहीं होता। वर-वधू को छोडक़र अन्य लोगों के वस्त्र सादे होते हैं। महिलाएं चांदी के प्राचीन आभूषण पहनती हैं। वधू व वर पक्ष के हर व्यक्ति की कद-काठी ‘जीरो फैट’ होती है, यह प्रकृति का वरदान है। गांव के अनसिंह राठवा के अनुसार भले ही अब डीजे का बहुत उपयोग किया जाता है, लेकिन शहनाई व ढोल रखना और पूरे मन से नृत्य करना जरूरी होता है। सादे भोजन में एक मिठाई जरूर होती है। आदिवासी बोली में रातभर विवाह के गीत गाए जाते हैं। कन्या पक्ष की ओर से गाया जाने वाला एक गाना पूरा होने पर विदाई के अवसर की भांति रोते हैं।
प्रकृति की गोद में बसे हैं तीनों गांव

विशेष तौर पर दिवासा, देवदिवाली पर आदिवासी समुदाय की ओर से भरमादेव का परंपरागत तौर पर अनुष्ठान किया जाता है। उस समय गांवों में उत्सव का माहौल रहता है। तीनों गांव प्रकृति की गोद में बसे हुए हैं। गांव की भीतरी सडक़ें आरसीसी की बनी हैं। घरों में बिजली के कनेक्शन हैं, खेती के लिए घरों में कुएं और पीने के पानी के लिए नल हैं। गांव के अधिकांश घर पक्के हैं। छोटा उदेपुर-फेरकुवा राजमार्ग से इन गांवों में पहुंचा जा सकता है।

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