बता दें कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को बनाने वाले सर सैयद में एक अलग ही जुनून था। इसके लिए उन्होंने तवायफों के कोठे से भी चंदा लिया था। इतना ही नहीं, वह खुद लैला-मजनूं के नाटक में लैला बनकर मंच पर उतर आए थे। एएमयू के उर्दू डिपार्टमेंट के हेड प्रो. राहत अबरार बताते हैं कि सन 1869-70 में बनारस में सर सैयद सिविल जज के तौर पर पोस्टेड थे। तब उनका लंदन आना-जाना लगा रहता था और वहां उन्होंने ऑक्सफोर्ड व कैम्ब्रिज जैसी यूनिवर्सिटी देखी थीं। बताया जाता है कि तब उनके जेहन में आया कि एक यूनिवर्सिटी बनाई जाए जो ऑक्सफोर्ड ऑफ द ईस्ट कहलाए। बस वहीं से उनका यह सपना जुनून बन चुका था। इसके लिए उन्होंने 9 फरवरी 1873 को एक कमेटी बनाई। कमेटी ने तमाम रिसर्च कर 24 मई 1975 को एक मदरसा बनाने का ऐलान किया। क्योंकि उस समय प्राइवेट यूनिवर्सिटी बनाने की अनुमति नहीं मिलती थी। हालांकि इसके 2 साल बाद, 8 जनवरी 1877 को मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज शुरू हो गया।
यह भी देखें: कड़ाके की ठंड का सितम जारी, नहीं कोई राहत अलीगढ़ का इसलिए किया गया चयन प्रोफेसर बताते हैं कि सर सैयद की मंशा थी कि यूनिवर्सिटी उस जगह बनाई जाए जहां का वातावरण सबसे अच्छा हो। इसके लिए डॉ आर जैक्सन की अगुआई में उन्होंने एक तीन सदस्यीय कमेटी बनाई। जैसा कि उस समय कोई पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड नहीं था तो इन लोगों ने अपनी रिसर्च की और 3 पॉइंट्स पर अपनी रिपोर्ट दी। जिसमें बताया गया कि उस समय नॉर्थ इंडिया में सबसे बढ़िया वातावरण अलीगढ़ का था। कारण, अलीगढ़ में उस समय जमीन के अंदर पानी का लेवल 23 फीट पर था। साथ ही अलीगढ़ ट्रांसपोर्ट फ्रेंडली भी था। यहां जीटी रोड बन चुका था और रेलवे ट्रैक भी बिछ गया था। इससे आसपास के जिलों के बच्चे भी आसानी से यूनिवर्सिटी तक पहुंच सकते थे। इसके अलावा इस्लाम में हजरत अली को ज्ञान का द्वार माना गया है और हजरत अली के नाम पर बने इस शहर को यूनिवर्सिटी के लिए सही माना गया।
pm modi , डाक टिकट भी करेंगे जारी यूनिवर्सिटी के लिए इस तरह चंदा किया था इकट्ठा एएमयू में हिस्ट्री डिपार्टमेंट के पूर्व चेयरमैन और कोआर्डिनेटर प्रो. नदीम रिजवी बताते हैं कि यूनिवर्सिटी बनाने के लिए सर सैयद ने खूब संघर्ष किया था। उस दौरान उन्होंने पैसे इकट्ठा करने के लिए नए-नए तरीके ईजाद किए। इसके लिए उन्होंने भीख तक मांगी। वह 1888 के एक किस्से का जिक्र करते हुए बताते हैं कि चंदा इकट्ठा करने के लिए सर सैयद ने अलीगढ़ में एक नुमाइश में अपने कॉलेज के बच्चों का लैला-मजनूं नाटक रखवाया। जिसमें लड़कियों का रोल भी लड़के किया करते थे। तब लैला बनने वाले लड़के की तबीयत खराब हो गयी थी। जिस कारण सर सैयद खुद पैरों में घुंघरू बांधकर स्टेज पर आ गए थे। वहीं यूनिवर्सिटी के लिए वह चंदा लेने के लिए तवायफों के कोठों पर भी पहुंच गए थे। जिसपर कट्टरपंथियों ने ऐतराज जताया था।