याची के अधिवक्ता का कहना था कि 921 प्रयोगशाला सहायकों के पदों का विज्ञापन निकाला गया जिसके आवेदन की अंतिम तिथि 5 अक्टूबर 16 थी। आवेदकों के लिए उ.प्र. राज्य मेडिकल फैकल्टी द्वारा प्रदत्त लैब टेक्नीशियन का डिप्लोमा अनिवार्य था। 20 नवम्बर 16 को लिखित परीक्षा हुई और साक्षात्कार के बाद अंतिम परिणाम 15 जून 11 को जारी किया गया। याचीगण भी साक्षात्कार में शामिल हुए मगर असफल रहे। जारी परिणाम को यह कहते हुए चुनौती दी गयी कि कई ऐसे अभ्यर्थियों का चयन किया गया है जिनके पास आवेदन के समय डिप्लोमा नहीं था।
उनके डिप्लोमा का रिजल्ट 30 नवम्बर 16 को जारी हुआ जबकि आवेदन की अंतिम तिथि 5 अक्टूबर 16 थी। विज्ञापन में स्पष्ट शर्त थी कि आवेदन की तिथि पर अर्हता रखने वाले ही पात्र होंगे। इसके बावजूद ऐसे लोगों का न सिर्फ आवेदन स्वीकार किया गया बल्कि उनको सफल भी घोषित कर दिया गया। इसी प्रकार से लिखित परीक्षा में असफल रहे लोगों को भी अंतिम रूप से चयनित किया गया है। चयन में गलत तरीके से क्षैतिज आरक्षण लागू करने तथा अंतिम परिणाम में सिर्फ रोल नंबर जारी करने का भी आरोप है। कोर्ट ने इस मामले में 25 जुलाई तक जवाब मांगा है।
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