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पांडुपोल हनुमान : अलवर में हनुमान ने भीम को दिए थे दर्शन, भीम ने गदा के प्रहार से तोड़ डाला था पहाड़

Pandupol Hanuman Temple : Bheem And Hanuman Story In Hindi आज पांडुपोल हनुमान का मेला है, यहीं पर ही हनुमानजी ने भीम को दर्शन दिए थे।

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अलवर

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Lubhavan Joshi

Sep 03, 2019

Pandupol Hanuman Temple In Alwar Hanuman And Bheem Story In Hindi

पांडुपोल मंदिर में श्रंगारित हनुमान की प्रतिमा।

अलवर. Pandupol Hanuman Temple : Bheem And Hanuman Story In Hindi
अलवर जिले के ( sariska tiger reserve ) सरिस्का बाघ परियोजना के अंर्तगत ( pandupol hanuman ) पांडुपोल हनुमान जी लक्खी मेला शुरु हो गया है। वहीं मंदिर में मुख्य भर मेला मंगलवार को है। ( pandupol temple ) पांडूपोल हनुमान मंदिर में लक्खी मेले के अवसर पर करीब 50 हजार श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। पांडूपोल हनुमान मंदिर अलवर शहर के करीब 55 किलोमीटर दूर है। सरिस्का के बीचों-बीच स्थित इस हनुमान मंदिर का इतिहास महाभारत काल से है। किवदंती है कि महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान भीम ने अपनी गदा से पहाड़ में प्रहार किया था, गदा के एक वार से पहाड़ टूट गया और पांडवों के लिए रास्ता बन गया।

बजरंग बली ने भीम को दिए थे दर्शन

पांडूपोल में बजरंग बली ने भीम को दर्शन दिए थे। महाभारत काल की एक घटना के अनुसार इसी अवधि में द्रौपदी अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी । एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुन्दर पुष्प आया द्रोपदी ने उस पुष्प को प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे अपने कानों के कुण्डलों में धारण करने की सोची। स्नान के बाद द्रोपदी ने महाबली भीम को वह पुष्प लाने को कहा तो महाबली भीम पुष्प की खोज करता हुआ जलधारा की ओर बढऩे लगा। आगे जाने पर महाबली भीम ने देखा की एक वृद्ध विशाल वानर अपनी पूंछ फैला आराम से लेटा हुआ था। वानर के लेटने से रास्ता पूर्णतया अवरुद्ध था ।

यहां संकरी घाटी होने के कारण भीमसेन के आगे निकलने के लिए कोई ओर मार्ग नही था। भीमसेन ने मार्ग में लेटे हुए वृद्व वानर से कहा कि तुम अपनी पूंछ को रास्ते से हटाकर एक ओर कर लो तो वानर ने कहां कि मै वृद्व अवस्था में हूं। आप इसके ऊपर से चले जाएं, भीम ने कहा कि मैं इसे लांघकर नहीं जा सकता, आप पूंछ हटाएं। इस पर वानर ने कहा कि आप बलशाली दिखते हैं, आप स्वयं ही मेरी पूंछ को हटा लें। भीमसेन ने वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की तो पूंछ भीमसेन से टस से मस भी ना हो सकी। भीमसेन की बार बार कोशिश करने के पश्चात भी भीमसेन वृद्ध वानर की पूंछ को नही हटा पाए और समझ गए कि यह कोई साधारण वानर नही है ।

भीमसेन ने हाथ जोड़ कर वृद्ध वानर को अपने वास्तविक रूप प्रकट करने की विनती की । इस पर वृद्ध वानर ने अपना वास्तविक रूप प्रकट कर अपना परिचय हनुमान के रूप में दिया । भीमसेन ने सभी पांडव को वहां बुला कर वृद्ध वानर की लेटे हुए रूप में ही पूजा अर्चना की। इसके बाद पांडवों ने वहां हनुमान मंदिर की स्थापना की जो आज पांडुपोल हनुमान मंदिर नाम से मशहूर है। अब हर मंगलवार व शनिवार को यहां भारी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं, मंदिर जन-जन की आस्था का केन्द्र है।