नियति की मार ने इन फनकारों को दो जून की रोटी के लिए तरसा दिया। करीब 300-350 लोगों की इस बस्ती में वर्तमान में हालात ये हैं कि बस्ती के बड़े बुजुर्ग ही नहीं बल्कि बच्चे भी भीख मांगते हैं। वे रोज सुबह घर से निकलते हैं और शहर के चौराहा-तिराहा पर भीख मांग शाम को घर लौटते हैं। इन बच्चों की शिक्षा के लिए अब तक प्रशासन के साथ जनप्रतिनिधियों ने भी ध्यान नहीं दिया है।
भीख मांगना इनकी मजबूरी सरकार जहां भिक्षावृत्ति को बालश्रम नहीं मानती, वहीं पेटपालन के लिए भीख मांगना इनकी मजबूरी है। बस्ती के लोगों ने बताया कि वे अपने बच्चों से भीख मंगवाना नहीं चाहते, लेकिन दिनभर भीख मांगने के बाद भी कई बार इतना आटा भी नहीं मिलता कि बच्चों को भरपेट खाना खिलाया जा सके।
मजबूरन उनके बच्चे भी भीख मांगने निकल जाते है। बस्ती के मातादीन, हरवेदी आदि ने बताया कि मनरेगा में कोई उन्हें मजदूरी नहीं देता। सरकार ने उनके वोटर कार्ड बना वोट डालने का अधिकार तो दे दिया, लेकिन रोजगार का कोई साधन मुहैया नहीं कराया। एेसे में भीख मांगकर पेट पालन उनकी मजबूरी बन गया है।
मानव तस्करी विरोधी यूनिट व चाइल्ड लाइन ने हाल ही सपेरा बस्ती के 9 बच्चों को शहर में भीख मांगते पकड़ा। इनमें चार लड़कियां भी शामिल थी। अललवर के उप श्रम आयुक्त सुरेश शर्मा का कहना है कि भीख मांगना बालश्रम में नहीं आता। यह सही है कि ये बच्चे मजबूरी में भीख मांगने आते हैं। हमारे यहां इनके परिवार के लिए रोजगार की भी कोई योजना नहीं है। बच्चों को जरूर हम प्रशिक्षण दिलवा सकते हैं।