ऐसे ही संघर्ष का उदाहरण अंबिकापुर के गांधीनगर क्षेत्र के तुर्रापानी निवासी सीता गुप्ता प्रस्तुत कर रही हैं। पति व 2 बेटों को खोने के बाद उन्होंने बाकी बचे अपने 2 बेटों के लिए आज भी संघर्ष जारी रखा है।
बेटों को पढ़ाने वह पिछले 15 साल से चाय बेच रही है। गांधीनगर क्षेत्र में वह ‘चाय वाली दीदी’ के नाम से मशहूर है। आज उनके छोटे बेटे ने खुद बीसीए द्वितीय वर्ष में पढ़ते हुए कंप्यूटर की किताब लिख दी। बेटे की इस उपलब्धि पर सीता गुप्ता बताती हैं कि उनका संघर्ष धीरे-धीरे सफल हो रहा है।
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‘चाय वाली दीदी’ के संघर्ष की कहानी सुनकर आंखों में आंसू आ जाते हैं। पति की हत्या व दो बेटों को खोने के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। मैनपाट (Mainpat) के ग्राम बिलाईढोढ़ी निवासी 49 वर्षीय सीता गुप्ता की गांधीनगर साईं मंदिर के समीप उनकी चाय की दुकान है।
जनवरी 2004 में उनके पति सूरज गुप्ता की गांव के कुछ लोगों ने हत्या (Murder) कर लाश कुएं में डाल दी थी। यहीं से उसका संघर्ष भरा जीवन शुरू हुआ। पति की मौत के बाद गांव में उनका जीना दुश्वार हो गया था। पति के छोटे किराने की दुकान को चलाने देना गांव वालों का रास नहीं आया। पति के हत्यारे भी उसे तंग करने लगे थे।
इसके बाद वह अपने 4 बेटों लव 13 वर्ष, कुश 11 वर्ष, राजेश 9 वर्ष व विनोद 7 वर्ष को लेकर अपने जेठ-जेठानी के घर ग्राम कोतबा, जशपुर चली गई। यहां एक महीने रहने के बाद खाने-पीने के लाले पड़ गए। इस बीच वह वहां के एक निजी स्कूल में प्यून की नौकरी मिली। यहां स्कूल के प्राचार्य उसे अपने घर में भी काम करने कहते।
मना करने पर उसे प्रताडि़त किया जाने लगा तथा नौकरी से निकाल दिया गया। दुखों का पहाड़ तो तब टूट पड़ा, जब पति की मौत (Husband murder) के 6 महीने बाद ही उसके मझले बेटे ने फांसी लगा ली। उसके दुखों का अंत यहीं नहीं हुआ। एक बेटे की मौत का गम वह भुला भी नहीं पाई थी कि बड़ा बेटा मलेरिया की चपेट में आ गया। गरीबी से वह इस कदर लाचार थी कि चाहकर भी अपने बेटे का इलाज नहीं करा पाई।
दूसरों के रहमों-करम से चल रहे इलाज के बीच बड़े बेटे की भी मौत हो गई। अब वह पूरी तरह से टूट चुकी थी। बेटे राजेश व विनोद ही उसका सहारा बचे थे। बेटों को पालने उसने राइस मिल में मजदूरी शुरू की, यहां भी परेशानियों से उसका साथ नहीं छोड़ा। अब उसके सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी थी और दो बेटों की जिम्मेदारी। ऐसे समय में उसने हार नहीं मानी और जिंदगी से जंग लडऩा जारी रखा।
युवा व्यवसायी ने की मदद
जब अपनों से वह ठुकरा दी गई तो गांधीनगर के एक युवा व्यवसायी व वर्तमान में विद्युत विभाग में पदस्थ यतिंद्र गुप्ता ने उसकी मदद की। यंू तो सीता गुप्ता से उसकी मुलाकात पति की मौत के 2 महीने बाद ही हो गई थी। इस दौरान भी उन्होंने उसकी सहायता करने प्रशासन व पुलिस तक दौड़ लगाई थी।
पहले दिन 32 रुपए हुई थी कमाई
सीता गुप्ता बताती हैं कि जब वे गांधीनगर पहुंची थीं तो कपड़े के नाम पर दो साडिय़ां ही थीं। बेटों के एक जोड़ी कपड़े में ठीक से बटन तक नहीं थे। जब चाय दुकान खुली तो पहले दिन 32 रुपए कमाई हुई। लॉकडाउन (Lockdown) से पहले तक चाय वाली दीदी प्रतिदिन करीब 150 कप चाय बेच लेती थीं।
सीता गुप्ता बताती हैं कि जब वे गांधीनगर पहुंची थीं तो कपड़े के नाम पर दो साडिय़ां ही थीं। बेटों के एक जोड़ी कपड़े में ठीक से बटन तक नहीं थे। जब चाय दुकान खुली तो पहले दिन 32 रुपए कमाई हुई। लॉकडाउन (Lockdown) से पहले तक चाय वाली दीदी प्रतिदिन करीब 150 कप चाय बेच लेती थीं।
वर्ष 2014 में उसने जमीन खरीदकर घर भी बनवा लिया। बेटों को वह अभी अच्छी शिक्षा दिला रही है। बेटों के लिए एक मां का संघर्ष आज भी जारी है। बेटे भी मां के काम में हाथ बंटाते हैं।
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छोटे बेटे ने लिखी किताब
चाय वाली दीदी का बड़ा बेटा फिलहाल कंप्टीशन एग्जाम की तैयारी कर रहा है जबकि छोटा बेटा विनोद गुप्ता (Vinod Gupta) फाइनल इयर का छात्र है। द्वितीय वर्ष में पढ़ते समय ही उसने बीसीए द्वितीय वर्ष की किताब लिख दी। पुस्तक का विमोचन भी किया गया। इसकी सराहना पीजी कॉलेज के प्राचार्य समेत अन्य प्रोफेसरों ने भी की।