हवाना. चीन ने कम्युनिस्ट राष्ट्र होने के नाते हमेशा क्यूबा का हमेशा समर्थन किया लेकिन कम्युनिस्ट और क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो ने दशकों पूर्व माओं व चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का कभी समर्थन नहीं किया। इसके बावजूद कास्त्रो के निधन के बाद चीन ने उन्हें अपने युग का महान व्यक्तित्व करार दिया है। पर सवाल यह है कि चीन की इस सहयोगी रुख के बावजूद क्यूबा के कम्युनिस्ट नेता ने माओ का समर्थन क्यों नहीं किया?
कास्त्रो का समाजवादी मॉडल ऐतिहासिक
क्यूबा के क्रांतिकारी नेता फिदेल कास्त्रो की मौत की घोषणा के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जारी बयान में कहा है कि वह हमारे युग के महान व्यक्तित्व के रूप में याद किये जाएंगे। चीन की सरकारी मीडिया ने अपने प्रसारण में कहा कि राष्ट्रपति जिनपिंग ने कम्युनिस्ट क्यूबा के संस्थापक फिदेल कास्त्रो के योगदान ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने कहा कि कास्त्रों ने दुनिया के समक्ष जो समाजवादी विकास का मॉडल दिया वह ऐतिहासिक उपलब्धियों में से एक है। चीनी मीडिया ने इस बात का भी जिक्र किया है कि हवाना और बीजिंग के बीच 1960 में राजनयिक संबंध बने थे लेकिन शीत युद्ध के दौरान करीब दो दशकों तक दोनों एक दूसरे के विरोधी बने रहे। 1989 तक दोनों देशों के बीच दूरियां बनीं रही। कास्त्रों ने 1995 में चीन का एकमात्र दौरा किया था, जिसके बाद से चीन उनका प्रमुख कारोबारी साझीदार हो गया।
क्यूबा और चीन के बीच बनी रही दूरियां
इसके विपरीत कास्त्रों ने 1977 में एक अमरीकी पत्रकार से कहा था कि मुझे विश्वास है कि माओ ने जो कुछ किया उसे अपने पैरों तले कुचल दिया। मैं आश्वस्त हूं कि कुछ समय बाद चीन के लोग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी भी इस बात से सहमत होंगी। उन्होंने कहा कि मैंने भी सत्ता हासिल की पर हमने कभी उसका दुरुपयोग नहीं किया। न ही उसे अपने तक सीमित रखा। उस समय उन्होंने कहा कि चीन अमरीका के लिए करीब का सहयोगी हो सकता है पर क्यूबा के लिए वह दुश्मन देश की तरह है।
चीन बना क्यूबा का प्रमुख कारोबारी साझेदार
चीन एनर्जी सिक्योरिटी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन विक्टर गाओ ने कहा कि उस दौर में शीत युद्ध चरम पर था। चीन और क्यूबा कम्युनिस्ट राष्ट्र होते हुए भी वैचारिक स्तर विपरीत धुरी पर टिके रहे। इसी की वजह से क्यूबा सोवियत संघ का एक मजबूत सहयोगी बना। जबकि चीन का सोवियत संघ से माक्र्स और लेनिन के विचारों की व्याख्या को लेकर मतभेद बना रहा। इस बात कको देखते हुए चीन ने अमरीका के साथ बेहतर संबंध बना लिये जो आर्थिक विकास में सहायक साबित हुआ जबकि सोवियत संघ के पतन का कारण बना। उनका मानना है कि फिदेल कास्त्रो चीन के साथ असज महसूस करते थे। वह आज भी उनके विरोध में ही खड़े थे। कास्त्रो को लगता था कि चीन उनके विचारों की उपेक्षा करता है। क्यूबा आज भी आर्थिक प्रतिबंधों को झेल रहा है। इस बात का प्रयास कर रहा है कि कम्युनिस्ट सहयोगियों से संबंध मजबूत हो जाए। इस दिशा में प्रयास शुरू होते ही चीन क्यूबा का प्रमुख आर्थिक और व्यापारिक साझेदार बन गया।
विकास मॉडल पर दूर नहीं हुए मतभेद
गावो का कहना है कि आर्थिक विकास के मुद्दे पर भी दोनों कम्युनिस्ट देशों के बीच दूरी बनी रही। दरअसल कम्युनिस्ट देशों का आर्थिक विकास समाजवादी विचारधारा पर केन्द्रित है जो कि मिसगाइडेड है। चीन ने इस बात को समझते हुए 1978 में आर्थिक सुधारों पर जोर दिया और आज दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। जबकि क्यूबा ने दशकों के दौरान आर्थिक सुधार पर जोर देने से बचता रहा। इसके बावजूद चीन अपने कम्युनिस्ट राष्ट्र के प्रति वफादार बना रहा। चीन ने फिदेल कास्त्रों को कनफ्यूशियस पीस प्राईज से भी सम्मानित किया जो कि वहां पर नोबल पीस प्राईज की तरह माना जाता है। गावो का कहना है कि कास्त्रो एक महान राजनेता थे पर वह महान आर्थिक चिंतक नहीं बन सके। हमें आशा है कि उनके निधन के बाद क्यूबा की नई पीढी के लोग आर्थिक सुधारों पर जोर देंग ेऔर क्यूबा को आर्थिक रूप से मजबूत राष्ट्र बनाने का प्रयास करेंगे।
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