शहर की खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर लगाए गए कोनोकार्पस अब स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। अफ्रीका, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका मूल का यह विदेशी पौधा अलवर के प्रमुख मार्गों में जिला अस्पताल रोड, अलवर-भिवाड़ी रोड, सरिस्का रोड, बहरोड़ रोड, भरतपुर रोड और राजगढ़ रोड के डिवाइडरों पर तेजी से फैल चुका है।
सवाल: जिस पौधे पर गुजरात, आंध्र प्रदेश, असम सहित कई राज्यों में बैन… वह हमारे शहर में क्यों
अस्थमा, एलर्जी और जलस्तर पर गंभीर असर,पक्षी-कीटों के लिए लगभग बेकार
शहर की खूबसूरती बढ़ाने के नाम पर लगाए गए कोनोकार्पस अब स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। अफ्रीका, मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका मूल का यह विदेशी पौधा अलवर के प्रमुख मार्गों में जिला अस्पताल रोड, अलवर-भिवाड़ी रोड, सरिस्का रोड, बहरोड़ रोड, भरतपुर रोड और राजगढ़ रोड के डिवाइडरों पर तेजी से फैल चुका है। सौंदर्यकरण की सोच में लगे इस पौधे के खतरे आज इतने गंभीर हो चुके हैं कि गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, असम सहित कई राज्यों में इस पर आधिकारिक प्रतिबंध लग चुका है, लेकिन अलवर में इसकी बढ़ती मौजूदगी चिंताजनक संकेत दे रही है।
विशेषज्ञों के अनुसार कोनोकार्पस के परागकण और पत्तियों से निकलने वाले रसायन एलर्जी, अस्थमा, खांसी और सांस संबंधी परेशानियों को तेज कर रहे हैं। इसके संपर्क में आने से त्वचा में जलन, खुजली और रैशेज़ की शिकायतें भी बढ़ रही हैं। शहर में मरीजों की संख्या बढ़ने के पीछे यह पौधा एक बड़ा कारण हो सकता है।
इस पौधे की जड़े अत्यधिक पानी सोखती हैं, जिससे शहर के कई इलाकों में भूजल स्तर पर दबाव बढ़ रहा है। इसके अलावा मिट्टी के पोषक तत्वों को तेजी से खींच लेने के कारण आसपास के स्थानीय पौधे सही तरह विकसित नहीं हो पाते हैं। वहीं, बताया जा रहा है कि यह पौधा पक्षियों, मधुमक्खियों और अन्य परागण करने वाले कीटों के लिए अनुपयोगी है, जिससे स्थानीय पारिस्थितिकी और खाद्य श्रृंखला को दीर्घकालीन नुकसान पहुंच रहा है।
विशेषज्ञों का सुझाव है कि समय रहते कोनोकार्पस का नियंत्रित हटाना और इसके स्थान पर स्थानीय, कम पानी मांगने वाले पौधे खेजड़ी, जाल, देसी बबूल, रोहिडा, नीम, करंज, पीपल, गुलमोहर और अशोक लगाना आवश्यक है। ये पौधे न केवल पर्यावरण के अनुकूल हैं, बल्कि पक्षियों और परागण करने वाले जीवों के लिए भी उपयोगी हैं।
कोनोकार्पस पर राजस्थान में प्रतिबंध वैज्ञानिक दृष्टि से बिल्कुल सही और आवश्यक कदम माना जा रहा है। यह पौधा एक आक्रामक विदेशी प्रजाति है, जो स्थानीय वनस्पतियों को नष्ट कर जैव विविधता को गंभीर खतरा पहुंचाता है। इसकी जड़ें अत्यधिक भूजल सोख लेती हैं, जिससे शुष्क क्षेत्रों में जलस्तर तेजी से गिरने का जोखिम बढ़ता है। यह पौधा सूखे मौसम में भारी मात्रा में एलर्जिक पराग कण छोड़ता है, जिससे अस्थमा, एलर्जी, आंखों में जलन और सांस संबंधी बीमारियां बढ़ जाती हैं। प्रदूषण प्रभावित शहरों में कोनोकार्पस धुंध और स्मॉग की परत को और गाढ़ा कर देता है। इसी वैज्ञानिक साक्ष्य के आधार पर सुप्रीम कोर्ट की सिफारिश और वन विभाग के दिशा-निर्देशों के बाद राजस्थान में इसके लगाने, बेचने और नर्सरी में तैयार करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया है। शहरों की हरियाली बनाए रखने के लिए अब देशी प्रजातियों को बढ़ावा देना ही सबसे सुरक्षित विकल्प है।
-प्रो. ममता शर्मा, पर्यावरणविद, राजर्षि कॉलेज, अलवर