जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) हॉस्पिटल के ट्रोमा सेंटर के आईसीयू में रविवार देर रात लगी आग में 6 मरीजों की मौत हो गई। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि पूरे हेल्थ सिस्टम के लिए खतरे की घंटी है।
जयपुर के सवाई मानसिंह (एसएमएस) हॉस्पिटल के ट्रोमा सेंटर के आईसीयू में रविवार देर रात लगी आग में 6 मरीजों की मौत हो गई। यह सिर्फ एक हादसा नहीं, बल्कि पूरे हेल्थ सिस्टम के लिए खतरे की घंटी है। राजस्थान पत्रिका की अलग-अलग टीमों ने सोमवार को अलवर, बहरोड़, भिवाड़ी, खैरथल समेत तीनों जिलों के 11 सरकारी चिकित्सा संस्थानों में पहुंच कर पड़ताल की, तो चौंकाने वाली स्थिति सामने आई।
अलवर जिला अस्पताल बिना फायर एनओसी के दो साल से संचालित हो रहा है। फायर फाइटिंग सिस्टम नया लगाया गया है, लेकिन अभी तक अग्निशमन विभाग की ओर से इस सिस्टम की जांच नहीं हो पाई है। जिला अस्पताल के अधीन राजीव गांधी सामान्य अस्पताल, शिशु अस्पताल व महिला चिकित्सालय का अग्निशमन सिस्टम एक कर्मचारी के भरोसे है। राजीव गांधी सामान्य चिकित्सालय में यदि आग लग जाए तो अलार्म नहीं बजेगा, क्योंकि यह खराब पड़ा है।
इन तीनों अस्पतालों में अग्निशमन विभाग के निरीक्षण में हर बार आग बुझाने वाले उपकरण बंद व खराब मिले। स्मॉक डिटेक्टर सिस्टम भी काम नहीं कर रहे। राज्य सरकार के तय मानकों के अनुसार 50 से अधिक बेड वाले अस्पतालों को हर तीन साल में फायर ऑडिट कराना अनिवार्य है। साल में दो बार सिस्टम की जांच भी होनी चाहिए। राजीव गांधी सामान्य अस्पताल में न ऑडिट हुआ, न उपकरणों की मरम्मत।
बहरोड़ में एक तरफ अस्पताल की नई बिल्डिंग बन रही है, वहीं पुरानी बिल्डिंग के पास फायर एनओसी तक नहीं है। आग से सुरक्षा के नाम पर केवल छोटे अग्निशमन यंत्र हैं। स्टाफ को इन यंत्रों को चलाने के लिए ट्रेनिंग नहीं दी गई है। इससे इन यंत्रों की प्रभावशीलता पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। इसी साल जून माह में इन यंत्रों को बदला गया था। जिला अस्पताल प्रभारी डॉ. सुरेश यादव का दावा है कि फायर एनओसी के लिए आवेदन किया था, जिसके बाद अग्निशमन विभाग के अधिकारी ने निरीक्षण भी किया था। उधर, अग्निशमन अधिकारी अजय चौधरी का कहना है कि जिला अस्पताल में फायर एनओसी के लिए फाइल लगाई गई थी। जब हमारी टीम ने निरीक्षण किया तो पाया कि वहां लगे अग्निशमन यंत्र नियमों के अनुसार नहीं थे। इस पर अस्पताल को नोटिस जारी कर सभी सुरक्षा मानकों को पूरा करने के लिए कहा गया था, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
भिवाड़ी के जिला अस्पताल में आग बुझाने के संसाधन नाकाफी हैं। अभी जिला अस्पताल सीएचसी भवन में ही चल रहा है। यह भवन पुराना होने के साथ ही यहां अग्नि जनित हादसों से सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। फायर सिलेंडर के अलावा अन्य कोई इंतजाम नहीं है। एक साल पहले फायर एनओसी ली गई, तब आठ-नौ महीने में अस्पताल शिट करने के बारे में बताया गया था।
खैरथल के सैटेलाइट अस्पताल में अब तक फायर ड्रिल नहीं हुई। अग्निशमन यंत्र पुराने और अनुपयोगी हालत में दीवारों पर टंगे हुए हैं। आग लगने की स्थिति में त्वरित कार्रवाई की ट्रेनिंग स्टाफ को नहीं दी गई है। इमरजेंसी एग्जिट और अलार्म सिस्टम नहीं है। अस्पताल परिसर में बिजली की फिटिंग पुरानी है। तारों पर पक्षियों के घौंसले हैं। पर्ची काउंटर के पास बिजली का पेनल बॉक्स खुला पड़ा है। एसी की फिटिंग के तार खुले में लगाए गए हैं।
कहीं भी आग बुझाने के लिए निर्धारित सुरक्षा प्रोटोकॉल की ठीक से पालना नहीं की जा रही है।
कहीं फायर एनओसी के बिना ही अस्पताल चल रहे हैं, तो कहीं नाममात्र के अग्निशमन यंत्र हैं। कुछ जगह अग्निशमन यंत्र तो हैं, लेकिन स्टाफ को इन्हें चलाने की ट्रेनिंग ही नहीं दी गई है।
अस्पतालों में आग से सुरक्षा के लिए फायर सेटी की मौजूदा स्थिति चिंताजनक है।
ज्यादातर चिकित्सा संस्थानों में फायर अलार्म, स्मोक डिटेक्टर, अग्निशमन यंत्र पुराने व जर्जर हैं।
आग लगने पर वहां से बाहर निकलने यानी फायर एग्जिट की सुविधा नहीं है।
अग्निशमन यंत्र औपचारिकता बन गए हैं। स्टाफ को फायर ड्रिल की ट्रेनिंग नहीं दी गई।
ऐसे हालात में मरीज व उनके परिजन खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं।