बैतूल। जिले के दक्षिण वन मंडल सामान्य अंतर्गत ताप्ती वन परिक्षेत्र के वनग्राम कोल्हूढाना में स्थित बैलेंसिंग रॉक इन दिनों क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। सघन वनों और हरियाली के बीच मौजूद ये संतुलित चट्टानें अपने अनोखे आकार और अद्भुत संतुलन के कारण पर्यटकों को आश्चर्यचकित कर रही हैं।यहां एक के ऊपर […]
बैतूल। जिले के दक्षिण वन मंडल सामान्य अंतर्गत ताप्ती वन परिक्षेत्र के वनग्राम कोल्हूढाना में स्थित बैलेंसिंग रॉक इन दिनों क्षेत्र में चर्चा का विषय बनी हुई है। सघन वनों और हरियाली के बीच मौजूद ये संतुलित चट्टानें अपने अनोखे आकार और अद्भुत संतुलन के कारण पर्यटकों को आश्चर्यचकित कर रही हैं।यहां एक के ऊपर एक या बेहद कम आधार पर टिकी विशाल काली चट्टानें इस तरह संतुलित दिखाई देती हैं, मानो किसी भी क्षण गिर पड़ेगी। इन्हें देखने दूर-दराज से लोग पहुंच रहे हैं। कई पर्यटक इन चट्टानों के पास जाने से भी संकोच करते हैं, क्योंकि उनका संतुलन पहली नजर में बेहद असामान्य प्रतीत होता है। खेड़ी निवासी मनोहर अग्रवाल ने मौके पर पहुंचकर बताया कि कोल्हूढाना क्षेत्र में करीब हर एक किलोमीटर की दूरी पर इस तरह की विचित्र बैलेंसिंग रॉक देखने को मिलती हैं, जो प्रकृति की अद्भुत रचना का प्रमाण हैं। उन्होंने बताया कि यह स्थल प्राकृतिक पर्यटन के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण है और यदि इसका उचित संरक्षण व प्रचार किया जाए तो यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आ सकते हैं। पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा कोल्हूढाना से लगभग 4 किलोमीटर अंदर तक जाने वाले मार्ग को दुरुस्त किया गया है। साथ ही रास्ते में दिशा सूचक चिन्ह भी लगाए गए हैं, जिससे जंगल में जाने वाले लोग भटकें नहीं। प्राकृतिक रहस्य और रोमांच से भरपूर यह बैलेंसिंग रॉक क्षेत्र को यदि इको-टूरिज्म के तहत विकसित किया जाए, तो यह स्थान जिले के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल हो सकता है।
खेड़ीसावलीगढ़। जिले के ताप्ती अंचल में बारालिंग के समीप ताप्ती नदी के तट पर एक दुर्लभ और औषधीय गरुड़ वृक्ष पाए जाने की जानकारी सामने आई है। स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार यह वृक्ष केवल औषधीय गुणों से भरपूर ही नहीं, बल्कि इसकी विशेषता यह भी बताई जाती है कि इसकी छाया में कोई भी सांप नहीं जाता। पास के सियार गांव के आदिवासी परिवारों का दावा है कि गरुड़ वृक्ष की मौजूदगी के कारण उनके गांव में सांपों का भय लगभग समाप्त हो गया है। ग्रामीणों का कहना है कि इस वृक्ष की फलियों को विधिवत आमंत्रण और पूजन के बाद लाल कपड़े में बांधकर घर के पूजा स्थल पर रखने से घर और आसपास नाग जाति के सांप नहीं आते। यह विश्वास वर्षों से गांव में प्रचलित है और कई जानकार भी इस मान्यता से पूरी तरह इनकार नहीं करते। बताया जाता है कि इस गरुड़ वृक्ष की पहचान लगभग 50 वर्ष पूर्व भोपाल के पास भीमबेटका क्षेत्र के निवासी संत रामदास महाराज ने की थी। उन्होंने अपने शिष्य, खेड़ी निवासी स्वर्गीय श्री मिश्रीलाल अग्रवाल को इस औषधीय वृक्ष के गुणों से अवगत कराया था। स्वर्गीय अग्रवाल सर्पदंश पीडि़तों के उपचार में इस वृक्ष की फली को घिसकर उपयोग में लाया करते थे। हालांकि अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उन्होंने कई दुर्लभ औषधीय पेड़ों की जानकारी सहेजकर रखी थी और सियार गांव के लोगों को भी इस वृक्ष के महत्व से परिचित कराया था। ग्रामीणों का स्पष्ट कहना है कि उनका उद्देश्य सर्पदंश के इलाज को लेकर कोई चिकित्सकीय संदेश देना नहीं है। सर्पदंश की स्थिति में पीडि़त को तत्काल अस्पताल ले जाना ही चाहिए। इस खबर का उद्देश्य केवल बैतूल जिले के वनों में पाए जाने वाले ऐसे अद्भुत और चुनिंदा औषधीय वृक्षों की जानकारी साझा करना है, जो प्रकृति की अनमोल धरोहर हैं।