धर्म-कर्म

शिवलिंग पर क्यों चढ़ाते हैं कच्चा दूध, जानें इसकी पौराणिक कहानी और क्या कहता है विज्ञान

shivling par doodh kyu chadhate hai: सावन भगवान शिव की पूजा का विशेष महीना है, तमाम हिंदू सोमवार को शिवालय जाकर शिवलिंग पर जल, दूध, घी, शहद, दही, शक्कर चढ़ाते हैं। मान्यता है कि सावन में शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। आइये जानते हैं शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की पौराणिक कहानी और वैज्ञानिक कारण (sawan me shivling par doodh chadhane ka mahatv) ....

2 min read
Jul 25, 2024

शिवलिंग के दुग्धाभिषेक की कहानी

shivling par doodh kyu chadhate hai: विष्णु पुराण और भागवत पुराण की पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय असुरों के राजा बलि ने देवताओं को हराकर तीनों लोकों पर अपना अधिकार कर लिया। इस पर स्वर्ग के देवता इंद्र अन्य देवी-देवताओं और ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु जी से तीनों लोकों की रक्षा के लिए प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने उन्हें समुद्र मंथन की युक्ति दी और कहा कि समुद्र मंथन से अमृत मिलेगा, जिसके पान से आप देवता अमर हो जाएंगे। वहीं कई रत्न भी मिलेंगे। इसके बाद देवताओं ने दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर में वासुकी नाग और मंदार पर्वत की सहायता से सागर मंथन किया। इस मंथन से 14 रत्न, विष और अमृत प्राप्त हुए।

ये भी पढ़ें

कर्क के बाद अब इस राशि में बनेगा लक्ष्मी नारायण योग, 3 राशि के लोग खूब कमाएंगे पैसा, हर काम में सफलता के संकेत


लेकिन जब सागर मंथन से निकले विष से पूरी सृष्टि पर खतरा मंडराने लगा था, चारों तरफ हाहाकार मच गया। इस विपत्ति को देखते हुए सभी देवताओं और दैत्यों ने भगवान शिव से सृष्टि की रक्षा के लिए प्रार्थना की। क्योंकि भगवान शिव के पास ही इस विष के ताप और असर को सहने की क्षमता थी। तब भगवान शिव ने संसार के कल्याण के लिए बिना किसी देरी के इस विष को अपने कंठ में धारण किया। इस समय माता पार्वती ने शिवजी का गला दबाकर रखा ताकि विष गले से नीचे न जाए पर इस विष का असर इतना तीखा था और इसका ताप इतना ज्यादा था कि भोलेनाथ का कंठ नीला हो गया और उनका शरीर ताप से जलने लगा।


जब विष का घातक प्रभाव शिव और शिव की जटा में विराजमान देवी गंगा पर पड़ने लगा तो उन्हें शांत करने के लिए जल की शीतलता कम पड़ने लगी। भगवान के गले में जलन होने लगी, उस वक्त सभी देवताओं ने भगवान शिव का जलाभिेषेक करने के साथ ही उनसे दूध ग्रहण करने का आग्रह किया ताकि विष का प्रभाव कम हो सके। सभी के कहने पर भगवान शिव ने दूध ग्रहण किया और देवताओं ने उनका दूध से भी अभिषेक किया। इससे भगवान को आराम मिला, तभी से शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। यह भी मान्यता है कि दूध भोले बाबा को प्रिय है और उन्हें सावन के महीने में दूध से स्नान कराने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

ये भी पढ़ेंः

वैज्ञानिक मान्यताएं

  1. वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार शिवलिंग एक विशेष प्रकार का पत्थर होता है। इसको क्षरण से बचाने के लिए ही इस पर दूध, घी, शहद जैसे चिकने और ठंडे पदार्थ चढ़ाए जाते हैं। मान्यता है कि शिवलिंग पर वसायुक्त या तैलीय सामग्री अर्पित नहीं करने से समय के साथ इसके भंगुर होकर टूटने का खतरा रहेगा। लेकिन यदि शिवलिंग को हमेशा गीला रखा जाता है तो वह हजारों वर्षों तक सुरक्षित रहेगा। क्योंकि शिवलिंग का पत्‍थर इन पदार्थों को अब्जार्व करता है और यह एक प्रकार से उसका भोजन होता है।
  2. शिवलिंग पर उचित मात्रा में ही और खास समय पर ही दूध, घी, शहद, दही आदि अर्पित किया जाता है और इसे हाथों से रगड़ा नहीं जाता है। यदि अत्यधिक मात्रा में अभिषेक होता है या हाथों से रगड़ा जाता है तो भी शिवलिंग का क्षरण हो सकता है। इसीलिए सोमवार और श्रावण माह में ही अभिषेष करने की परंपरा है।

ये भी पढ़ें

Jaya Parvati Vrat Katha: जया पार्वती व्रत की पौराणिक कथा, सावन में भी पढ़ने के लाभ

Also Read
View All

अगली खबर