आम आदमी पार्टी की हार के बाद संगठन और विधायक दल में टूट से बचाव आसान नहीं होगा। पढ़ें शादाब अहमद की स्पेशल रिपोर्ट...
करीब 13 साल पहले अन्ना आंदोलन से उभर कर दिल्ली की सत्ता तक पहुंची आम आदमी पार्टी (आप) चुनाव हारकर पहली बार विपक्ष में बैठेगी तो उसके सामने पार्टी को एक रखने की सबसे बड़ी चुनौती होगी। पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल, पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन और सौरभ भारद्वाज की हार के बाद विधानसभा में पार्टी की कमान गोपाल राय और निवर्तमान सीएम आतिशी के पास रहेगी लेकिन संगठन और विधायक दल में टूट से बचाव आसान नहीं होगा। कालकाजी सीट से सीएम आतिशी के खिलाफ चुनाव हारीं और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष अल्का लांबा ने तो रविवार को आप को चुनौती दी कि वे अपने 22 विधायकों और पंजाब सरकार को बचाकर दिखाएं।
पार्टी का कोई वैचारिक आधार नहीं है और उसमें शामिल कई नेता-कार्यकर्ता पूर्व में भाजपा-कांग्रेस से जुड़े रहे हैं। टिकट कटने पर ही आप के नौ विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी। चुनाव हारने के बाद अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक हितों को देखते हुए और भाजपा के लुभावने प्रयासों के चलते विधायक दल में टूट या इस्तीफा देकर उपचुनाव के जरिये दलबदल हो सकता है। दिल्ली के कुछ राज्यसभा सदस्य भी भाजपा रडार पर है।
विधानसभा में हमेशा आक्रामक रहने वाले केजरीवाल, सिसोदिया और भारद्वाज इस बार नहीं होंगे। केजरीवाल के लिए नेता प्रतिपक्ष का चयन आसान नहीं होगा। पार्टी का हर चुनाव में साथ देने वाले मुस्लिम और दलित वर्ग के विधायक भी इस पोस्ट पर निगाह जमाए बैठे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयी भाषण में साफ तौर पर कहा कि कैग रिपोर्ट विधानसभा में रखी जाएगी। पुरानी फाइलों को खंगाला जाएगा। मोदी के यह संकेत हैं कि आने वाले दिनों में आप के कई नेताओं को मुकदमेबाजी और गिरफ्तारी तक का सामना करना पड़ सकता है।
चुनावी हार के बाद रविवार को आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के घर पर पार्टी के प्रमुख नेताओं और नवनिर्वाचित विधायकों की बैठक हुई। निवर्तमान सीएम आतिशी ने बताया कि बैठक में जनता के काम करने और भाजपा को चुनावी वादे पूरे करने को मजबूर करने के लिए जरूरी कदम उठाने का फैसला किया गया। नेता प्रतिपक्ष का चयन बाद में किया जाएगा।