सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारत अपने संविधान की मजबूती और स्थिरता पर गर्व कर सकता है, जबकि पड़ोसी देशों नेपाल और बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक घटनाएं सामने आई हैं। पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा राज्यों के विधायकों से पारित विधेयकों पर कार्रवाई की समयसीमा […]
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि भारत अपने संविधान की मजबूती और स्थिरता पर गर्व कर सकता है, जबकि पड़ोसी देशों नेपाल और बांग्लादेश में हालिया राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक घटनाएं सामने आई हैं। पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा राज्यों के विधायकों से पारित विधेयकों पर कार्रवाई की समयसीमा तय करने संबंधी प्रेजिडेंशियल रेफरेंस मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआइ बी.आर. गवई ने यह टिप्पणी की।
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी सीजेआइ की टिप्पणी का समर्थन किया। अदालत में इस बात पर बहस चली कि क्या पक्षकारों को विधेयकों से जुड़े अनुभवजन्य आंकड़े पेश करने की अनुमति दी जाए। मेहता ने 1970 से आंकड़े पेश करने का प्रयास किया, लेकिन पीठ ने याद दिलाया कि जब अन्य पक्षकारों को डेटा प्रस्तुत करने से रोका गया तो सरकार को भी इसका लाभ नहीं मिल सकता। अदालत ने दोहराया कि बहस केवल कानून के प्रश्नों पर केंद्रित होनी चाहिए।
मेहता ने बताया कि पिछले 55 वर्षों में केवल 20 विधेयक रोके गए, और 90% विधेयकों पर एक माह के भीतर सहमति दी गई। हालांकि, जस्टिस विक्रम नाथ ने सवाल किया कि ऐसे आंकड़े कितने प्रासंगिक हैं। वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने आपत्ति जताई कि जब उन्हें डेटा रखने की इजाजत नहीं दी गई तो सरकार भी ऐसा न करे। अदालत ने स्पष्ट किया कि सभी पक्षों पर समान नियम लागू होंगे।