यह दृश्य है सबलगढ़ विकासखंड के जवाहरगढ़ के तालाब का। जल संसाधन विभाग का तैयार किया गया जवाहरगढ़ का प्राचीन तालाब इसका उदाहरण है। यहां स्टेट टाइम वर्ष 1905 का तालाब बना हुआ है।
प्राचीन तालाब में लेजम (पाइप) डले हुए हैं। इन लेजमों से एक ओर पानी बह रहा है। दरअसल यहां कभी मोटर तो कभी इंजन से लेजम डालकर तालाब को खाली किया जा रहा है। खाली होते ही इसकी जमीन का दुरुपयोग हो सकता है।
मुरैना. करीब 500 बीघा के प्राचीन तालाब में लेजम (पाइप) डले हुए हैं। इन लेजमों से एक ओर पानी बह रहा है। दरअसल यहां कभी मोटर तो कभी इंजन से लेजम डालकर तालाब को खाली किया जा रहा है। खाली होते ही इसकी जमीन का दुरुपयोग हो सकता है।
यह दृश्य है सबलगढ़ विकासखंड के जवाहरगढ़ के तालाब का। जल संसाधन विभाग का तैयार किया गया जवाहरगढ़ का प्राचीन तालाब इसका उदाहरण है। यहां स्टेट टाइम वर्ष 1905 का तालाब बना हुआ है। इसका फैलाव करीब तीन किमी एरिया में करीब 500 बीघा में बताया जा रहा है। उस तालाब पर वहां के कुछ दबंगों की नजर है।
उनके द्वारा बड़ी संख्या में लेजम डालकर लिफ्ट एरीगेशन के माध्यम से तालाब का पानी ब्यर्थ में बहाया जा रहा है। इससे पूर्व मोटर व इंजन लगाकर खाली करने का मामला भी चर्चा में आया था। इसके पीछे उनका मकसद है कि तालाब खाली होने पर उस पर कब्जा करके खेती की जाएगी। इस तालाब के पानी से क्षेत्र के किसानों की खेती सिंचित होती है और आसपास का वाटर लेवल भी स्थिर बना हुआ है।
जवाहरगढ़ का प्राचीन तालाब क्षेत्र की प्रमुख पहचान है। यहां लोग इस तालाब से खेतों में पानी भी देते हैं और क्षेत्र का जल स्तर इस तालाब के चलते स्थिर रहता है। लोगों का कहना हैं कि अगर इस तालाब का अस्तित्व मिट गया तो क्षेत्र की पहचान भी मिट जाएगी।
जवाहरगढ़ का ये तालाब वर्षों पुराना है। इस तालाब से आसपास के क्षेत्र में किसानों की फसल की सिंचाई की जाती है। तालाब की उपयोगिता गर्मी के दिनों में ज्यादा महसूस होती है। जब पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। तालाब पर लंबे अर्से से लोग कब्जा करने की नीयत बनाए हुए है। पानी कम होने पर यहां खेती होने लगती है। इस तालाब को बचाने के लिए जल संसाधन विभाग और स्थानीय प्रशासन के साथ ग्रामीण अगर आगे आते हैं तो तालाब की जमीन कब्जा होने से बच सकती है।
अंचल में तालाबों की जमीन को बचाने के लिए जहां स्वयंसेवी संस्थाएं प्रयास करती हैं वहीं स्थानीय पंचायतों के कारिंदे भी इनके लिए काम करते हैं मगर पुलिस प्रशासन का सहयोग नहीं मिलने की वजह से यह प्रयास अधूरे रह जाते हैं। अगर इस तालाब को लेकर स्थानीय स्तर पर आंदोलन किया जाए तो नि: संदेह इस तालाब का जीवन भी बढ़ सकता था। तालाब में बारिश के दौरान कैचमेंट एरिया से काफी पानी आता है। इस पानी से यह तालाब हर बारिश में बढ़ जाता है।
जवाहरगढ़ के तालाब पर लेजम डालकर खाली करने की शिकायत मिली थी, मौके पर पहुंचकर लेजम को हटवाया था अगर फिर से लेजम डाली गई हैं तो मैं फिर से विजिट करके संबंािधतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को लिखा जाएगा।
प्रदीप तिवारी, इंजीनियर, जल संसाधन विभाग