तमाम सुरक्षा बंदोबस्तों के बावजूद देश के दुश्मन जासूसी की नीयत से हमारे सामरिक महत्त्व से जुड़े स्थानों तक पहुंंचने में कामयाब हो रहे हों तो यह सचमुच गंभीर और चिंता का विषय है। ताजा प्रकरण मुंबई का है जहां पुलिस ने फर्जी वैज्ञानिक बने एक व्यक्ति को जासूसी के संदेह में दबोचा है। यह […]
तमाम सुरक्षा बंदोबस्तों के बावजूद देश के दुश्मन जासूसी की नीयत से हमारे सामरिक महत्त्व से जुड़े स्थानों तक पहुंंचने में कामयाब हो रहे हों तो यह सचमुच गंभीर और चिंता का विषय है। ताजा प्रकरण मुंबई का है जहां पुलिस ने फर्जी वैज्ञानिक बने एक व्यक्ति को जासूसी के संदेह में दबोचा है। यह शख्स खुद को भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर (बार्क) का वैज्ञानिक बताते हुए बार्क परिसर तक में अपनी पहुंच बना चुका था। प्रारंभिक पूछताछ में इस व्यक्ति के अंतरराष्ट्रीय जासूसी नेटवर्क से जुड़े होने की जानकारी भी सामने आई है। बार्क परिसर में घुसने में कामयाब हुए इस शख्स के पास 14 नक्शे, परमाणु ब्लूप्रिंट और तीन पासपोर्ट बरामद हुए हैं। वह पहले भी नाम बदल-बदल कर अपने खतरनाक इरादों को अंजाम देने की साजिश में जुटा रहा है।
पिछले दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों में जांच एजेंसियों ने कई दूसरे लोगों को भी पकड़ा है जो अपनी असली पहचान छुपाते हुए हमारे सामरिक महत्त्व की जानकारी दुश्मन देश के लिए जुटाने का प्रयास कर रहे थे। इसे हमारी सुरक्षा एजेंसियों की सतर्कता से जुड़ी कामयाबी ही कहा जाना चाहिए। क्योंकि यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ 'ऑपरेशन सिंदूर' के बाद से ही भारत में अपने जासूसी नेटवर्क को फैलाने में लगी है। आइएसआइ के इन नापाक इरादों को भांपते हुए हमारे सुरक्षा बलों ने सैन्य जानकारियां हासिल करने की टोह में लगे संदिग्धों को पकड़ा भी है। लेकिन चिंता इस बात की है कि पैसे के लालच में हमारे सामरिक प्रतिष्ठानों से जुड़े लोगों तक भी उन लोगों की पहुंच होने लगी है जिन्हें जासूसी का टास्क दिया जाता है। पंजाब-हरियाणा और राजस्थान से लेकर उत्तराखंड तक दो माह पहले हुई गिरफ्तारियों में यह भी खुलासा हुआ था कि आइएसआइ की शह पर कुछ लोग देश से गद्दारी करने में जुटे हुए थे। मुंबई में पकड़े गए फर्जी वैज्ञानिक ने जिस तरह से बार्क परिसर तक अपनी पहुंच बनाई, वह निश्चित रूप से उसके खतरनाक इरादों की ओर संकेत करता है। तकनीक के इस दौर में जहां डिजिटल वेरिफिकेशन होने लगा है, कोई असली जैसी लगने वाली फर्जी आइडी तक बनाने में कामयाब भला कैसे हो गया? जाहिर है, संवेदनशील परिसरों में जांच-पड़ताल की सख्ती में कहीं न कहीं चूक हो रही है।
हमारे सैन्य ठिकानों के साथ-साथ बार्क जैसी सुरक्षा महत्त्व वाली संस्थाओं में प्रवेश के प्रोटोकॉल की पालना में सख्ती काफी जरूरी हो गई है। लालची लोग जासूसों के आसान निशाना होते हैं। इसलिए इन 'घर के भेदियों' की पहचान कर इन्हें सख्त सजा देना जरूरी है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि तकनीक के युग में भी जासूसी नेटवर्क अपनी करतूतों को अंजाम देने में कामयाब होने लगे तो कहीं न कहीं चूक व लापरवाही हो रही है।