राज्य सरकारें केंद्र की योजनाओं के पूरक के रूप में अपनी योजनाएं चलाती हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान की जनजाति छात्राओं को उच्च शिक्षा में आर्थिक सहायता के तहत नियमित अध्ययन हेतु 500 रुपए प्रतिमाह की सहायता दी जाती है।
प्रो. अशोक कुमार
भारत में उच्च शिक्षा तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए वंचित वर्गों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, अल्पसंख्यक और दिव्यांग) के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों की ओर से कई छात्रवृत्तियां दी जाती हैं। इनका मुख्य उद्देश्य आर्थिक बाधाओं को दूर करना और शिक्षा में समानता लाना है। हालांकि, विश्लेषण से पता चलता है कि इन छात्रवृत्तियों का एक बड़ा हिस्सा या तो अप्रयुक्त रहता है या उनके वितरण में गंभीर चुनौतियां हैं। प्रमुख चुनौतियों में बजटीय विसंगतियां (विशिष्ट योजनाओं में कटौती), संस्थानों द्वारा निधियों का कम उपयोग, जटिल आवेदन प्रक्रियाएं, पुनर्भुगतान मॉडल का वित्तीय बोझ, डिजिटल साक्षरता की कमी, और अध्ययन के क्षेत्रों तथा सामाजिक पहचान पर आधारित पूर्वाग्रह शामिल हैं। इन समस्याओं से छात्रों पर अत्यधिक वित्तीय और मानसिक तनाव पड़ता है, जिससे उच्च शिक्षा में नामांकन कम होता है और ड्रॉपआउट दर बढ़ती है। यह स्थिति सामाजिक असमानता को गहरा करती है। इस रिपोर्ट में योजनाओं के सरलीकरण, अग्रिम वित्तीय सहायता, मजबूत सहायता नेटवर्क और पारदर्शिता पर केंद्रित कई सिफारिशें प्रस्तुत की गई हैं।
भारत सरकार, राज्य सरकारें और निजी/सीएसआर पहले ही वंचित छात्रों की सहायता के लिए कई योजनाएं चलाती हैं। केंद्र सरकार देशभर में विभिन्न शैक्षणिक स्तरों पर वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं। अनुसूचित जाति (एससी) के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति: 12वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई के लिए वित्तीय सहायता देती है। इसमें 2.50 लाख प्रतिवर्ष तक की आय सीमा शामिल होती है और भुगतान आधार-सीडेड बैंक खाते में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से होता है। अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति: पेशेवर, तकनीकी, गैर-पेशेवर और गैर-तकनीकी पाठ्यक्रमों के लिए एसटी छात्रों को लाभान्वित करती है। अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति: मैट्रिकोत्तर कक्षाओं में पढऩे वाले ओबीसी छात्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है, जिसके लिए अभिभावकों की आय सीमा एक लाख प्रतिवर्ष है। कॉलेज और विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए केंद्रीय क्षेत्र छात्रवृत्ति योजना (सीएसएसएस): यह योजना कक्षा 12वीं में 80 प्रतिशत से ऊपर के मेधावी छात्रों को लक्षित करती है, जिनके परिवार की वार्षिक आय 4.5 लाख से कम है। इसमें स्नातक स्तर पर 12 हजार प्रति वर्ष और स्नातकोत्तर स्तर पर 20 हजार प्रति वर्ष का लाभ मिलता है।
राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति (एनओएस): एससी, विमुक्त घुमंतू, भूमिहीन कृषि मजदूरों और पारंपरिक कारीगरों से संबंधित कम आय वाले छात्रों को विदेश में मास्टर डिग्री या पीएच.डी. करने की सुविधा देती है। यह ट्यूशन फीस, रख रखाव भत्ता (यूएसए के लिए 15,400 डॉलर) और यात्रा खर्चों को कवर करती है।युवा अचीवर्स योजना (श्रेयस): इसमें ओबीसी के लिए राष्ट्रीय फैलोशिप (एमफिल/पीएचडी के लिए 1000 जेआरएफ) और विदेशी अध्ययन के लिए शैक्षिक ऋण पर ब्याज सब्सिडी की डॉ. अंबेडकर केंद्रीय क्षेत्र योजना शामिल है।प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना (पीएम-यूएसपी): यह जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख के युवाओं को राज्य के बाहर के शैक्षणिक संस्थानों में पढऩे के लिए प्रोत्साहित करती है, जिसमें प्रति वर्ष 5000 नई छात्रवृत्तियां प्रदान की जाती हैं।
राज्य सरकारें केंद्र की योजनाओं के पूरक के रूप में अपनी योजनाएं चलाती हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान की जनजाति छात्राओं को उच्च शिक्षा में आर्थिक सहायता के तहत नियमित अध्ययन हेतु 500 रुपए प्रतिमाह की सहायता दी जाती है। मुख्यमंत्री उच्च शिक्षा छात्रवृत्ति (राजस्थान) 12वीं में 60त्न अंकों के साथ वरीयता सूची में प्रथम एक लाख तक स्थान प्राप्त करने वाले अल्प आय वर्ग के छात्रों को 500 रुपए प्रतिमाह (दिव्यांगों के लिए 1000) प्रदान करती है।
छात्रवृत्ति योजनाओं की उपलब्धता के बावजूद उनका कम उपयोग एक बहुआयामी समस्या है, जिसमें वित्तीय, प्रक्रियात्मक और सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाएं शामिल हैं। 2020-2024 के दौरान, उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रवृत्ति और अनुसंधान फेलोशिप के लिए फंडिंग में 1500 करोड़ से अधिक की गिरावट आई है। 2025 के केंद्रीय बजट में ओबीसी और ईबीसी के लिए आवंटन बढऩे के बावजूद, अल्पसंख्यक और जनजातीय छात्रों के लिए कई छात्रवृत्तियों में कटौती की गई। उदाहरण के लिए, एसटी छात्रों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप में 99.99त्न की भारी कमी देखी गई।
आवंटित धन का पूरी तरह से उपयोग नहीं होता है। इसके अलावा, संस्थानों द्वारा छात्रों से धन रोकने और 'घोस्ट बेनिफिशरीज' को भुगतान करने के घोटाले भी सामने आए हैं।
एमएएनएफ और एनएफएससी जैसी प्रमुख योजनाओं में छह से आठ महीने तक की देरी हुई है। ये देरी छात्रों पर अत्यधिक वित्तीय, मानसिक और भावनात्मक तनाव डालती है, जिससे उन्हें पीएच.डी. कार्यक्रम छोडऩे पर विचार करना पड़ता है।
जटिल और बहिष्करणकारी आवेदन प्रक्रियाएं : अधिकांश छात्रों को छात्रवृत्तियों के बारे में अनौपचारिक रूप से पता चलता है। स्कूलों और कॉलेजों में औपचारिक चैनलों की कमी है और सरकारी वेबसाइटें अक्सर अव्यवस्थित होती हैं। आवेदन फॉर्म अक्सर स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं होते हैं। 'छवि फाइल आकार' जैसे तकनीकी शब्दों से छात्र भ्रमित हो सकते हैं। एक छोटी सी गलती या गुम दस्तावेज उन्हें अवसर से वंचित कर सकता है। छात्र कॉमन सर्विसेज सेंटर या साइबर कैफे पर निर्भर रहते हैं और आवेदन के लिए भुगतान करते हैं।
कई छात्रवृत्तियां पुनर्भुगतान मॉडल पर काम करती हैं, जहां छात्रों को पहले पूरी फीस का अग्रिम भुगतान करना होता है और बाद में प्रतिपूर्ति मिलती है। यह कम आय वाले छात्रों पर एक भारी बोझ डालता है और समय पर भुगतान न कर पाने के कारण वे परीक्षाएं छोड़ देते हैं। छात्रवृत्ति अक्सर 'विकास शुल्क' या 'विविध शुल्क' जैसी छिपी हुई लागतों (कुल शुल्क का 30-40त्न) को कवर नहीं करती है।
एसटीईएम विषयों की ओर झुकाव : छात्रवृत्तियां एसटीईएम विषयों की ओर असंगत रूप से झुकी हुई हैं। यह पूर्वाग्रह मानविकी, कला या वाणिज्य में रुचि रखने वाले छात्रों के लिए अवसरों को सीमित करता है। छात्र शिक्षा में जाति-आधारित भेदभाव या अनौपचारिक मार्गदर्शन की कमी का सामना करते हैं। सामाजिक दबावों, विवाह और घरेलू जिम्मेदारियों के कारण महिला छात्रों का ड्रॉपआउट अधिक होता है।
इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए एक उपयोगकर्ता- अनुकूल, बहुभाषी राष्ट्रीय पोर्टल विकसित किया जाए जो सभी छात्रवृत्ति योजनाओं के लिए एकल, विश्वसनीय स्रोत हो। आवेदन फॉर्म को सरल बनाया जाए और तकनीकी शब्दों को स्पष्ट निर्देशों से समझाया जाए। कॉमन सर्विसेज सेंटर और शैक्षणिक संस्थानों में विशेष सहायता डेस्क स्थापित किए जाएं।पुनर्भुगतान मॉडल से हटकर अग्रिम या अनंतिम छात्रवृत्ति प्रदान की जाए। संवितरण में देरी को समाप्त करने के लिए सख्त समय-सीमा और जवाबदेही तंत्र स्थापित किए जाएं।
व्यापक कवरेज और समावेशिता : छात्रवृत्ति के दायरे को एसटीईएम विषयों से परे कला, मानविकी, वाणिज्य और अन्य सामाजिक विज्ञानों तक विस्तारित किया जाए। जाति, लिंग और दिव्यांगता के आधार पर भेदभाव को सक्रिय रूप से संबोधित करने के लिए विशेष कार्यक्रम शामिल हों।
निधियों के आवंटन, उपयोग और संवितरण में सख्त निगरानी और नियमित ऑडिट लागू किए जाएं।छात्रवृत्ति घोटालों और गबन पर त्वरित और कठोर कार्रवाई की जाए।धोखाधड़ी को रोकने के लिए आधार-आधारित सत्यापन और बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण को मजबूत किया जाए।
केवल वित्तीय सहायता से परे मेंटरशिप, मानसिक स्वास्थ्य सहायता और जीवन कौशल प्रशिक्षण सहित समग्र सहायता प्रणाली विकसित की जाए।इन उपायों को लागू करके हम छात्रवृत्ति योजनाओं की अप्रयुक्त क्षमता को अनलॉक कर सकते हैं, जिससे वंचित वर्गों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा के द्वार खुलेंगे और एक अधिक न्यायसंगत और समावेशी समाज का निर्माण होगा।