Naga Sadhu Ki Duniya: महाकुंभ 2025 की दस्तक के साथ ही नागा साधु की दुनिया चर्चा में है। ये कौन हैं या कहां रहते हैं, इनमें कौन बड़ा है और कौन अधीनस्थ, बड़ा पद पाने की प्रक्रिया क्या है। आइये ढूंढ़ते हैं सभी सवालों के जवाब ..
Naga Sadhu Ki Duniya: कुंभ में नजर आने के बाद अचानक कहीं लुप्त हो जाने वाले नागा साधुओं को लेकर आम लोगों में कई तरह की बातें होती हैं, आइये जानते हैं इनसे जुड़े कुछ सवाल जवाब ..
बताते चलें कि नागा साधु हिंदू धर्मावलंबी साधु हैं, ये युद्ध कला में भी माहिर होते हैं। ये जिन मठों में रहते हैं और युद्ध कला की शिक्षा लेते हैं, उन्हें अखाड़ा कहते हैं। इन अखाड़ों का गठन ईसा पूर्व 5वीं शती में आदिगुरु शंकराचार्य ने उस समय की थी, जब भारत पर बाहरी आक्रांताओं के हमले बढ़ गए और वो हमारे मठ मंदिर और धार्मिक पुस्तकों का नाश करने लगे।
इन सैनिकों का काम अपने मठ मंदिरों, ज्ञान, पुस्तकों और संस्कृति की रक्षा करना था। इनका जीवन कठोर और अनुशासित होता है। ये तीर्थ स्थलों के दूर दराज के इलाकों में रहते हैं। 20213 तक 13 अखाड़े हुआ करते थे और 2014 में किन्नर अखाड़ा जुड़ने से इनकी संख्या 14 हो गई है।
इन अखाड़ों में शामिल होने की उम्र 17 से 19 साल होती है। इनके सबसे बड़े आचार्य महामण्डलेश्वर कहे जाते हैं, इनका कार्यकाल छह साल का होता है। इसके अलावा मुख्य संरक्षक और उपाध्यक्ष के पद भी होते हैं। इस वरीयता में श्रीमंहत, महंत, सचिव, मुखिया, जखीरा प्रबंधक भी आते हैं।
अखाड़े वैष्णव, शैव और उदासीन तीन भागों में बंटे होते हैं। इनमें नाम भले अलग हो लेकिन संगठन की संरचना मिलती जुलती है। अखाड़ों की व्यवस्था के लिए प्रवेशी-रकमी, मुदाठिया, नागा, सदर नागा, कोतवाल और भंडारी जैसे पद होते हैं।
इसके अलावा अखाड़ों में उपाधियां भी होती हैं. महामंडलेश्वर, सबसे बड़े आचार्य होते हैं. जिनका कार्यकाल छह साल का होता है। इसके अलावा मुख्य संरक्षक और उपाध्यक्ष के पद भी होते हैं. वहीं, इस वरीयता में श्रीमंहत, महंत, सचिव, मुखिया, जखीरा प्रबंधक भी आते हैं। एक निश्चित समय के बाद ये बड़े पद पर पहुंचते हैं।
अखाड़ों में प्रवेश लेने वाला नया साधु प्रवेशी कहा जाता है। इसे मर्यादा, अनुशासन और आदर्श का अभ्यास कराया जाता है।
प्रवेश के समय साधु को एक गुरु बनाना होता है और रकम यानी पद और गोपनीयता की शपथ लेनी पड़ती है। इसे अपने वरिष्ठों की सेवा करनी पड़ती है। साफ-सफाई, खाना बनाना, पढ़ना, साधना इनके काम होते हैं।
इधर, वैष्णव अखाड़ों में किसी नए प्रवेशी को किसी भी संप्रदाय में दीक्षित या विरक्त होना जरूरी होता है। इसे अलग-अलग समय 6 अलग-अलग नाम मिलते हैं। इसके बाद तीन-तीन वर्षों वाली विशेष कक्षाओं से प्रवेशी को आगे बढ़ना पड़ता है। इससे ऊपर क्रमशः छोटा, बंदगीदार, हुरदंगा, मुदाठिया, नागा, सदरनागा, अतीत और महाअतीत की उपाधि वाले साधु होते हैं।
वैष्णव परंपरा में रकमी साधु को अपने से बड़े साधुओं की सेवा करनी होती है। इसके ऊपर होता है बंदगीदार, इसे कोठार और भंडार की व्यवस्था देखना होता है। इसका काम छड़ी उठाना, शास्त्र और शस्त्र की शिक्षा ग्रहण करना आदि होता। वही मंदिर की व्यवस्था, भोजन-पंगत आदि की व्यवस्था करता है।
बंदगीदार हुरदंगा के बाद का पद होता है मुदाठिया। इसका काम भगवत सेवा, भोजन व्यवस्था, आय-व्यय विवरण, कार्यकर्ताओं से कार्य कराना, शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा और शिविर का निरीक्षण करना होता है। मुदाठिया की उपाधि मिलने पर साधु की जिम्मेदारियां बढ़ जाती हैं।
इसके बाद साधु नागा बनते हैं। यह पद पाने में 12 वर्ष लग जाते हैं। इसके पहले 6 से 1 साल तक की परीक्षा से गुजरना होता है। इस दरम्यान सांसारिक जीवन त्याग कर 5 गुरुओं से, (शिव, विष्णु, शक्ति, सूर्य और गणेश जिन्हें पंच देव भी कहा जाता है) दीक्षा लेनी पड़ती है। बाद में कुंभ में इन्हें नागा बनाया जाता है। नागा का पद साधु को अखाड़े का जिम्मेदार अधिकारी बना देता है।
सदर नागा की उपाधि मिलने पर नागा साधु अधिक प्रतिष्ठित हो जाते हैं। अखाड़ों के पंचों की ओर से उन्हें कंठी, कटोरी और उपहार के साथ-साथ सहयोग के लिए कोतवाल मिल जाता है। इसके बाद के पद होते हैं अतीत और महाअतीत।