इस देश में 450 नागरिकों ने जलवायु परिवर्तन पर सरकार की कथित निष्क्रियता के खिलाफ ऐतिहासिक मुकदमा दायर किया है और मुआवजे की मांग की है।
जापान में सैकड़ों नागरिकों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सरकार की निष्क्रियता को चुनौती देते हुए केंद्र सरकार पर मुकदमा दायर किया है। यह जापान का पहला ऐसा मुकदमा है जिसमें सरकार से मुआवजे की मांग की गई है। लगभग 450 लोगों ने इस ऐतिहासिक केस में हिस्सा लिया है, जिसमें वे सरकार की जलवायु संकट से निपटने की नीतियों की आलोचना कर रहे हैं।
लोगों का कहना है कि सरकार की निष्क्रियता से उनकी सेहत, आजीविका और शांतिपूर्ण जीवन का अधिकार खतरे में पड़ गया है। शिकायत में कहा गया है, सरकार के जलवायु परिवर्तन उपाय पूरी तरह अपर्याप्त हैं।
इस साल जापान ने 1898 से रिकॉर्ड रखे जाने के बाद अपनी सबसे गर्म गर्मी झेली है। औसत तापमान सामान्य से 2.36 डिग्री सेल्सियस अधिक रहा, जिसने हीटवेव्स को और भयावह बना दिया। वादियों का तर्क है कि ऐसी प्रचंड गर्मी से आर्थिक नुकसान हो रहा है, फसलें बर्बाद हो रही हैं और हीटस्ट्रोक से लोगों की जान को खतरा है।
57 वर्षीय निर्माण मजदूर किइची अकियामा ने बताया कि लगातार हीटवेव्स की वजह से उनकी टीम धीमी गति से काम करने को मजबूर है, जिससे उनके बिजनेस को भारी नुकसान हो रहा है। उन्होंने कहा, "ऐसे मामले भी सामने आए हैं जहां लोग गर्मी में काम करते-करते खेत में गिर पड़े या घर लौटकर मर गए।"
क्योटो यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर मासाको इचिहारा के अनुसार, जापान में पहले जलवायु से जुड़े 5 मुकदमे दायर हो चुके हैं, जिनमें कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के खिलाफ भी शामिल हैं। लेकिन यह पहली बार है जब सरकार से सीधे जलवायु निष्क्रियता के लिए मुआवजे की मांग की गई है।
यह मुकदमा वैश्विक ट्रेंड का हिस्सा है, जहां दक्षिण कोरिया और जर्मनी जैसे देशों में भी अदालतें जलवायु लक्ष्यों को असंवैधानिक घोषित कर चुकी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जीत की संभावना कम हो सकती है, लेकिन यह जन जागरूकता बढ़ाने में सफल होगा।
यह मुकदमा जापान की जलवायु नीतियों पर बड़ा सवालिया निशान लगाता है, जहां सरकार 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 60% और 2040 तक 73% कम करने का लक्ष्य रखती है, लेकिन वादी इसे पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री लक्ष्य से कम बताते हैं।