महजबीन सात साल की उम्र से ही फिल्मों में काम करने लगीं। बेबी मीना के नाम से पहली बार फिल्म ‘फरजद-ए-हिंद’ में नजर आईं। इसके बाद लाल हवेली, अन्नपूर्णा, सनम, तमाशा आदि कई फिल्में कीं। लेकिन उन्हें स्टार बनाया 1952 में आई फिल्म ‘बैजू बावरा’ ने। इस फिल्म के बाद वह लगातार शोहरत की बुलंदियां चढ़ती गईं।
एक दिन की बात है कि मीना कुमारी को पिता ने बताया कि कमाल अमरोही उन्हें अपनी अगली फिल्म में लेना चाहते हैं। मीना कुमारी को उनका ‘अक्खड़पन’ याद आ गया। उन्होंने मना कर दिया। कमाल अमरोही को यह बात पता चली। तब उन्होंने ही किसी तरह मीना कुमारी को मनाया और फिल्म के लिए साइन कर लिया।
कमाल अमरोही ने मीना कुमारी को जिस फिल्म के लिए साइन किया, वह तो कभी नहीं बन पाई, लेकिन दोनों के बीच प्यार जरूर पनप गया। पहले से शादीशुदा अमरोही उनके प्यार में पागल हो गए। एक दिन उनके मैनेजर और दोस्त ने पूछा- अगर इतनी मुहब्बत है तो निकाह क्यों नहीं कर लेते? कमाल ने कहा- क्या मीना तैयार होगी? जवाब जानने के लिए कमाल के दोस्त और मैनेजर उनका पैगाम लेकर मीना कुमारी के पास पहुंच गए। मीना ने कमाल से प्यार की बात तो मानी, पर शादी से इनकार कर दिया। बोलीं- अब्बा की इजाजत के बिना यह संभव नहीं होगा। दोस्त ने किसी तरह राजी किया। यह कह कर कि अभी निकाह कर लें और सही वक्त देख कर अब्बा-अम्मी को भी मना लेंगे। 14 फरवरी, 1952 को दोनों का निकाह हो गया।
कमाल अमरोही और महजबीन के निकाह की कहानी भी दिलचस्प है। चार-छह लोगों की मौजूदगी में दो घंटे के भीतर दोनों का निकाह हुआ था। एक क्लिनिक में महजबीन की फिजियोथेरेपी चल रही थी। पिता अली बख्श रोज रात को आठ बजे महजबीन को उनकी बहन मधु के साथ क्लिनिक पर छोड़ आते थे और दस बजे लेने पहुंच जाते थे। 14 फरवरी (1952) को इसी दो घंटे के दौरान महजबीन का निकाह प्लान किया गया था। कमाल अमरोही के मैनेजर दोस्त, काजी और काजी के दो बेटों के साथ तैयार थे। अली बख्श के जाते ही सब क्लिनिक पर पहुंचे। काजी ने फौरन कमाल और मीना का निकाह पढ़वाना शुरू किया। काजी के दो बेटों और कमाल के दोस्त ने गवाही दे दी।
पिता का गुस्सा देख महजबीन को सच बताना पड़ा। अली बख्श ने तुरंत कहा- तुम्हें तलाक लेना होगा। उन्होंने दोनों के मिलने पर पाबंदी लगा दी। शूटिंग पर मीना के साथ खुद जाने लगे और हर तरह से यह सुनिश्चित किया कि दोनों करीब नहीं आ सकें।
उधर, कमाल अमरोही की बेगम को भी पता चल गया कि उनके शौहर ने दूसरी शादी कर ली है। बेगम बच्चों को लेकर अपने गांव अमरोहा चली गईं। उनके रिश्तेदार तलाक के लिए अमरोही पर दबाव बनाने लगे। कमाल के सामने अजीब मुसीबत थी। पहली बेगम के रिश्तेदार तलाक के लिए दबाव बना रहे थे, दूसरी बीवी से मिलने नहीं दिया जा रहा था। वह हालात से तंग आ गए और एक दिन महजबीन को पैगाम भिजवा दिया कि इस निकाह को एक भूल समझ कर खत्म कर देना चाहिए।
शादी की पहली सालगिरह, यानी 14 फरवरी, 1953 को मीना कुमारी ने कमाल को फोन किया। उन्होंने उस खत के लिए माफी मांगी। इस फोन के साथ ही दोनों के रिश्ते बेहतर होने लगे। वह मीना कुमारी से कहा कि वो दोबारा उनसे संबंध रखना चाहते थे। मुस्लिम रीति-रिवाजों के मुताबिक पहले पति से दोबारा निकाह करने के लिए मीना कुमारी को निकाह हलाला करना था। इसके लिए उन्होंने जीनत अमान के पिता अमान उल्लाह खान की मदद ली। अमान से निकाह और तलाक के बाद वो कमाल अमरोही की दोबारा पत्नी बन पाईं।
पिता की ख्वाहिश के खिलाफ जाकर मीना कुमारी पति की फिल्म ‘डेरा’ की शूटिंग के लिए चली गईं। लेकिन जब रात को घर लौटीं तो पिता ने साफ कह दिया कि बाप-बेटी का रिश्ता खत्म। उन्हें घर नहीं घुसने दिया। मीना कमाल के घर चली गईं। इस तरह उनकी ससुराल में एंट्री हुई।
‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी को बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्म फेयर अवॉर्ड दिलवाया। वह यह अवॉर्ड पाने वाली पहली एक्ट्रेस थीं। इसके बाद भी उन्होंने एक से बढ़ कर एक फिल्में दीं। परिणीता, दिल अपना प्रीत पराई, श्रद्धा, आजाद, कोहिनूर…। 1960 के दशक में वह बहुत बड़ी स्टार बन गई थीं। यह स्टारडम उनकी निजी जिंदगी में कड़वाहट घोल रहा था।
एक बार सोहराब मोदी ने अपनी फिल्म के प्रीमियर में मीना कुमारी और कमाल अमरोही को बुलाया। वहां चीफ गेस्ट महाराष्ट्र के राज्यपाल थे। उनसे परिचय कराते हुए सोहराब मोदी ने कहा – ये मीना कुमारी हैं। बेहतरीन अदाकारा। और ये इनके पति हैं कमाल अमरोही। इस पर कमाल तमतमा गए। उन्होंने तपाक से जवाब दिया- मैं कमाल अमरोही हूं और ये मेरी पत्नी मीना कुमारी हैं। यह कह कर वह फंक्शन से निकल गए।
मीना कुमारी की सफलता कमाल अमरोही को खटक रही थी। दोनों के बीच कड़वाहट इस कदर बढ़ गई कि अमरोही ने मीना कुमारी को फिल्में छोड़ने के लिए कहा। लेकिन मीना ने इनकार कर दिया। तब कमाल ने शर्तें रखीं। कहा कि शूटिंग से शाम 6.30 बजे तक घर लौटना होगा, मेकअप रूम में मेकअपमैन के अलावा किसी की एंट्री नहीं होगी, सिर्फ अपनी कार में चलेंगी। मीना ने कमाल से प्यार के चलते ये शर्तें मान लीं। लेकिन दोनों के संबंध फिर भी नहीं सुधरे।
कमाल अमरोही जब ‘पाकीजा’ बना रहे थे, तब बुरी तरह आर्थिक संकट में फंस गए थे। मीना ने अपनी सारी कमाई देकर पति की मदद की। इसके बावजूद यह फिल्म बनने के दौरान दोनों के संबंध लगातार खराब हो गए। नौबत तलाक तक पहुंच गई थी। मीना कुमारी की तबीयत भी खराब रहने लगी थी। पैसे भी नहीं थे। शौहर भी नहीं। नींद-चैन गायब हो गया। कई बीमारियों ने शरीर में डेरा जमा लिया।
‘पाकीजा’ कमाल अमरोही की महत्वाकांक्षी फिल्म थी, पर वह इसे आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे। सालों बाद सुनील दत्त और नर्गिस ने इसकी शूटिंग शुरू करवाई। इस बहाने तलाक के बाद पहली बार कमाल और मीना की मुलाकात हुई। इस मुलाकात में मीना कुमारी कमाल का हाथ पकड़ कर खूब रोई थीं।
‘पाकीजा’ की शूटिंग दोबारा शुरू हुई। 14 साल बाद 4 फरवरी, 1972 को फिल्म पर्दे पर आई। तब तक मीना मीना की हालत काफी बिगड़ गई थी। बीमारी की हालत में भी वह फिलमें कर रही थीं, लेकिन रोग असाध्य हो गया था। अंतत: 31 मार्च 1972 को लिवर सिरोसिस के चलते मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया और तमाम मुश्किलों से आजाद हो गईं। उन्हें गए चार दशक से भी ज्यादा हो चुके हैं, पर उनके द्वारा बनाया गया मुकाम अब तक कोई और छू नहीं सका है। उनकी अदाकारी इस दर्जे की थी कि 1963 के दसवें फिल्मफेयर अवॉर्ड में बेस्ट एक्ट्रेस कैटेगरी में तीन फिल्में (मैं चुप रहूंगी, आरती और साहिब बीवी और गुलाम) नॉमिनट हुई थीं और तीनों में मीना कुमारी ही थीं। अवॉर्ड साहिब बीवी और गुलाम में ‘छोटी बहू’ के रोल के लिए मिला था।