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अनूपपुर

मरीजों की पहचान करने घरों में नहीं दे रहे दस्तक, 12 जांच केन्द्र के बाद भी टीबी मरीजोंं की बढ़ रही तादाद

कागजी खानापूर्ति में दस्तक जैसे अभियान की पूर्ति कर रहे हैं

अनूपपुरJun 26, 2019 / 01:04 pm

amaresh singh

Do not knock at home to identify patients

मरीजों की पहचान करने घरों में नहीं दे रहे दस्तक, 12 जांच केन्द्र के बाद भी टीबी मरीजोंं की बढ़ रही तादाद

अनूपपुर। टीबी संक्रमण जैसी रोग पर अंकुश पाने की स्वास्थ्य विभाग भोपाल की मंशा पर अब पानी फिरता नजर आ रहा है। स्वास्थ्य अधिकारियों की अनदेखी तथा मैदानी अमले की कोताही में जिले में टीबी मरीजों की संख्या में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी हो रही है। जिला मुख्यालय सहित ग्रामीण क्षेत्रों में इस संक्रमणित बीमारी के प्रति जागरूकता लाने विभाग सक्रिय नहंी दिख रहा है। वहीं अमले भी कागजी खानापूर्ति में दस्तक जैसे अभियान की पूर्ति कर रहे हैं। जिसके कारण अब टीबी मरीजों की संख्या 1700 के पार हो गई है। जबकि प्रशासन द्वारा ऐसे 35 टीबी प्रभावित बच्चों को गोद लेकर उसके स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी और मॉनीटरिंग के निर्देश थे। लेकिन प्रशासन की इस मानवीय संवेदनाओं में कोई भी स्वास्थ्य अधिकारी टीबी प्रभावित बच्चों को गोद लेने सामने नहीं आया। जिला अस्पताल के टीबी रोग विशेषज्ञ डॉ आरपी सोनी ने कहा कि दस्तक अभियान वर्तमान में जारी है, स्वास्थ्य विभाग की टीम भी क्षेत्र का भ्रमण कर रही है। लेकिन मरीजों की संख्या में हो रही बढोत्तरी चिंता का विषय है। जागरूकता के लिए अभियान चलाया जाएगा।


12 जांच केन्द्र हैं
जिला अस्पताल सहित जिलेभर में टीबी रोग की जांच के लिए 12 जांच केन्द्र और दवाईयां उपलब्ध है। बावजूद मरीजों की पहचान में स्वास्थ्य अमले द्वारा घरों पर भी कोई दस्तक नहीं दिया जा रहा है। जिसके कारण मरीजों की बढ़ती तादाद में अब खुद स्वास्थ्य विभागीय के पसीने उतर रहे है। विभागीय जानकारी के अनुसार वर्ष 2017 में टीबी प्रभावित मरीजों की संख्या 1005 दर्ज की थी। लेकिन पिछले एक साल में यह आंकड़ा 1700 पार हो गई है। इससे पूर्व वर्ष 2016 में यह आंकड़ा 1007 था। इसमें अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वे रिपोर्ट स्वास्थ्य विभाग जुटा नही पाया था। जबकि वर्ष वर्ष 2015 में यह आंकड़ा 884 था। यानि प्रतिवर्ष टीबी मरीजों का आंकड़ा घटने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। इसका मुख्य कारण एएनएम, आशाकार्यकत्र्ताओं की महत्वपूर्ण भूमिका ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को जागरूक नहीं करना है। और ना ही लोगों में जानकारी उपलब्ध कराने स्वास्थ्य विभाग द्वारा शिविर जैसी व्यवस्थाओं पर जोर देना है। जिसके कारण अधिकांश लोगों को यह जानकारी नहंी मिल पाती है कि टीवी एक संक्रमित रोग है। क्योंकि संक्रमित रोगी के सांसों से, उसके छींकने-खखारने से, आसपास उठने बैठने से, यहां तक कि उसके शरीर या सांसों के हवाओं के सम्पर्क में आने से भी दूसरे सामान्य लोग इस टीबी जैसे संक्रमण के शिकार हो जाते हैं।


अन्य सेंटरों पर नहीं है विशेषज्ञ डॉक्टर
एक ओर टीबी उन्मूलन शासन ने लगातार प्रयासरत है, वहीं जिले में टीबी जांच के लिए 12 जांच केन्द्र तथा दो ट्रीटमेंट यूनिट संचालित है। लेकिन जिला अस्पताल में एक डॉक्टर के अलावा अन्य सेंटरों पर एक भी डॉक्टर विशेषज्ञ नहीं है। जबकि शासन द्वारा वर्ष 2016 में 25 लाख से अधिक की लागत में सीबीनोट जैसे उपकरण लगाए हैं जिसके माध्यम से किसी मरीज की जांच 2 मिनट में यह स्पष्ट कर देती है कि सम्बंधित मरीज टीबी से प्रभावित है या नहीं। यही कारण है कि वर्ष 2017 में नगरीय क्षेत्र अनूपपुर में टीबी के कारण दो लोगों की मौत हो गई थी। हालांकि आंकड़ों में विभाग 3 फीसदी मौत सामान्य मानता है। लेकिन जिस तरह से आंकड़ो की बढोत्तरी हो रही है वह कहीं न कहीं शुभ संकेत नहीं दिख रहे हैं।


35 टीबी प्रभावित बच्चों को नहीं लिया गोद
हाल सर्वे में जिले में टीबी से 35 प्रभावित बच्चे सामने आए थे। जिसे कुपोषण की भांति जिला प्रशासन ने इन टीबी प्रभावित बच्चों को स्वास्थ्य विभाग अधिकारियों से गोद लेकर उसकी समस्त जिम्मेदारी लेते हुए स्वस्थ्य बनाने तक निर्देिशत किया था। इस दौरान 5 बच्चे उपचार के दौरान खुद टीबी के प्रभाव से मुक्त हो गए। लेकिन शेष बच्चों को गोद लेने अबतक किसी अधिकारी ने पहल नहीं की।

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