बेंगलूरु. अपने जीवन को भवितव्यता मान कर जीना। मेरे भाग्य में जो था , वो मुझे मिला, ऐसा समझकर जीना। यह विचार आचार्य प्रसन्न सागर के हैं। वे जक्कूर स्थित एमसीएचएस लेआउट में आईएएस अधिकारी मनोज जैन, शैलजा पाटनी की उपस्थिति में पाटनी परिवार की ओर से गुरु पूजा के बाद प्रवचन कर रहे थे। आचार्य ने कहा कि मेरा चिंतन है कि मृत्यु की चिंता नहीं करनी चाहिए। जो मर रहा है , वो मैं नहीं हूं, जो देख रहा है, बस वही मैं हूं। संसार में जो भी पदार्थ तुम्हें मिल रहे हैं वो सब छूटने वाले हैं। दृश्य दिख रहे हैं , दृष्टा भीतर से देख रहा है , जो देख रहा है , बस वही अजर – अमर – अविनाशी है । जब आत्मा मरता ही नहीं है, फिर डर किस बात का। डरते वो लोग हैं जिन्होंने खूब जोड़ लिया है।
आचार्य ने कहा कि हर व्यक्ति की जिंदगी में कुछ न कुछ व्रत नियम होना ही चाहिए । बिना व्रत – नियम के जीवन पशुओं के जीवन के समान है। उपाध्याय पीयूष सागर ने भी विचार व्यक्त किए। शाम को आचार्य संघ का विहार हैदराबाद की ओर हुआ ।