आत्मा से पूछा जाय कि यह उत्तम मनुष्य गति में आकर क्या किया तो जवाब मिलेगा कि समय बिताया। पर्व आया है तो जागृत होकर आत्मा साधना कर लेनी चाहिए। पर्युषण पर्व में हमें पांच प्रकार की आराधना करनी है। पौषध, पूजा, प्रत्याख्यान, प्रवचन, प्रतिक्रमण करना चाहिए। यह पांच आराधना प्रमाद का त्याग करके पवित्र भाव से करनी है।
उन्होंने कहा कि धर्म की शुरुआत कोमलता से होती है। दया भाव अति आवश्यक है। वर्तमान में व्यक्ति कोमल से कठोर बनते जा रहे हैं। हिंसा का वातावरण बढ़ रहा है। जिस दिन मनुष्य की अंतरआत्मा जागृत हो जाएगी, परिणति में धर्म आएगा तब पाप का डर आ ही जाएगा। साधर्मिक भक्ति का लाभ प्रेमाबेन पुखराज तालेड़ा परिवार ने लिया।