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बैंगलोर

अंतरिक्ष में भारत की एक और आंख

कार्टोसैट-2 एफ से बढ़ेगी निगरानी एवं अवलोकन क्षमता

बैंगलोरJan 12, 2018 / 06:05 pm

Rajeev Mishra

pslv c 40
बेंगलूरु. पीएसएलवी सी-40 से अर्थ ऑब्जर्वेशन उपग्रह कार्टोसैट-2 एफ के प्रक्षेपण के साथ ही अंतरिक्ष से धरती पर देखने वाली निगाहें और पैनी हो गई हैं। अंतरिक्ष में भारत की ‘आंख’ कहे जाने वाले कार्टोसैट-2 श्रृंखला के 6 उपग्रह पहले भेजे गए थे और कार्टोसैट-2 एफ इस श्रृंखला का सातवां उपग्रह है। इनमें से चार उपग्रह ऑपरेशनल हैं।
दरअसल, धरती से 505 किलोमीटर की ऊंचाई पर सूर्य समकालिक कक्षा में स्थापित किए गए कार्टोसैट-2 श्रृंखला के उपग्रह सीमा क्षेत्रों की निगरानी और मानचित्रण के लिए बेहद उपयोगी है। ये उपग्रह पृथ्वी की बेहतर स्कैनिंग करने की अद्भूत क्षमता रखते हैं। इनमें लगे उच्च रिजोल्यूशन मल्टी स्पेक्ट्रल उपकरण और पैंक्रोमेटिक कैमरे आश्चर्यजनक एवं स्तब्ध कर देने वाली धरती की तस्वीरें भेजेते हैं। सड़कों के निर्माण से लेकर धरती पर हर परियोजनाओं को देखा जा सकता है। इनसे 0.6 मीटर छोटी वस्तु को भी अंतरिक्ष से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इससे पहले 23 जून 2017 को इसरो ने कार्टोसैट-2 ई का प्रक्षेपण किया था जबकि 15 फरवरी 2017 को रिकॉर्ड 104 उपग्रहों के साथ कार्टोसैट-2-डी भेजा गया था। इस श्रृंखला के उपग्रहों की सं या वर्ष 2016 के बाद बढ़ी है। कार्टोसैट-2-सी 22 जून 2016 को छोड़ा गया था जिसने भारतीय सेना द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में की गई सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाई। कार्टोसैट सैन्य बलों को एरिया ऑफ इंट्रेस्ट पर आधारित तस्वीरें भी प्रदान करता है। इन उपग्रहों के जरिए धरती हर कोने पर नजर रखी जा सकती है। उपग्रह की हाई रिजोल्यूशन वाली तस्वीरों के जरिए सैन्य अथवा असैन्य हवाई अड्डे पर कितने हवाई जहाज खड़े हैं, इसका भी आसानी से पता लगाया जा सकता है। सीमा सुरक्षा के नजरिए से ये उपग्रह काफी अहम है। कार्टोसैट श्रृंखला के पहले उपग्रह कार्टोसैट-1 का प्रक्षेपण 5 मई 2005 को किया गया था जबकि 10 जून 2007 को कार्टोसैट-2 भेजा गया। उसके बाद कार्टोसैट-2 श्रृंखला के उपग्रहों कार्टोसैट-2ए का प्रक्षेपण 28 अप्रेल 2008 को और कार्टोसैट2 बी का प्रक्षेपण 12 जुलाई 2010 को किया गया।

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