जून २०१८ में भी पत्रिका ने इस मुद्दे को उठाया था। आइएनयू के निदेशक डॉ. शिवलिंगय्या एम. ने एक सप्ताह में मशीन के लग जाने का भरोसा दिलाया था। लेकिन करीब डेढ़ वर्ष गुजर जाने के बाद भी मशीन नहीं लगी है। इस बार डॉ. शिवलिंगय्या ने बताया कि तकनीकी कारणों से मामला अटका पड़ा है।कुछ सप्ताह में समस्या का समाधान हो जाएगा।
एक अन्य वरिष्ठ नेफ्रोलॉजिस्ट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि चिकित्सकों की आपसी लड़ाई के कारण मशीन नहीं लग पा रही है। जिस कमरे में मशीन लगनी थी, उस पर एक वरिष्ठ चिकित्सक का कब्जा है।चिकित्सा शिक्षा विभाग को भी इसकी जानकारी है, लेकिन अधिकारियों का कहना है कि मशीन आवंटन के बाद उनकी जिम्मेदारी खत्म हो गई है।
अब आइएनयू और चिकित्सक तय करें कि मशीन कहां स्थापित करनी है। दरअसल, मशीन पहले माइनर ओटी में लगनी थी, लेकिन एक वरिष्ठ चिकित्सक ने ओटी कक्ष देने से मना कर दिया। जिसके बाद एक्स-रे कक्ष में मशीन लगाने पर सहमति बनी। कक्ष के नवीकरण के लिए एक्स-रे सेवा करीब दो महीने तक बाधित रही। मरीजों को एक्स-रे के लिए विक्टोरिया अस्पताल पर निर्भर रहना पड़ा।
नवीकरण कार्य में करीब तीन लाख रुपए अतिरिक्त खर्च हुए। मशीन के रखे-रखे खराब होने की स्थिति में लाखों रुपए का अतिरिक्त खर्चा आएगा।
रिपोर्ट नहीं मिलने से उपचार में देरी
अस्पताल के एक रेडियोलॉजिस्ट के अनुसार मरीज या तो दूसरे विभाग में या फिर बाहर सीटी स्कैन कराने पर मजबूर है। दूसरे विभाग में सीटी स्कैन करवाने के कारण रिपोर्ट आने में दो से चार दिन का समय लगता है। तब तक मरीज को आगे के उपचार के लिए इंतजार करना पड़ता है। हालांकि स्कैन की फिल्म कम्प्यूटर पर जल्द ही अपलोड की जाती है। जिसे विशेष सॉफ्टवेयर के माध्यम से अन्य विभाग या अस्पताल के चिकित्सक अपने कम्प्यूटर देख सकते हैं। मगर हर विभाग के पास ये सॉफ्टवेयर नहीं होने या प्रभावी संचार के अभाव में चिकित्सक फिल्म नहीं देख पाते या फिर गरीब मरीजों के लिए इतनी जहमत नहीं उठाने चाहते हैं।
जरूरी प्रक्रिया बाकी
सीटी स्कैन मशीन लगाने की प्रक्रिया तेजी से जारी है। कुछ चिकित्सकों के बीच समस्या थी। लेकिन देरी के और भी तकनीकी कारण हैं। कुछ जरूरी प्रक्रिया बाकी है। आइएनयू का इरादा मरीजों को परेशान करना नहीं है।
डॉ. शिवलिंगय्या एम., निदेशक, आइएनयू