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बैंगलोर

… ऐसे तो हो गया शिक्षा का उद्धार

प्रदेश के सरकारी स्कूल के बच्चे शिक्षकों की कमी से बेहाल हैं। 23 हजार से भी ज्यादा स्कूलों में प्रधानाध्यापक नहीं हैं। इतना ही नहीं, प्रदेश के 3315 प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में एक-एक अध्यापक ही हैं। नीति आयोग ने कुछ दिन पहले जारी स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स 2016-17 में इन तथ्यों को सामने रखा है।

बैंगलोरOct 04, 2019 / 03:44 pm

Nikhil Kumar

... ऐसे तो हो गया शिक्षा का उद्धार

… ऐसे तो हो गया शिक्षा का उद्धार

 

– 3315 विद्यालयों में एक-एक अध्यापक
– 49 फीसदी सरकारी स्कूल बिना प्रधानाध्यापक के

बेंगलूरु.

प्रदेश सरकार अपने स्कूलों को निजी स्कूलों के समक्ष खड़ा कर शिक्षा का अधिकार (Right to Education) अधिनियम के तहत निजी स्कूलों (Private schoold) को दी जा रही करोड़ों रुपए की प्रतिपूर्ति शुल्क से छुटकारा पाना चाहती है। कई शिक्षाविदों ने इसकी वकालत भी की है। लेकिन दूर-दूर तक ऐसा होता नहीं दिख रहा है।

प्रदेश के 49 फीसदी सरकारी स्कूलों का संचालन बिना प्रधानाध्यापक (Headmaster) के हो रहा है। इतना ही नहीं, प्रदेश के 3315 प्राथमिक और उच्च विद्यालयों में एक-एक अध्यापक (Teacher) ही हैं। नीति आयोग (NITI Aayog) ने कुछ दिन पहले जारी स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स (School Education Quality Index) 2016-17 में इन तथ्यों को सामने रखा है। ऐसे में इन schools में पढऩे आने वाले बच्चों और शिक्षकों पर काम के बोझ का अंदाजा लगाया जा सकता है। शिक्षाविदों का कहना है कि 49 फीसदी का संदर्भ 23 हजार से भी ज्यादा स्कूलों से है। पढ़ाई के अलावा प्रधानाध्यापक के पास स्कूल के प्रबंधन की जिम्मेदारी भी होती है। प्रधानाध्यापक के नहीं होने से कामकाज बाधित होता है।

कई प्रधानाध्यापक ठीक से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हैं। उदाहरण के लिए कुछ सप्ताह पहले गदग जिले के एक गांव के सरकारी उच्च विद्यालय में गणित की कक्षा के दौरान प्रधानाध्यापक अपने मोबाइल पर व्यस्त थे। उनकी जगह स्कूल का चपरासी 10वीं कक्षा के बच्चों को गणित पढ़ा रहा था। वहां यह स्थिति बीते चार माह से थी। Education Department के सूत्रों के मानें तो विभिन्न कारणों से वर्ष 2012 से प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति नहीं हुई है।

एसोसिएटेड मैनेजमेंट ऑफ प्राइमरी एंड सेंकेंडरी स्कूल्स इन कर्नाटक के महासचिव डी. शशि कुमार ने कहा कि आरटीइ के तहत सरकार के पास स्कूलों का करोड़ों रुपए बकाया है। लंबे समय से प्रतिपूर्ति शुल्क का भुगतान नहीं हुआ है। बावजूद इसके निजी स्कूल कमजोर आय वर्ग के परिवारों के बच्चों को शिक्षित कर अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं। सरकार अपने स्कूलों को सुधार नहीं रही है। शिक्षकों और प्रधानाध्यापकों की नियुक्ति नहीं हो रही है।

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