कबीरदास कहते हैं, कस्तूरी कुंडल बसे, मृग ढूंढत बन माहि। यह सब जानते हुए भी कुछ लोग साधना के नाम पर पूजा-पाठ, तीर्थ-व्रत और कई प्रकार के कर्मकांड करते हैं। वहीं कुछ लोग साधना का मार्ग ढूंढ़ते हैं, धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन भी करते हैं।
आचार्य ने कहा कि सच्चाई तो यह है कि हमारे जीवन में अज्ञानता का गहरा अंधकार है और हमें ज्ञान के उजाले की जरूरत है। परमात्मा का साक्षात्कार करना जीवन का एक महत्वपूर्ण अनुभव है। क्योंकि जीवन का मकसद ही यही है कि हम अपनी आत्मा को धन्य बनाएं। यह अनमोल जीवन भ्रम-शंका, भय और लोभ-लालच में यूं ही बीतता जा रहा है और हमें कोई परवाह नहीं है। हर क्षण, हर सांस में साक्षी भाव होना जरूरी है। तभी ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति, सच्चा प्रेम, सच्चा समर्पण होगा।