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बैंगलोर

विधायकों को जोड़े रखने के जुगाड़ में जद-एस

उप चुनाव में एक भी सीट पर सफलता नहीं पाने वाले जनता दल-एस को अब अपने 34 विधायकों को पार्टी में बनाए रखने की चिंता सता रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता बसवराज पाटिल यत्नाल ने मध्य तथा उत्तर कर्नाटक क्षेत्र के 10 से 12 विधायकों के सत्तापक्ष के संपर्क में होने का बयान देकर उपचुनाव में विफलता के झटके से उबरने से पहले ही जद-एस नेतृत्व को मुश्किल में डाल दिया है।

बैंगलोरDec 11, 2019 / 07:40 pm

Sanjay Kulkarni

विधायकों को जोड़े रखने के जुगाड़ में जद-एस

विधायकों को जोड़े रखने के जुगाड़ में जद-एस

विधायकों को जोड़े रखने के जुगाड़ में जद-एस
बेंगलूरु. उप चुनाव में एक भी सीट पर सफलता नहीं पाने वाले जनता दल-एस को अब अपने 34 विधायकों को पार्टी में बनाए रखने की चिंता सता रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता बसवराज पाटिल यत्नाल ने मध्य तथा उत्तर कर्नाटक क्षेत्र के 10 से 12 विधायकों के सत्तापक्ष के संपर्क में होने का बयान देकर उपचुनाव में विफलता के झटके से उबरने से पहले ही जद-एस नेतृत्व को मुश्किल में डाल दिया है।
जद-एस को आस थी कि उपचुनाव में भाजपा को 6 से कम क्षेत्रों ही में सफलता मिलेगी और ऐसी स्थिति में पार्टी को एक बार किंगमेकर की भूमिका निभाने का अवसर मिलेगा। लेकिन परिणाम ने इस मंशा पर पानी फेर दिया है। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा तथा पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के सामने अब पार्टी के बचे हुए विधायकों जोड़े रखने का जुगाड़ करना पड़ रहा है।
सत्तापक्ष की ओर झुकाव आम बात
पार्टी के वरिष्ठ नेता विधान पार्षद बसवराज होरट्टी के अनुसार सत्ता के बगैर विधायकों को साथ में रखना आसान नहीं होता। हर विधायक को अपने राजनीतिक भविष्य की चिंता रहती है। ऐसे में अगर कोई पार्टी सत्ता से दूर होती है तो उसके विधायकों का सत्तापक्ष की ओर झुकाव होना आम बात है। पार्टी के विधायक क्षेत्र के विकास के बहाने सत्तासीन दल की ओर झुक सकते हैं, राज्य में ऐसी कई मिसाल हैं।
पूर्व मंत्री जीटी देवगौड़ा ने भी चेताया
वहीं पूर्व मंत्री पार्टी के वरिष्ठ नेता जीटी देवगौड़ा ने बुधवार को मैसूरु में कहा कि विधायकों को पार्टी के साथ बनाए रखने के लिए एचडी कुमारस्वामी को अब अपने रुख में बदलाव लाना होगा। कुमारस्वामी की कथनी और करनी में अंतर होने के कारण पार्टी के कई विधायक नाराज हैं। ऐसे विधायकों को मनाकर उनको विश्वास में लेना पार्टी के नेतृत्व का दायित्व है। उपचुनाव के प्रचार के दौरान कुमारस्वामी ने अपनी ही पार्टी के विधायकों के खिलाफ जो बयान दिए उसी कारण से पार्टी के विधायक नाराज हुए तथा उपचुनाव के दौरान निष्क्रिय रहे। विधायकों की यह निष्क्रियता पार्टी को काफी महंगी साबित हुई है।

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