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बैंगलोर

दीक्षार्थियों ने स्वीकार किया वैराग्य जीवन

जीवन में संयम का आना दुर्लभ-आचार्य महाश्रमणबेंगलूरु प्रवास में आचार्य के सान्निध्य में द्वितीय दीक्षा महोत्सव

बैंगलोरOct 20, 2019 / 07:21 pm

Yogesh Sharma

दीक्षार्थियों ने स्वीकार किया वैराग्य जीवन

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बेंगलूरु. आचार्य तुलसी महाप्रज्ञ चेतना केंद्र का महाश्रमण समवसरण रविवार सुबह हजारों श्रद्धालुओं से खचाखच था। हर कोई आज के इस भौतिक युग में भौतिकता को छोड़ संयम स्वीकार करने वाले दीक्षार्थियों की दीक्षा देखने के लिए उत्साहित नजर आ रहा था। जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें पट्टधर आचार्य महाश्रमण की सान्निध्य में सुबह 9 बजे नमस्कार महामंत्रोच्चार के साथ दीक्षा समारोह का शुभारंभ हुआ।

दीक्षार्थियों ने स्वीकार किया वैराग्य जीवन
आचार्य महारमण ने कहा कि आदमी के जीवन में खूब पैसा आ सकता है, समाज में ऊंचे पद और भौतिक चीजें भी जा सकती हंै परंतु संयम का आना दुर्लभ है। संयम के सामने पैसे, पद, भौतिक संसाधन सब बौने होते हैं, तुच्छ होते हैं। त्याग के द्वारा व्यक्ति शांति को प्राप्त करता है। आचार्य ने कहा कि व्यक्ति के मन में दीक्षा का भाव जागना अपने आप में विशेष है। कितने ही अवस्था प्राप्त व्यक्तियों के मन में भी दीक्षा लेने का विचार नहीं आता। यह पूर्व जन्म के संस्कार ही है जिनसे मन में साधुत्व स्वीकार करने की भावना उत्पन्न होती है। जिसमें भी जैन तेरापंथ धर्म संघ में दीक्षा लेना विशेष बात है।

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नमोत्थुणम् के पाठ से भगवान महावीर एवं तेरापंथ के प्रथमाचार्य भिक्षु एवं सभी पूर्वाचार्य व आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञ को वंदन करते हुए आचार्य महाश्रमण ने दीक्षा संस्कार के शुभारंभ किया। आर्षवाणी का वाचन करते हुए आचार्य ने समणी हिमांशु प्रज्ञा, मुमुक्षु राहुल बोहरा (ज्ञानगढ़-बेंगलूरु), मुमुक्षु कुणाल श्यामसुखा (उदासर-चेन्नई), ग्यारह वर्षीय मुमुक्षु खुश बाबेल (ठीकरवास-चेन्नई), मुमुक्षु आंचल बरडिय़ा (सोजत रोड- बेंगलूरु) को जैन मुनि दीक्षा प्रदान की। आचार्य ने पूर्व जीवन में लगे दोषों की आलोचना कराई। दीक्षा संस्कार के तहत आचार्य ने नवदीक्षित मुनियों के केश कुचन करते हुए चोटी गुरु के हाथ में रहती है उक्ति को सार्थक किया। नामकरण संस्कार में गुरुदेव ने समणी हिमांशुप्रज्ञा का नाम साध्वी हेमंतप्रभा एवं मुमुक्षु आंचल का नाम साध्वी आर्षप्रभा तथा अन्य दीक्षितों के नाम यथावत रखे। अहिंसा का ध्वज रजोहरण प्रदान करते हुए आचार्यवर ने नव दीक्षितों को प्रेरणा देते हुए कहा कि संयम जीवन में अब हर कार्य गुरु इंगित के अनुसार करना है। गुरु की आज्ञा ही सर्वोपरि होती है। खाने में, चलने में, बैठने-सोने में हर चीज में संयम हो इसका ध्यान रखना है। कठिनाइयों को सहन करने की प्रेरणा प्रदान की।

इससे पूर्व कार्यक्रम में साध्वी प्रमुख कनकप्रभा ने सारगर्भित उद्बोधन प्रदान किया। समणी सुमनप्रज्ञा एवं मुमुक्षु दीक्षा के दीक्षार्थियों का परिचय दिया। पारमार्थिक शिक्षक संस्था के बजरंग जैन ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। इसके बाद दीक्षार्थियों के परिजनों ने आज्ञा पत्र गुरु चरणों में अर्पित किया। सभी दीक्षार्थियों ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। मंच संचालक मुनि दिनेश कुमार ने कहा कि बेंगलूरु की धरा पर आज अनेक कीर्तिमान हो गए हैं। अहिंसा यात्रा के दौरान बेंगलूरु की धरा पर सर्वाधिक 28 दीक्षाएं हुई हंै। बेंगलुरु चातुर्मास में अब तक 64 मासखमण हुए हैं। साध्विप्रमुखा कनकप्रभा के प्रमुखा बनने के बाद अब तक 500 साध्वियों की दीक्षा हो चुकी हैं। कार्यक्रम में देश के कोने-कोने से आए हजारों लोगों की उपस्थिति रही। प्रवास समिति अध्यक्ष मूलचंद नाहर, महामंत्री दीपचंद नाहर ने हीरालाल मालू का सम्मान किया।

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