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बांसवाड़ा

अंग्रेजों का आदेश नहीं माना तो घसीट कर जेल में डाल दिया

देश की आजादी की खबर मिलते ही खुशी से आंसू भर आए। यह खबरें जिसने भी सुनी वह खुशी से झूम उठा, आजादी के महा पर्व मनाने के लिए लोगों के कदम शहर के प्रमुख स्थल आजाद चौक की तरफ बढ़ गए।

बांसवाड़ाAug 10, 2022 / 12:45 pm

santosh

Azadi Ki Baat: If He Did Not Obey The Orders Of The British, He Was Dragged And Thrown In Jail

पत्रिका न्यूज़ नेटवर्क

देश की आजादी की खबर मिलते ही खुशी से आंसू भर आए, मानो समूचे देश में दिवाई हो गई। यह खबरें जिसने भी सुनी वह खुशी से झूम उठा, आजादी के महा पर्व मनाने के लिए लोगों के कदम शहर के प्रमुख स्थल आजाद चौक की तरफ बढ़ गए। यहां बड़ी संख्या में एकत्रित हुए लोगों ने आतिशबाजी की और मिठाइयां बांटी। समूचा बांसवाड़ा भारत माता की जय व शहीदों व स्वतंत्रता सैनानियों के जयकारे से गूंज उठा। बांसवाड़ा के वयोवृद़् शिक्षक जगदीश मेहता ने राजस्थान पत्रिका से 75 वर्ष पुरानी यादा ताजा करते हुए यह बात कही।

प्रजा मण्डल ने संभाल रखी थी कमान:
वह बताते है कि वर्ष 1944 से देश की आजादी का संघर्ष उन्हें याद है। जब- जब देश में आंदोलन को गति मिलती और देश के आजाद होने की संभावना सामने आती तो लोग इसी आजाद चौक में एकत्रित होते और आंदोलन पर चर्चा करते। यहां आंदोलन के दौरान प्रजा मण्डल सक्रिय था और उससे कई देश भक्त जुड़े हुए थे।

चिमन रहा बांसवाड़ा का नायक:
देश आज आजादी की 75 वीं वर्ष गांठ मना रहा है, लेकिन आजादी मिलने की खुशी का नजारा आज भी दिलो दिमाग में छाया हुआ है। वह बताते हैकि कस्बे के ही चिमनलाल मालोत, सूरजमल, सूर्यकरण जोशी, उपेन्द्र त्रिवेदी, दुर्गाशंकर नागर बंधू समेत कई बांसवाड़ा से देश की आजादी के नायक रहे है। मालोत ने तो नौकरी ही छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए। वह आजादी से जुड़ा एक किस्सा सुनाते हुए बोले की देश के आजादी के लिए बिगुल बजा तो अंग्रेजों ने बाजार, स्कूलें नहीं खोलने दी, लेकिन मालोत ने अपनी लाईब्रेरी खोल दी। इस पर उसे घसीट कर जेल में डाल दिया। बांसवाड़ा के कई लोग भी देश की खातिर जेल में गए।

अंग्रेजों के नाम से ही डरते थे:
सन् 1934 में जन्मे मेहता बताते है देश आजाद नहीं हुआ, उससे पहले देश भक्तों के चर्चे खूब होते थे, लेकिन मौजूद समय के शिक्षक उनके बारे में बताने या पढ़ाने से डरते थे। वह मानते थे की यदि अंग्रेजों या फिर मौजूदा महाराजा को मालूम पड़ा तो उसकी सजा मिलना तय है। मेहता बताते है अंग्रेज कस्बे या फिर आसपास के गांव में घोड़ों से आते थे तो लोग दहशजजदा हो उठते थे। लोग यही दुआ करते थे कि उनसे सामना नहीं हो, क्यूंकि उनसे सामना होने का अंजाम सभी जानते थे।

 

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भूकिया से हो गया आंनदपुरी:
88 वर्षीय मेहता बताते है कि संत विनोबा भाव भूदान यज्ञ के तहत वर्ष 1956 में बांसवाड़ा के ही आनंदपुरी गांव आए थे। यहां उन्हें राजा ने जन कल्याण के लिए जमीन दान की। उस जमाने में आनंदपुरी को भूकिया गांव के नाम से जाना जाता था, क्यूंकि उस जमाने में यहां पानी, फसल आदि कुछ नहीं था जमीन भी बंजर थी। ऐसे मेे भूख ही अ धिक पसरती रहती है। भावे ने इसे पर कहा कि यहां पर अब आंनद ही आंनद की बयार बहेगी और यह गांव आनंदपुरी के नाम से जाना पचाना जाएगा। इसके बाद भूकिया गांव आनंदपुरी हो गया।

https://youtu.be/VkFM5M47daQ

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