आध्यात्मिक महत्व : – ज्योतिष मार्तंड पं. करुणाशंकर जोशी ने बताया कि इस दिन भगवान सूर्यदेव अपने शनिदेव से मिलने के लिए शनि के घर में प्रवेश करते हैं। इसके चलते लोग शनि के प्रकोप से बचने के लिए सूर्य को अघ्र्य चढ़ाते हैं। इस दिन से सूर्यदेव उत्तरायण होना शुरू हो जाएंगे। इससे दिन बड़े और राते छोटी होना शुरू हो जाएगी। ऐसा माना जाता है कि बसंत का आगमन भी इसी दिन से होता है। मलमास समाप्त होने से मांगलिक कार्य शुरू होंगे।
वैज्ञानिक महत्व : – मकर संक्रांति के दिन से ही जलाशयों में वाष्पन क्रिया शुरू होने लगती है, जिसमें स्नान करने से स्फूर्ति व ऊर्जा का संचार होता है। इसी कारण इस दिन पवित्र नदी और जलाशयों में स्नान करने का महत्व माना गया है। इस दिन गुड़ व तिल खाने का महत्व है। इससे शरीर को ऊष्णता व शक्ति मिलती है।
त्योहार एक नाम अनेक : – भारत के साथ दक्षिणी एशिया के कई अन्य देशों में भी मकर संक्रांति का त्योहार मनाया जाता है। अलग-अलग प्रदेशों में इसे अलग अलग नामों व विधियों के साथ मनाया जाता है। देश के अधिकांश प्रदेशों में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। राजस्थान में उत्तरायण व संक्रांति तथा पश्चिम बंगाल तिल दान करके मनाई जाती है। जबकि तमिलनाडू में इसे पोंगल, के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। गुजरात में उतरायन, असम में बीहू और उत्तर प्रदेश व बिहार में इसे खिचड़ी कहते हैं। नेपाल, थाइलैंड, मायांमार, कंबोडिया और श्रीलंका में भी इस त्योहार को श्रद्धा पूर्वक मनाया जाता है।
राशि के अनुसार दान का महत्व : – मकर संक्रांति के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व माना गया है। पंडित जोशी के अनुसार इस दिन तिल व गुड़ के बने व्यंजन, खिचड़ी, ऊनी वस्त्र आदि का दान करने का विधान है। इस दिन किए गए दान-पुण्य से कई गुणा अधिक फल मिलता है। राशि के अनुसार दान करने से इसका फल और अधिक हो जाता है।
मेष- लाल वस्त्र, तांबे के बर्तन, मसूर की दाल। वृषभ- चावल, खिचड़ी, चांदी की वस्तु, घी। मिथुन- हरे व पीले वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग। कर्क- सफेद वस्त्र, तंदुल व सफेद ऊन।
सिंह- गेहूं, गुड़, ताम्र पात्र व लाल कपड़े। कन्या- गो अर्क, फल, खड़ाऊ, हरी घास। तुला- सप्तधान, इत्र। वृश्चिक- गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र। धनु- शक्कर, हल्दी, स्वर्ण व पीले वस्त्र।
मकर- काला कंबल, काले तिल। कुंभ- गाय का घी, काले वस्त्र। मीन- चने की दाल, धर्म ग्रंथ व पीले वस्त्र।