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बाड़मेर

हिन्दुस्तान सिंध फतेह कर जाता यदि नहीं रुका होता युद्ध

14 दिसम्बर 1971 की वह काली अंधेरी रात, हाड़ कंपाने वाली सर्दी, आकाश में तेज गजज़्ना के साथ अंगारों की तरह गोले बरसाते युद्धक विमान पूवज़् से पश्चिम की तरफ आगे बढ़ रहे थे..रात भर यह मंजर चलता रहा जिसे हर किसी ने पहली बार अहसास किया था।

बाड़मेरDec 04, 2020 / 10:45 am

Ratan Singh Dave

हिन्दुस्तान सिंध फतेह कर जाता यदि नहीं रुका होता युद्ध

हिन्दुस्तान सिंध फतेह कर जाता यदि नहीं रुका होता युद्ध

चौहटन पत्रिका .
14 दिसम्बर 1971 की वह काली अंधेरी रात, हाड़ कंपाने वाली सर्दी, आकाश में तेज गजज़्ना के साथ अंगारों की तरह गोले बरसाते युद्धक विमान पूवज़् से पश्चिम की तरफ आगे बढ़ रहे थे..रात भर यह मंजर चलता रहा जिसे हर किसी ने पहली बार अहसास किया था। बड़ा ही भयावह करने वाला यह दृश्य एकाएक पहली बार देखा तो लोगों के होश फाख्ता हो गए, चुपके चुपके आसपास के कुछ लोग एक दूसरे को दिलासा देने और खैर खबर लेने एकत्र हुए। इतने में घररातज़् की आवाजों के साथ बस्ती के निकट कुछ ट्रक आकर रुके, बस्ती के कुछ लोगों को बुलाकर पीने को पानी मांगा, पानी पीकर वह ट्रकों का काफिला यह कहते हुए पश्चिम की ओर निकल गया। इन फौजी ट्रकों में कुछ पाक सैनिक अपने सैनिकों की लाशें ट्रकों में डालकर ले जा रहे थे, सन्नाटे के साथ हमारी भी कुछ खुसर फुसर हुई, लेकिन माजरा समझ में नहीं आया, जाते हुए पाक सैनिकों ने कहा कि जान बचानी हो तो यहां से भागना होगा।
सवेरा होने पर भारतीय फौज के ब्रिगेडियर भवानीसिंह, लक्ष्मणसिंह सोढा सहित छाछरो पहुंचे, खबर मिली कि भारतीय फौज ने छाछरो फतेह कर लिया है वह आगे बढ़ रही है। रात के मंजर की याद ने अहसास करवाया कि वह भारतीय लड़ाकू विमान थे जो सिंध फतेह करने की तैयारी में थे।
हुक्म यह भी हुआ कि अब यहां से अगर इंडिया जाना हो तो जा सकते हैं कोई रोकटोक नहीं होगी, बस हजारों लोगों का काफिला निकल पड़ा पश्चिम से पूवज़् की ओर।
भाईचारा काबिले तारीफ:- जातियां थी लेकिन जात पांत नहीं थी, हर तबके में मेलजोल और भाईचारा उच्च स्तर का था, राजपूत, ब्राह्मण, माहेश्वरी, मेघवाल, भील सभी जातियों में एकजुटता व सहयोग के भाव थे। पूरा गांव एकत्र सामूहिक निणज़्य के साथ एक दूसरे के सहयोग से काफिले के रूप में चलकर इधर की मंजिल पर पहुंचे।
विस्थापन का शब्द सुनकर ही कलेजा कांप जाता है, अपने वतन और जड़ जमीन से उखड़कर सैकड़ों मील दूर अनजाने मुल्क में स्थापित होने की चाहत में हुआ विस्थापन रूह कंपा देने वाला था, लेकिन उसके पीछे के सुकून की चाहत में कदम बढ़ते ही गए। हजारों परिवार पाक से विस्थापित होकर भारत के सरहदी इलाकों में आकर बस गए।
पाक से आया बुलावा:- शिमला समझौते के बाद अमरकोट के राणा चन्दनसिंह भुट्टो सरकार के आग्रह पर उनके दो मुस्लिम मंत्रियों के साथ भारत आकर विस्थापितों को वापस चलने का आग्रह करने यहां आए। हालांकि कुछ परिवारों को छोड़ा किसी भी पाक विस्थापित ने वापस जाना मुनासिब नहीं समझा।
तरूणराय कागा पाक में प्राइवेट कम्पाउडर के पद पर डिस्पेंसरी में नौकरी करते थे, बताते हैं कि विस्थापितों के लिए जिले के सरहदी इलाके में 24 केम्प लगाए गए। उस दौर में इस इलाके का कोई रहवासी सरकारी सेवा में नहीं था, पहली बार पाक विस्थापितों मेंसे ही युवक सरकारी सेवाओं नौकरी पर लगे। विस्थापितों मेंसे लक्ष्मणसिंह सोढा 1980 में चौहटन के पहले प्रधान बने, 1995 में तरूणराय कागा की पत्नि मिश्रीदेवी कागा दूसरी विस्थापित प्रधान बनी, वहीं स्वयं तरूणराय कागा 2013 में चौहटन के पहले विधायक बने।

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