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बड़वानी

17 सितंबर तक डूब सकता है बड़वानी का राजघाट पुल, ओंकारेश्वर से छोड़ा पानी, जिला हाई अलर्ट पर

 डूब सकता है राजघाट का पुल, ओंकारेश्वर से छोड़ा पानी, जिला हाई अलर्ट पर, अधिकारियों ने किया डूब क्षेत्रों का निरीक्षण, हुई मॉक ड्रिल

बड़वानीSep 12, 2017 / 01:23 pm

मनीष अरोड़ा

barwani district on high alert

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बड़वानी. बरगी, इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर बांध से सोमवार को पानी छोड़े जाने के बाद बड़वानी जिले में डूब क्षेत्रों में हाईअलर्ट घोषित कर दिया गया है। सोमवार शाम को कलेक्टर, एसपी ने राजघाट पर नर्मदा के जलस्तर का जायजा लिया। साथ ही यहां मौजूद एनडीआरफ की टीम को सतर्कता बरतने के निर्देश दिए गए। वहीं, आपात बैठक बुलाकर बैठक में कलेक्टर ने सभी जिला अधिकारियों को भी डूब प्रभावित ग्रामों में जाकर ऐतिहार्थ के सभी व्यवस्थाओं को देखने, नदी किनारे वाटर लेवल की स्थिति लाने के निर्देश दिए है। सोमवार शाम तक नर्मदा का जलस्तर 125.600 पर स्थिर था। पीछे से पानी आने पर मंगलवार शाम तक राजघाट पुल डूबने की संभावना जताई जा रही है।

आपदा प्रबंधन का किया मॉकड्रिल
नर्मदा नदी में धीरे-धीरे सतत बढ़ रहे जल स्तर के मद्देनजर जिला प्रशासन ने सोमवार की शाम को पुन: आपदा प्रबंधन का मॉक ड्रिल किया। इसके तहत शाम को सभी जिला अधिकारियों को नर्मदा किनारे बसे ग्रामों में पहुंचकर, आपदा प्रबंधन की टीम का नेतृत्व करने एवं नर्मदा जल स्तर की फोटो लेकर वाट्सअप के माध्यम से कंट्रोल रूम भेजने के निर्देश दिए गए। इस मॉकड्रिल के तहत कलेक्टर तेजस्वी एस. नायक ने शाम को 4 बजे आयोजित समय सीमा बैठक के दौरान जिला अधिकारियों को बताया कि उन्हें आपदा प्रबंधन के तहत आयोजित इस मॉकड्रिल के तहत किस ग्राम में जाना है।

कलेक्टर ने अधिकारियों को दिए निर्देश
कलेक्टोरेट कार्यालय से एक साथ एक समय रवाना हुए इन अधिकारियों को हिदायत दी गई थी कि उन्हें सौंपे गए ग्राम तक जल्दी से जल्दी पहुंचना है। इस दौरान उन्हें लगने वाले समय की गणना के साथ ग्राम में पहुंचने व डूब प्रभावितों को कुशलता से निकालने में आने वाली परेशानियों व उनके निवारण की व्यवस्था का आकलन करना था। साथ ही ग्राम में पहुंचने के साथ घाट पर या ग्राम में नर्मदा किनारे पहुंचकर वॉटर लेवल की फोटो मोबाइल पर लेकर भेजना था। इस मॉक ड्रिल के तहत कलेक्टर तेजस्वी एस नायक तथा पुलिस अधीक्षक प्रशांत खरे, दल-बल के साथ कुकरा पहुंचे व बढ़ रहे नर्मदा जल सतह का सूक्ष्म निरीक्षण कर आवश्यक निर्देश पदाधिकारियों को दिए। साथ ही कलेक्टर एवं अन्य ग्रामों में गए अधिकारियों ने डूब प्रभावितों से अनुरोध भी किया कि वे बाढ़ का पानी घर तक आने का इंतजार न करे। समय पर सुरक्षित स्थानों की ओर रवाना हो। इससे किसी भी प्रकार की जान-माल की हानि न होने पाए।

17 सितंबर को जश्न ए मौत मंजूर नहीं- नबआं
सरदार सरोवर से हो रहे विनाश, थोपे जा रहा विस्थापन को चुनौती देते हुए नर्मदा घाटी के लोगों का संघर्ष चोटी पर पहुंचते ही मप्र सरकार ने न सिर्फ दमनकारी रूख अपनाया, बल्कि अब सरदार सरोवर परियोजना में मप्र के किसान, मजदूर, अन्य सभी व्यवसायिकों की आहूति देने की तैयारी भी शिवराज सिंह चैहान कर रहे हैं। ये मात्र राजनीतिक स्वार्थ के अलावा कोई और संकेत नहीं है। मप्र शासन और स्वयं मुख्यमंत्री अच्छी तरह से जानते है कि सरदार सरोवर प्रभावित लाखों लोग, करीब 40 हजार परिवार, आज भी बांध के 214 किमी फैले जलाशय यानि डूब क्षेत्र में ही बसे है। कानून और सर्वोच्च अदालत के आज तक के चार फैसलों को ताक पर रखकर प्रदेश शासन ने करोड़ों रुपयों के ठेके और 900 करोड़ से ठेकेदार-भ्रष्टाचारी अधिकारी दलालों को फिर से शासन की तिजोरी और विस्थापितों के अधिकार लूटने का मौका दिया। अवैध मार्ग अपनाकर मात्र तात्कालिक चार महिनों तक के आवास पशुओं को चारा-पानी व भोजन की व्यवस्था करने में लगे अधिकारी-कर्मचारी क्या नहीं जानते कि स्थाई व कानूनी पुर्नवास की परिभाषा क्या है। आजीविका और आवास के बिना पुनर्वास संभव है।

लोकार्पण पर उठाया सवाल
नर्मदा बचाओ आंदोन ने 17 सितंबर को सरदार सरोवर बांध के लोकार्पण पर सवाल उठाते हुए कहा कि बिना पुनर्वास के जश्न ए मौत मंजूर नहीं है। आंदोलन ने बताया सब कुछ जानते हुए भी विस्थापितों की संगठित शक्ति की उपेक्षा कर मोदी के 17 सितंबर 2017 के जश्न में मप्र के मुख्यमंत्री शामिल होंगे तो इससे स्पष्ट हो जाएगा कि उन्हें नर्मदा की भक्ति या नर्मदा की सेवा का मोल नहीं, उन्हें भी मोदी जी की रीति राजनीति के लिए नर्मदा को बंधक बनाना मंजूर है। निमाड़ की उपजाऊ धरती, नर्मदा से जुड़ी प्रकृति और किसानी संस्कृति के विध्वंस पर ही चलेगी चुनावी हवस। यही कारण है कि अपने लाखों लोगों की पीढिय़ों से बसे गांवों की मौत का जश्न मनाया जाएगा। क्या जश्न ए मौत से मनाया जाएगा। 17 तारीख को मोदी का जन्मदिन बांध का देश को लोकार्पण और नर्मदा घाटी की मौत से इसके सपूत-पुत्रियों का प्रदेश के शासनकर्ताओं द्वारा समर्पण गुजरात की अडाणी, अंबानी, कोकाकोला जैसी कंपनियों के साथ राज्य और केंद्र सरकार के जुड़ाव के हित में राज्य और यहां के किसानए आदिवासी, दलित, मजदूर, मछुआरों के हितों पर बिना हिचकिचाहट चोट करेगी शिवराज सिंह सरकार तो देश की संवेदनशील जनता भी उन्हें नहीं बखशेगी।

कंपनियों को पानी देना नहीं करेंगे सहन
नर्मदा घाटी के लोग ही नहीं, देश के सभी अध्ययनशील, विचारशील नागरिक, कानून के जानकार आदि सब जानते हैं कि किसी भी परियोजना का अभिन्न हिस्सा होता है विस्थापन, पुर्नवास एवं पर्यावरण संबंधी कार्य। सिंचाई का लाभ पहुंचाने के लिए किसानों के खेत-खेत में नहर जाल पहुंचाना भी जरूरी शर्त होती है। गुजरात के सूखाग्रस्तों के स्थाई समाधान के लिए पानी पहुंचाए तो कोई आपत्ति नहीं, लेकिन कोकाकोला जैसी कंपनियों को पानी के साथ चांदी भी काटने देने वालों को हम सहन नहीं करेंगे।

नर्मदा बचाओ आंदोलन की मांग
न्यायालय यदि जीने के अधिकार के पक्ष में है, तो भूतपूर्व हाईकोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में तत्काल पुनर्वास कर निष्पक्ष जांच करा लें। 17 सितंबर के प्रधानमंत्री के जलसे में विरोधी दलों के मुख्यमंत्री शामिल न हों। 17 सितंबर के पूर्व या बाद में पुर्नवास पूरा होने पर बांध में 121 मीटर के उपर पानी न भरा जाए, अन्यथा जल हत्या होगी।

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