scriptकेंद्र, गुजरात के हितों की बलि न चढ़ जाए मप्र के डूब प्रभावित | Legal decision not taking the NCA institution of Sardar Sarovar | Patrika News
बड़वानी

केंद्र, गुजरात के हितों की बलि न चढ़ जाए मप्र के डूब प्रभावित

सरदार सरोवर की सबसे महत्वपूर्ण संस्था एनसीए नहीं ले रही कानूनी निर्णय, पति-पत्नी के हाथों की कठपुतली बना एनसीए, कई घोटालों में भी लिप्त, नबआं ने की मप्र सरकार से बांध का पानी रोकने की मांग, 122 मीटर से ज्यादा न भरे बांध, पुनर्वास नहीं तो दोबारा होगा संघर्ष

बड़वानीJul 06, 2019 / 10:45 am

मनीष अरोड़ा

Legal decision not taking the NCA institution of Sardar Sarovar

Legal decision not taking the NCA institution of Sardar Sarovar

बड़वानी. गुजरात और केंद्र के हितों के लिए मप्र सरकार मप्र के डूब प्रभावितों की बलि न चढऩे दे। नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण (एनसीए) ही एकमात्र संस्था है। जिसे नर्मदा के बांधों के सामाजिक, पर्यावरणीय तथा जल आवंटन, जल नियोजन आदि पहलुओं पर कानूनी दायरे में निर्णय लेना है। बांध के जलाशय में पानी की लेवल क्या होगी। इस पर भी निर्णय लेने की जिम्मेदारी एनसीए की है। एनसीए अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन करने की बजाए केंद्र सरकार के हित में काम कर रही है। मप्र सरकार से अपील है कि पुनर्वास पूरा होने तक बांध को न भरे और वाटर लेवल 122 मीटर से ज्यादा न होने दे।
ये बात नर्मदा बचाओ आंदोलन नेत्री मेधा पाटकर ने शुक्रवार को एनसीए की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कही। मेधा पाटकर ने कहा कि एनसीए में मात्र एनके सिन्हा और उनकी पत्नी सुमन सिन्हा का राज चल रहा है। एनके सिन्हा कार्यकारी सदस्य याने सबसे उच्च पदस्थ नियुक्त अधिकारी है, लेकिन उनके दिमाग में भी कुछ बीमारी है, तो वे अकेले, बिना पत्नी के सफर तक नहीं करते है। सुमन सिन्हा सचिव से लेकर उर्जा, पर्यावरण, पुनर्वास और सिविल इंजीनीयरिंग तक के विशेषज्ञों की जगह सचिव पद प्राप्त करके पदस्थ है। क्या सिविल इंजीनीयरिंग और पर्यावरण या उर्जा और पुनर्वास के लिए जरूरी विभिन्न शैक्षणिक पात्रता एक ही व्यक्ति के पास हो सकती है। पूर्व में रहे संचालक अफरोज अहमद की भी डिग्री फर्जी होने की रिपोर्ट पर सीबीआई की जांच होकर अब अपराधी प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में दर्ज है।
2018 से बैलेंस निल बता रहा एनसीए
एनसीए पहले भी सुप्रीम कोर्ट, जीआरए में झूठे आंकड़े पेश करता रहा है। 2008 से 2018 तक पुनर्वास का बैलेंस जीरो बताते रहे। 2018 से बैलेंस निल बताना शुरू कर दिया है। आज भी लोगों के अनुदान, पुनर्वास की कार्रवाई जारी है तो बैलेंस निल कैसे बता सकते है। इस पर मप्र सरकार को आपत्ति उठाना चाहिए। सरदार सरोवर के लिए सबसे बड़ी आहुति देने के बाद मप्र को क्या मिल रहा है। सिर्फ बिजली मिलना है, वो भी नहीं मिल रही।
केंद्र बार-बार धमका रहा है
मेधा पाटकर ने बताया कि केंद्र बार-बार धमका रहा है कि हम सरदार सरोवर बांध में पानी भरेंगे। मप्र के डूब प्रभावितों को डराया जा रहा है, क्योकि सरकार गांव खाली कराना चाहती है। ट्रिब्यूनल के अनुसार बिना संपूर्ण पुनर्वास किसी की संपत्ति डूबा नहीं सकते है, इसलिए इस साल भी पूर्व की शासन ने आधा अधूरा छोड़ा, पुनर्वास का कार्य पूरा करने तक 122 मीटर के आगे पानी भरना मप्र सरकार को नामंजूर करना चाहिए। पुनर्वास के लिए पूरा खर्च गुजरात से मिलना बाकी है, तो मप्र शासन ने पूरे जोर के साथ मांग करनी और उसके लिए संघर्ष भी करना होगा। हम मप्र सरकार को चेता रहे है कि गुजरात और केंद्र सरकार के दबाव में पानी नहीं छोड़े नहीं तो यहां दूसरा उत्तराखंड बन जाएगा।

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो